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इस तिथि पर प्रकट हुए थे भगवान गणेश, जानें विघ्नहर्ता की पूजन विधि

भगवान गणेश हिन्दू धर्म के सबसे पूजनीय और प्रिय देवताओं में से एक हैं. उन्हें विघ्नहर्ता (विघ्नों को दूर करने वाले), बुद्धि और ज्ञान के देवता, और सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजे जाने वाले देव माना जाता है. मान्यता है कि भगवान गणेश चतुर्थी तिथि पर प्रकट हुए थे.

इस तिथि पर प्रकट हुए थे भगवान गणेश, जानें विघ्नहर्ता की पूजन विधि
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( Image Source:  Freepik )
State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 14 Jun 2025 5:17 PM IST

हिंदू धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है, क्योंकि हर एक तिथि पर कोई न कोई व्रत-त्योहार अवश्य आता है. शनिवार, 14 जून को आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है और यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है. इस तिथि पर भगवान गणेश जी की पूजा, व्रत और आराधना की जाती है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश चतुर्थी तिथि पर प्रगट हुए इस कारण से हर एक पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणपति को माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त चतुर्थी तिथि पर व्रत, पूजा-पाठ और उपवास रखता है उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है. आइए जानते हैं चतुर्थी तिथि का महत्व और पूजा विधि.

चतुर्थी तिथि का महत्व

  • हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है.
  • आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है क्योंकि यह वर्षा ऋतु के प्रारंभ में आती है
  • चतुर्थी तिथि प्रथम पूज्य देवता माने जाने वाले विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति और लंबोदर आदि के नामों से जाने वाले भगवान गणेश को समर्पित होती है.
  • आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है.
  • संकष्टी चतुर्थी पर व्रत और पूजा करने से सभी तरह के संकटों का नाश होता है. इस व्रत को मुख्य रूप से संतान की सुरक्षा,सुख-समृद्धि और सफलता के लिए विशेष फलदायी मानी जाती है.

कैसे करें भगवान गणेश की पूजा?

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें और घर पर बने पूजा स्थल पर गंगाजल से शुद्ध करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें.
  • इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर उन्हें दूर्वा, लाल फूल, अक्षत, सिंदूर और धूप-दीप अर्पित करें. मोदक या गुड़-चने का भोग लगाएं और “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जप करें और गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें.
  • शाम के समय चंद्रोदय होने पर उन्हें दूध, जल, चंदन, अक्षत और पुष्प से अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें.
  • शनिवार और चतुर्थी के शुभ संयोग पर शनिदेव को तेल चढ़ाएं और शनि से जुड़े मंत्रों का जाप करें. इसके बाद हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें.
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