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Govardhan Puja 2025: दीपावली के अगले दिन क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा? जानें मुहूर्त का शुभ समय

इस वर्ष गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी. मान्यताओं के अनुसार, सुबह से लेकर दोपहर तक का समय पूजा के लिए सबसे शुभ माना गया है. इस दौरान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने से परिवार में सुख, शांति और अन्न-धन की वृद्धि होती है.

Govardhan Puja 2025: दीपावली के अगले दिन क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा? जानें मुहूर्त का शुभ समय
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( Image Source:  x-@No__negativtyxd )
State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 21 Oct 2025 5:44 PM IST

दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है. यह पंच दीपोत्सव का चौथा पर्व होता है. इसमें प्रकृति की पूजा और संरक्षण का संदेश छिपा हुआ होता है. गोवर्धन पूजा विशेष रूप से ब्रज के क्षेत्र, गुजरात और राजस्थान में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के विधान होता है. गोवर्धन पूजा के अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जाना जाता है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्रदेव के अंहकार को चूर-चूर कर दिया था. गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है. यह त्योहार इस बार 22 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की तिथि, पूजन मुहूर्त और महत्व.

गोवर्धन पूजा 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, हर वर्ष गोवर्धन पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 54 मिनट शुरू होगी और तिथि का समापन 22 अक्टूबर को रात 8 बजकर 16 मिनट पर होगा.

पूजन का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का मुहूर्त दो समय पर होगा. पहला मुहूर्त 22 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 26 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 42 मिनट तक रहेगा और दूसरा मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाइ करें विशेष रूप से आंगन की. फिर इसके बाद स्नान करके पूजा का संकल्प लें. फिर इसके बाद गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं. इसके अलावा अनाज से भी गोवर्धन पर्वत बना सकते हैं. फिर इसके बाद गोवर्धन पर्वत के पास बछड़े और ग्वालों की मूर्तिया रखकर फूल, दीपक, जल और न्य अर्पित करें और पूजा के बाद गोवर्धन की परिक्रमा करें. इसके बाद इस दिन गाय और बछड़ोों की भी पूजा करने का विशेष महत्व होता है. फिर पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाएं और आरती करें.

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार ब्रजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ की तैयारी करने लगे. श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि यह यज्ञ किसलिए है? तब उन्होंने बताया कि इंद्र वर्षा के देवता हैं, उन्हीं की कृपा से अन्न उत्पन्न होता है. श्रीकृष्ण ने समझाया कि वर्षा इंद्र नहीं, बल्कि प्रकृति के संतुलन और गोवर्धन पर्वत की वजह से होती है, जो सबको जल, अन्न, पशुओं के लिए चारागाह और वनस्पतियां प्रदान करता है. कृष्ण के आग्रह पर ब्रजवासियों ने इंद्र यज्ञ न करके गोवर्धन पर्वत की पूजा की. इससे क्रोधित होकर इंद्र ने भारी वर्षा कर दी, जिससे ब्रजभूमि में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई. तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर सभी लोगों और गायों को उसके नीचे शरण दी. सात दिन तक निरंतर वर्षा होती रही, लेकिन ब्रजवासियों को कोई कष्ट नहीं हुआ. तब इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी और अपनी भूल का एहसास हुआ.

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