Astrology: कुंडली में विवाह योग कैसे बनते हैं और कब होती है शादी, जानें हर सवाल का जवाब
जन्म कुंडली के सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र ग्रह की स्थिति से विवाह के योग बनते हैं. मांगलिक दोष और नवमांश कुंडली से वैवाहिक जीवन की चुनौतियां और सुख-शांति का पता चलता है. विंशोत्तरी दशा से शादी का सही समय भी जाना जा सकता है. वैदिक ज्योतिष में ये सभी कारक जीवनसाथी और शादी के समय की सही जानकारी देते हैं.

अक्सर आपको अपने परिवार और आसपास के लोगों से यह बात जरूर सुनने को मिलती होगी कि अमुक व्यक्ति की कुंडली में विवाह के योग है या नहीं. विवाह कब होगा ? जीवनसाथी कैसा मिलेगा ? किस उम्र में विवाह होगा ? विवाह के होने के बाद वैवाहिक सुख मिलेगा या नहीं ? विवाह के बाद भाग्य चमकेगा या नहीं. प्रेम विवाह होगा या बहु विवाह होगा या फिर परिवार के रजामंदी में होगा.
इन सभी बातों को जानने के लिए व्यक्ति किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क करता है और ज्योतिषी जातक या जातिका की जन्म कुंडली का अध्ययन करके उसके सभी सवालों का जवाब देता है. हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है और यह सभी सोलह संस्कारों में एक संस्कार होता है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में विवाह को जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है. आइए जानते हैं विवाह के लिए कुंडली में कौन-कौन से महत्वपूर्ण कारक काम करते हैं.
कुंडली में विवाह के लिए सातवां भाव
किसी भी जातक या जातिका के विवाह के लिए जन्म कुंडली के सप्तम भाव यानी सातवें घर से विचार किया जाता है. जन्मकुंडली का यह भाव विवाह, जीवनसाथी और साझेदारी को बताता है. ऐसे में कुंडली का सप्तम भाव मजबूत होने पर विवाह के योग बनते हैं. सप्तम भाव में शुभ ग्रहों मौजूद होने पर या फिर इस भाव पर शुभ ग्रहों की द्दष्टि से विवाह के योग बनते हैं और विवाह सफल व सुखमय होता है. वहीं अगर कुंडली का सप्तम भाव पीड़ित हो या फिर अशुभ ग्रह इसमें मौजूद हो तो विवाह में देर होती है या फिर संबंधों में परेशानियां आती हैं.
विवाह के लिए सप्तमेश की भूमिका
जन्म कुंडली के सातवें भाव में जो राशि होती है और उसका जो स्वामी ग्रह होता है वह सप्तमेश कहलाता है. इस तरह से सातवें भाव के अलावा सप्तमेश की भी भूमिका विवाह के लिए खास होती है. कुंडली में सप्तमेश की स्थिति मजूबत होने पर विवाह सफल और सुखद बनता है.
विवाह के लिए शुक्र ग्रह की स्थिति
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में विवाह के लिए शुक्र और गुरु ग्रह की अहम भूमिका होती है. शुक्र जहां प्रेम, सौंदर्य और रिश्तों का कारक ग्रह है वहीं गुरु विवाह का जल्दी या देरी में अहम भूमिका होती है. कुंडली में शुक्र और गुरु की मजबूत स्थिति से विवाह के योग और सफल वैवाहिक जीवन का सुख मिलता है. कुंडली में शुक्र के मजबूत होने पर शादीशुदा जीवन में सुख-शांति आती है, वहीं शुक्र के कमजोर होने पर विवाह में बाधाएं आती हैं.
नवमांश कुंडली
जन्म कुंडली के सातवें भाव से जहां विवाह के योग के बारे जानकारी मिलती वहीं नवमांश कुंडली के अध्ययन से विवाह और रिश्तों का सूक्ष्म अध्ययन के लिया किया जाता है. जातक के विवाह और वैवाहिक सुख-दुख की गहराई से अध्ययन करने के लिए नवमांश कुंडली के सातवें भाव और इसके स्वामी का विश्लेषण किया जाता है.
कुंडली में मांगलिक दोष
विवाह के लिए कुंडली में मांगलिक दोष की विशेष चर्चा करते हैं. कुंडली में मांगलिक दोष होने पर विवाह में तरह-तरह की चुनौतियों क सामना करना पड़ता है. मांगलिक दोष होने पर वैवाहिक जीवन में सुखों की कमी आती है. कुंडली में जब मंगल ग्रह पहले, चौथे, सातवें ,आठवें या बारहवें भावव में होता है तो इसे मांगलिक दोष कहा जाता है. मांगलिक दोष को कम करने के लिए कई तरह के उपायों को किया जाता हैं.
विवाह के लिए विंशोत्तरी दशा का महत्व
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में किसी घटना के घटित होने की गणना के लिए दशा का विशेष महत्व होता है. कुंडली में ग्रहों की अवधि को दशा कहते हैं. जब विवाह के लिए कारक ग्रह की महादशा और अंर्तदशा चलती है तो विवाह का सही समय मालूम होता है. कुंडली में शुक्र, गुरु और राहु की दशा को विवाह के लिए अनुकूल माना जाता है.