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कब मनाया जाएगा सकट चौथ, जानें क्या है व्रत का महत्व और पूरा विधि विधान?

हिंदू परंपरा में सकट चौथ को विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. ये माघ महीने में कृष्ण पक्ष चतुर्थी यानि अमावस्या के चौथे दिन मनाया जाता है. अब इस साल 2025 में सकट चौथ शुक्रवार 17 जनवरी को चंद्रोदय के साथ मनाया जाएगा. ये विशेष दिन देवी सकट और भगवान गणेश को समर्पित है.

कब मनाया जाएगा सकट चौथ, जानें क्या है व्रत का महत्व और पूरा विधि विधान?
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( Image Source:  Freepik )
कुसुम शर्मा
Edited By: कुसुम शर्मा

Updated on: 17 Jan 2025 8:36 AM IST

हिंदू परंपरा में सकट चौथ को विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. ये माघ महीने में कृष्ण पक्ष चतुर्थी यानि अमावस्या के चौथे दिन मनाया जाता है. अब इस साल 2025 में सकट चौथ शुक्रवार 17 जनवरी को चंद्रोदय के साथ मनाया जाएगा. ये विशेष दिन देवी सकट और भगवान गणेश को समर्पित है, और ये उन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है जो अपने बेटों की भलाई और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं.

सकट चौथ व्रत कथा सुनना अनुष्ठान का अभिन्न अंग है. ये कथा देवी सकट की दयालु प्रकृति और भक्तों पर उनके आशीर्वाद को उजागर करती है. बता दें कि चन्द्रोदय के बाद, महिलाएं अपने बच्चों के स्वास्थ्य और सफलता के लिए प्रार्थना करते हुए चांद को अर्घ्य देती हैं. फिर प्रसाद खाकर व्रत तोड़ा जाता है.

सकट चौथ का महत्व

दरअसल, सकट चौथ का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है, ऐसा माना जाता है कि इस दिन को श्रद्धापूर्वक मनाने से परिवार में सुख, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य आता है. इस दिन का नाम देवी सकट के नाम पर रखा गया है, जो करुणा और सुरक्षा का प्रतीक हैं. इस दिन व्रत और पूजा की परंपरा हिंदू संस्कृति में जो अपने बच्चों के कल्याण के लिए माताओं के समर्पण को दर्शाती है.

देवी सकट और भगवान गणेश की होती है पूजा

इस दिन बाधाओं को दूर करने वाले भगवान गणेश और देवी सकट की भी पूजा की जाती है. चुनौतियों पर विजय पाने और जीवन में सफलता सुनिश्चित करने के लिए उनका आशीर्वाद मांगा जाता है. सकट चौथ को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे संकट चौथ, तिल-कूट चौथ, वक्र-टुंडी चतुर्थी और माघी चौथ.

उपवास और व्रत की परंमपरा

इस दिन माताएं कठोर उपवास रखती हैं, रात में चांद देखने तक भोजन या पानी का सेवन नहीं करती हैं. ये व्रत उनके बेटों की भलाई और परिवार की समग्र समृद्धि के लिए समर्पित होती है. जहां तिल से बने विशेष व्यंजन, जैसे तिल के लड्डू और तिलकुट तैयार किए जाते हैं और देवताओं को चढ़ाए जाते हैं. वहीं भक्तगण एक छोटी वेदी पर भगवान गणेश की मूर्तियां या फोटो स्थापित करते हैं. देवी सकट और भगवान गणेश और देवताओं की पूजा तिल, गुड़, फल और फूलों से की जाती है. आशीर्वाद पाने के लिए विशेष पूजा की जाती है.

कैसे शुरू हुई सकट चौथ की परंपरा?

सकट चौथ की उत्पत्ति राजस्थान के सकट गांव से जुड़ी हुई है. इस गांव में देवी संकट को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे संकट चौथ माता के नाम से भी जाना जाता है. अलवर से लगभग 60 किमी और जयपुर से 150 किमी दूर स्थित ये मंदिर देवी सकट का आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों को आकर्षित करता है. जहां सकट चौथ भक्ति, अनुशासन और दिव्य आशीर्वाद का त्योहार है. ये एक ऐसा दिन है जब परिवार अपने बच्चों के प्रति माताओं के प्यार और समर्पण का जश्न मनाने के लिए एक साथ आते हैं. इस शुभ दिन पर देवी सकट और भगवान गणेश की पूजा करने से बाधाओं को दूर करने, समृद्धि लाने और प्रियजनों की भलाई सुनिश्चित करने की मान्यता है.

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