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Nirjala Ekadashi 2025: कब है निर्जला एकादशी, जानिए इस व्रत का महत्व, तिथि और पूजा विधि-नियम

एकादशी व्रत का विशेष महत्व हिंदू धर्म में होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और मोक्ष की कामना रखने वाले लोगों की इच्छाओं की पूर्ति होती है. एकादशी व्रत के पूजन की विधि बहुत ही आसान होती है.

Nirjala Ekadashi 2025: कब है निर्जला एकादशी, जानिए इस व्रत का महत्व, तिथि और पूजा विधि-नियम
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State Mirror Astro
Edited By: State Mirror Astro

Updated on: 31 May 2025 3:03 PM IST

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी के व्रत का विशेष महत्व होता है. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, साथ ही मोक्ष का कामना रखने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वैदिक पंचांग के अनुसार हर एक पक्ष में यानी हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में एक-एक एकादशी पड़ती है, जिसका विशेष महत्व होता है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है.

यह एकादशी व्रत सभी 12 एकादशी के व्रत में सबसे कठिन मानी जाती है, क्योंकि इसमें पूरे व्रत के दौरान बिना पानी पीए रहा जाता है. निर्जला एकादशी का व्रत रखने और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी तरह के दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है. इस बार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई है. आइए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और महत्व के बारे में.

निर्जला एकादशी व्रत तिथि 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून को रात 2 बजकर 15 मिनट से शुरू हो जाएगी और इसका समापन 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जाएगा.

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है. निर्जला एकादशी के व्रत को करने में कठिन नियमों का पालन किया जाता है, जिसमें बिना पानी पीए पूर दिन व्रत रखा जाता है. निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस व्रत को सबसे पहले पांडव पुत्र भीम ने किया था, जिस कारण से इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और माता लक्ष्मी की आराधना करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि और धन वैभव की प्राप्ति होती है. इस दिन गंगा स्नान और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना शुभ माना जाता है.

मंत्र - एकादशी तिथि पर ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमा: और विष्णु सहस्त्रनाम या लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है.

एकादशी व्रत पूजा विधि और नियम

एकादशी व्रत का विशेष महत्व हिंदू धर्म में होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और मोक्ष की कामना रखने वाले लोगों की इच्छाओं की पूर्ति होती है. एकादशी व्रत के पूजन की विधि बहुत ही आसान होती है. इस दिन सबसे पहले व्रती को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए. फिर पूरे दिन सात्विक रहते हुए भगवान विष्णु की मूर्ति या प्रतिमा को शंख के जल से 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मन्त्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ ,गंध,अक्षत,पुष्प आदि अर्पित करके कपूर से आरती उतारनी चाहिए.

तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित

एकादशी में व्रत के कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है. एकादशी व्रत से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से तामसिक भोजन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. एकादशी दिन पर तुलसी दल से भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करें लेकिन इस दिन के लिए एक दिन पहले ही तुलसी दल को तोड़कर रखना चाहिए. एकादशी पर तुलसी के पत्तों को तोड़ना वर्जित होता है. एकादशी पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. व्रत रखने वालों को व्रत वाले दिन नाखून, बाल, दाढ़ी आदि नहीं काटने चाहिए और स्त्रियों को इस दिन बाल नहीं धोने चाहिए.

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