मेघालय के जंगलों से भटक कर असम में आए हाथी, 40 से ज्यादा जंगली हाथियों के झुंड ने मचाई तबाही
असम के हरे-भरे खेतों में, जहां कभी फसलें लहराती थीं हवा के साथ, अब एक नया खतरा घूम रहा है. मेघालय की जंगलों से भटकते भूखे हाथी झुंडों में पलासबारी और रानी के गांवों में उतर आए हैं. ये विशालकाय प्राणी न सिर्फ खेतों को तबाह कर रहे हैं, बल्कि लोगों के दिलों में खौफ पैदा कर दिए हैं.
दिन ढलते ही पालसबाड़ी और रानी इलाके के गांवों में सन्नाटा नहीं, बल्कि डर उतर आता है. मेघालय के जंगलों से भटके जंगली हाथियों के झुंड अब खेतों और बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं. जिन खेतों में कुछ दिन पहले तक सुनहरी धान की बालियां लहलहा रही थीं, आज वहां सिर्फ तबाही के निशान बचे हैं.
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इंसान और हाथी के बीच टकराव ने इन इलाकों में जिंदगी को हर रात एक नए खतरे में बदल दिया है. शाम ढलते ही खेतों और गांवों की तरफ बढ़ते हाथियों ने लोगों के लिए नींद और चैन दोनों छीन लिए हैं, जिससे इलाके में मानव–हाथी संघर्ष और भी गंभीर हो गया है.
रात के अंधेरे में हाथियों का रौद्र रूप
कल्पना कीजिए, शुक्रवार की काली रात. खरापारा गांव में शांति का पहरा लेते हुए किसान सो रहे हैं. अचानक, धरती कांपने लगती है. दर्जनों हाथी, भूख से पागल, गाय के बाड़े में घुस आते हैं. वहां रखी फसलें, धान के भंडार चट कर जाते हैं, कुचल देते हैं. चीखें गूंजती हैं. रिटायर्ड टीचर नृपेन शर्मा और कुछ किसान-मजदूर भागते हैं अंधेरे में, जान बचाने को. हाथी दीवारें तोड़ते, पेड़ उखाड़ते, घरों में घुसते. सुबह होते-होते सैकड़ों बीघा फसलें रौंद डाली जातीं. रबी की फसलें भी चपेट में. किसानों का एक साल का पसीना मिट्टी में मिल जाता.
पलासबारी से रानी गांव में फैला आतंक
पलासबारी से रानी तक अब हाथी शाम ढलते ही निकल पड़ते हैं. हर गांव में आतंक फैला हुआ है. लोग आग जलाते, टिन की शीटें पीटते, पटाखे फोड़ते, रात भर यही सब करते हैं. लेकिन ये छोटे-मोटे हथकंडे हाथियों के आगे बौने हैं. पराकुची के पास मिरजा में शनिवार को 40 से ज़्यादा हाथी दिखे. खेत लांघते, घरों के पास आते. लोग घरों में दुबक जाते. दिहाड़ी मजदूर, किसान सब डरे हुए. इस मामले में वन विभाग की चुप्पी और नेताओं की अनदेखी ने गुस्सा भड़का दिया.
बीमा योजना का नया अध्याय
इन सबके बीच, दिल्ली से एक अच्छी खबर है. 18 नवंबर 2025 को कृषि मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में बड़ा बदलाव किया. अब जंगली जानवरों के हमले हाथी, सूअर, नीलगाय से फसल बर्बादी को 'लोकलाइज्ड रिस्क' के तहत कवर मिलेगा. अब राज्य खतरे वाले जानवर और जिले तय करेंगे. किसान 72 घंटे में ऐप पर फोटो अपलोड करेंगे. साथ ही, बाढ़ से धान डूबने का कवर भी वापस मिलेगा.
आगे की लड़ाई: मांगें और समाधान
ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई. ग्रामीणों का कहना है कि नियमित गश्त, अलर्ट सिस्टम, तत्काल मुआवजा चाहिए. फसलें, मकान, जानें बचानी हैं. हाथी और इंसान, दोनों की दुनिया बचाने का वक्त है. क्या सरकार सुनेगी इन आवाज़ों को?





