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संतान सुख के लिए होता है हरछठ त्योहार, जानें कब रखा जाएगा यह व्रत और पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में और खासतौर पर कृषक समुदाय के बीच इस त्योहार का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भाद्रपद माह में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव से पहले शेषनाग के अवतार और श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था.

संतान सुख के लिए होता है हरछठ त्योहार, जानें कब रखा जाएगा यह व्रत और पूजा का शुभ मुहूर्त
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 13 Aug 2025 6:20 PM IST

हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में हलछठ का पर्व मनाया जाता है. यह त्योहार मुख्यरूप से उत्तर और मध्य भारत में मनाया जाता है. हरछठ को ललही छठ और बलराम जयंती भी कहते हैं.

भगवान बलराम के हाथ में शस्त्र के रूप हल और मूसल होता है जोकि कृषि से जुड़े कार्यों के लिए होता है. इस कारण से हलषष्ठी और हरछठ के नाम से जाना जाता है. इस त्योहार में माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और संपन्नता के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं. इसमें जुताई से पैदा होने वाला किसी भी प्रकार को कोई भी अन्न नहीं ग्रहण किया जाता है. आइए जानते हैं हलषष्ठी की तिथि और पूजा शुभ मुहूर्त.

हलषष्ठी तिथि 2025

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष हलषठ का पर्व 14 अगस्त, गुरुवार के दिन है. षष्ठी तिथि 14 अगस्त को सुबह 4:23 बजे शुरू होगी और 15 अगस्त को सुबह 2:07 बजे खत्म होगी. ऐसे में उदया तिथि के आधार पर हलछठ 14 अगस्त को है.

बलराम जयंती पूजा विधि

  • ब्रहा मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 23 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 07 मिनट तक
  • अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11 बजकर 59 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त- दोपहर 2 बजकर 37 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक
  • सर्वार्थ सिद्धि योग- 14 अगस्त को सुबह 09 बजकर 6 मिनट से लेकर 15 अगस्त को सुबह 7 बजकर 36 मिनट तक

हलषष्ठी पूजा विधि

संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए माताएं हर वर्ष हलषठ का व्रत रखती हैं और पूजा-आराधना करती हैं. इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प करती हैं. इस दिन महिलाएं महुए के पेड़ का दातुन भी करती हैं. फिर एक खास तरह का पूजा स्थल पर गंगाजल से शुद्ध करें और एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं. चौकी पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी की मूर्ति या तस्वीर रखें. हलषष्ठी पूजन के लिए

चंदन, फूल, माला, रोली, अक्षत, दूर्वा, तुलसी, फल, मिठाई, महुआ और पसई का चावल (बिना हल से उगाया गया चावल) शामिल करें. इस पूजा में भैंस के दूध से बना दही और घी उपयोग करें, गाय के दूध का इस्तेमाल नहीं करना होता है.

व्रत के नियम

इस पर्व में इस दिन व्रती महिलाओं को अन्न ग्रहण करने की मनाही होती है. इस दिन बिना हल के जुते हुए खेतों से पैदा न होने वाली चीजों को ग्रहण किया जाता है। इसमें फसई का चावल खाया जाता है. इसको अलावा इस दिन गाय के दूध, दही और घी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. बल्कि भैंस के दूध और दही का प्रयोग किया जाता है. माताएं इस दिन अपनी संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख के लिए बहुत खास है.

हलछठ के दो दिन बाद श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

रक्षाबंधन के छठे दिन हलषष्ठी और इसके दो दिन बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा. इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था. इस दिन रात के 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. जिसमें बाल गोपाल को पंचामृत से अभिषेक, नए वस्त्र और माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है.

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