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क्या है मुताहा निकाह? 15 से 20 दिन के लिए महिलाएं करती है शादी, लेती है इतनी रकम

मुताह निकाह की शुरुआत शिया इस्लाम में हुई थी और यह प्रथा ऐतिहासिक रूप से भारत में मुगल काल के दौरान भी देखी गई थी, खासकर उन व्यापारियों के बीच जो लंबी यात्राएं करते थे. इस प्रथा में एक निश्चित समय के लिए मैरिज कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है, जो एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकता है.

क्या है मुताहा निकाह? 15 से 20 दिन के लिए महिलाएं करती है शादी, लेती है इतनी रकम
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( Image Source:  Create By Meta AI )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 7 Oct 2025 2:14 PM

यह बात शायद आपको चौंका दे, लेकिन एक मुस्लिम बहुल देश में ऐसी प्रथा है जिसमें महिलाएं कुछ दिनों या हफ्तों के लिए अस्थायी शादियां करती हैं. इन शादियों को 'मुताह निकाह' या 'आनंद विवाह' कहा जाता है, जो केवल 10, 15 या 20 दिनों तक चलती हैं. इस दौरान महिलाएं किसी अजनबी पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहती हैं, और अवधि खत्म होने पर दोनों का रिश्ता पूरी तरह समाप्त हो जाता है. इसके बदले में महिलाएं अच्छी खासी रकम कमाती हैं. यह प्रथा इंडोनेशिया में तेजी से लोकप्रिय हो रही है, जो दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश और एक प्रमुख पर्यटन स्थल है. यह प्रथा न केवल विवादास्पद है, बल्कि यह एक अनौपचारिक उद्योग के रूप में भी उभर रही है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन से जुड़ा हुआ है.

इस जटिल मुद्दे को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं के साथ-साथ इससे जुड़ी व्यक्तिगत कहानियों को जानना जरूरी है. इंडोनेशिया में मुताह निकाह की प्रथाइंडोनेशिया के पुनकक जैसे पर्यटन क्षेत्रों में, जहां विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं, निम्न-आय वाले परिवारों की कई युवा महिलाएं आर्थिक जरूरतों के कारण इन अस्थायी शादियों में शामिल होती हैं. ये शादियां, जिन्हें स्थानीय रूप से 'मुताह निकाह' कहा जाता है, एक तरह का इनफॉर्मल इंडस्ट्री बन चुकी हैं. यह इंडस्ट्री न केवल महिलाओं को कमाई का जरिया देता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को भी बढ़ावा देता है.

महिलाएं इस प्रथा में क्यों शामिल होती हैं?

ज्यादातर महिलाएं जो इन शादियों में हिस्सा लेती हैं, वे गरीब परिवारों से होती हैं. उनके लिए यह आर्थिक तंगी से निकलने का एक रास्ता है. उदाहरण के लिए, एक 28 साल की इंडोनेशियाई महिला काहाया ने बताया कि उसने 15 से ज्यादा बार ऐसी अस्थायी शादियां की हैं. उसकी कहानी दुखद है 13 साल की उम्र में अपने दादा-दादी के दबाव में उसने पहली बार ऐसी शादी किया था. इस शादी के बाद उसे अपनी बेटी को अकेले पालना पड़ा. उसने दुकानों या कारखानों में काम करने की कोशिश की, लेकिन वहां की मजदूरी बहुत कम थी. अब वह हर अस्थायी शादी से 300 से 500 डॉलर कमा लेती है, जिससे वह अपना किराया और अपने बुजुर्ग दादा-दादी की देखभाल का खर्च उठाती है. हालांकि, उसके परिवार को उसके इस काम के बारे में कुछ नहीं पता.

कैसे काम करती हैं ये शादियां?

पुनकक जैसे क्षेत्रों में कई एजेंसियां इन अस्थायी शादियों को व्यवस्थित करती हैं. ये एजेंसियां विदेशी पर्यटकों, खासकर मध्य पूर्व के पुरुषों को स्थानीय महिलाओं से मिलवाती हैं. एक छोटा सा विवाह समारोह होता है, जिसमें पुरुष महिला को 'दुल्हन की कीमत" के रूप में एक निश्चित राशि देता है. इसके बाद, पर्यटक के ठहरने की अवधि तक महिला उसके साथ पत्नी की तरह रहती है और कई बार यौन सेवाएं भी प्रदान करती है. पर्यटक के जाने के बाद यह शादी खत्म हो जाती है. एजेंट और स्थानीय अधिकारी इस भुगतान में से अपना हिस्सा लेते हैं, जिसके कारण महिलाओं को अक्सर आधी रकम ही मिलती है.

इस प्रथा का विकास और चिंताएं

हाल के सालों में यह इंडस्ट्री तेजी से बढ़ा है. कुछ एजेंट हर महीने 25 से ज्यादा ऐसी शादियों का आयोजन करते हैं. लेकिन इस तेज वृद्धि ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं. सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस प्रथा में गरीब और कमजोर महिलाओं का शोषण हो सकता है. कई लोगों का मानना है कि पर्यटक इन महिलाओं का फायदा उठाते हैं, और उनकी सुरक्षा और कल्याण को लेकर जोखिम बढ़ रहे हैं.

क्या 'मुताह निकाह' इस्लाम में वैध है?

मुताह निकाह की शुरुआत शिया इस्लाम में हुई थी और यह प्रथा ऐतिहासिक रूप से भारत में मुगल काल के दौरान भी देखी गई थी, खासकर उन व्यापारियों के बीच जो लंबी यात्राएं करते थे. इस प्रथा में एक निश्चित समय के लिए मैरिज कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है, जो एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकता है. पुरुष महिला को एक निश्चित राशि देता है, और अवधि खत्म होने पर रिश्ता खत्म हो जाता है. हालांकि, इस प्रथा को लेकर इस्लाम में मतभेद हैं. शिया समुदाय में इसे कुछ हद तक मान्यता प्राप्त है, और यह ईरान (जहां इसे 'सिघेह' कहते हैं), इराक, लेबनान, सीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के शिया-बहुल क्षेत्रों में प्रचलित है. लेकिन सुन्नी इस्लाम में इसे ज्यादातर प्रतिबंधित माना जाता है. कई इस्लामी विद्वान इसे अस्वीकार्य मानते हैं और इसे वेश्यावृत्ति के समान बताते हैं.

दुनिया भर में अलग अलग राय

इंडोनेशिया में, जहां सुन्नी इस्लाम का वर्चस्व है, 'मुताह निकाह' को कानूनी मान्यता नहीं है. यहां के विवाह कानूनों के उल्लंघन पर जुर्माना, जेल या सामाजिक-धार्मिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. ग्लोबल पर्सपेक्टिव में 'मुताह निकाह' को लेकर दुनिया भर में अलग-अलग राय हैं. शिया समुदायों में इसे कुछ हद तक स्वीकार किया जाता है, लेकिन सुन्नी समुदाय और अन्य इस्लामी संप्रदाय इसे खारिज करते हैं. आलोचकों का कहना है कि यह प्रथा शादी की पवित्रता को कम करती है और महिलाओं के शोषण को बढ़ावा दे सकती है. भारत जैसे देशों में, जहां शिया और सुन्नी दोनों समुदाय हैं, यह प्रथा बहुत कम देखने को मिलती है.

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