शिव जी के आंसू से बना रुद्राक्ष, गलत धारण किया तो होने लगेंगे ये नुकसान, जान लें नियम
रुद्राक्ष एक पवित्र, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक दृष्टि से लाभकारी बीज है, जो विशेष रूप से शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इसका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है. रुद्राक्ष पहनने से कई फायदे होते हैं, लेकिन इससे जुड़े कुछ नियम न मानने पर आपके जीवन में परेशानी आ सकती है.

सावन का पवित्र महीना जारी है और हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व होता है. सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, व्रत और मंत्रों का जाप का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यातओं के अनुसार सावन में शिव उपासना करने से भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा मिलती है. इस माह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धूतरा, भांग, आंकड़े के फूल, अष्टगंध अर्पित किया जाता है.
इसके अलावा सावन में शिव जी को रुद्राक्ष भी अर्पित किया जाता है. रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र माना जाता है. इसको धारण करने के विशेष नियम और परंपरा होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई थी इस कारण से रुद्राक्ष का विशेष महत्व होता है. आइए जानते हैं रुद्राक्ष से जुड़ी कुछ खास बातें.
रुद्राक्ष के उत्पत्ति की पौराणिक कथा
रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रुद्र और आक्ष. रुद्र भगवान शिव का नाम भी हैं और अक्ष का अर्थ होता है आंख. शिव पुराण के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान महादेव के आंसुओं से हुआ था. दरअसल एक बार भगवान शिव माता पार्वती को तपस्या करने के लाभ के बारे में बता रहे थे. शिवजी ने माता पार्वती को तपस्या और साधना के मिले परिणामों बहुत ही अनोखा बताया. शिवजी ने माता पार्वती को बताया कि लंबे समय तक आंखे बंद करके तपस्या की लेकिन अगर बीच में मैं आंखे खोल देता तो तपस्या का परिणाम कम हो जाता. जब लंबी तपस्या के कारण मेरा मन थोड़ा विचलित हुआ तो मैंने आंखे खोल दी. लंबे समय तक आंखे बंद करने के कारण जब मैंने आंख खोली तो आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदे गिरीं. ये बूंदें धरती पर जहां गिरी वहां पर पौधा उग आया जिसका नाम रुद्राक्ष पड़ा.
रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व
भगवान शिव के आंसुओं से प्रगट रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है. शास्त्रों में रुद्राक्ष को बहुत ही दिव्य माना गया है, इसके धारण करने से और पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. सावन माह में रुद्राक्ष से शिवमंत्रों का जाप और रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है.
रुद्राक्ष के प्रकार
रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैं. रुद्राक्ष के फल में धारियां बनी हुई होती हैं जिसके आधार पर ही रुद्राक्ष के प्रकारों का वर्गीकरण किया जाता है. 1 मुखी से लेकर 14 मुखी तक रे रुद्राक्ष मिलते हैं. सबसे ज्यादा पांच मुखी रुद्राक्ष पाया जाता है और इसको धारण करने और इससे जाप करने से व्यक्ति का मानसिक संतुलन अच्छा रहता है. इसके अलावा आकार के अनुसार 3 तरह के रुद्राक्ष होते हैं. आंवले के फल के बराबर जो रुद्राक्ष होता है उसे सबसे अच्छा माना जाता है. बेर के आकार के बराबर का रुद्राक्ष मध्यम फल देने वाला होता है और चने के बराबर आकार वाला रुद्राक्ष आखिरी श्रेणी में आता है.
धारण करने के नियम
- रुद्राक्ष धारण करने पर मांस का सेवन नहीं करना चाहिए और अधार्मिक कार्यों से बचना चाहिए. इसके साथ नशे से दूर रहना चाहिए.
- जो रुद्राक्ष के दाने खराब हों, टूटे-फूटे हों, पूरी तरह से गोल आकार के ना हों और उभरे हुए न हों कभी भी ऐसा रुद्राक्ष को नहीं धारण करना चाहिए.
- जिस रुद्राक्ष में छेद हों उसे बहुत ही अच्छा माना जाता है.
- सावन के महीने रुद्राक्ष को पहली बार धारण करना शुभ होता है. सावन सोमवार पर शिव जी का अभिषेक करें और पूजा में रुद्राक्ष का इस्तेमाल करें.
- रुद्राक्ष को धारण करने से पहले गंगाजल से धोना चाहिए फिर इसके बाद पंचामृत से रुद्राक्ष को धोएं और लगातार ऊं नमा शिवाय मंत्र का जाप करें.