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महाकुंभ में कब-कब होगा शाही स्नान, जानिए इसके पीछे का धार्मिक महत्व

प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ मेले की तैयारी पूरी हो चुकी है. वहीं श्रद्धालु पूरी भक्ती और निष्ठा के साथ पूजा और अनुष्ठान करते हैं. इस दौरान पवित्र शाही स्नान होता है. जो आत्मा की शुद्धि और पापों के नाश और मोश्र की प्राप्ति के लिए जाना जाता है. इस बार शाही स्नान का क्या समय है आइए जानते हैं.

महाकुंभ में कब-कब होगा शाही स्नान, जानिए इसके पीछे का धार्मिक महत्व
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( Image Source:  Social Media: X )
सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Published on: 14 Dec 2024 4:58 PM

12 सालों के बार महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है. इसका बहुत बड़ा महत्व है. इसलिए इसका इंतजार बेसब्री से किया जा रहा है. बता दें कि ये मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है. इस बार साल 2025 जनवरी में मेले का आयोजन प्रयागराज में होने वाला है.

इस मेले में दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक स्नान और इस मेले का आयोजन देखने पहुंचते हैं. 13 जनवरी से 26 जनवरी तक चलने वाले इस कार्यक्रम में शाही स्नान होता है. इसका भी महत्व होता है. साधक पूरी भक्ति से कई तरह के पूजा और अनुष्ठान करते हैं.

शाही स्नान क्या होता है?

कुंभ मेले की शुरुआत जिस स्नान से होती है. उसे शाही स्नान के नाम से जाना जाता है. कुंभ मेले का यह सबसे बड़ा आकर्षण माना जाता है. इसमें अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महंत और नागा साधु शाही स्नान करने पहुंते हैं और इस दुर्लभ स्नान को अमृत स्नान के समान ही मानते हैं. विधि विधान के साथ इसकी प्रक्रिया का पालन होता है.

कब होगा 2025 का शाही स्नान?

1. 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा के दिन पहला शाही स्नान.

2. 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति के दिन दूसरा शाही स्नान.

3. 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या के दिन तीसरा शाही स्नान.

4. 3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी के दिन चौथा शाही स्नान.

5. 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा के दिन पांचवा शाही स्नान.

6. 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान.

क्या है इसका नियम?

वहीं मान्यताओं के अनुसार कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है. साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. कई धार्मिक परंपराएं भी है जिनमें शाही स्नान साधु-संतों और नागा साधुओं के लिए विशेष महत्व रखता है.

शाही स्नान क्यों होता है?

कई मान्यताओं के अनुसार इस दिन पर देवताओं का आगमन होता है. साथ ही इस स्नान का पहला अधिकार नागा साधुओं को दिया जाता है. क्योंकि इसमें संतों और नागा साधुओं की शाही मौजूदगी होती है. इसके बाद भी आम लोग स्नान करते हैं. मान्यता है कि साधु संतों के स्नान के बाद जल अत्यंत पवित्र हो जाता है. साथ ही आध्यात्मिक उर्जा और धार्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है. शाही स्नान को आत्मा की शुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है.

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