Period Tradition: ये कैसा अंधविश्वास, जिसमें पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ नेपाल में किया जाता है जानवरों जैसा बर्ताव?
नेपाल में पीरियड्स से जुड़ा एक रिवाज निभाया जाता है, जिसका संबंध समाज की कुछ पुरानी मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों से है. कुछ समुदायों में माना जाता है कि महिलाओं में पीरियड एक तरह की अशुद्धता होती है. इसलिए इस दौरान उन्हें पूजा-पाठ, रसोई घर और अन्य कामों से अलग किया जाता है.

पीरियड्स को आज भी टैबू की तरह देखा जाता है. भारत के कई गांव में आज भी इस दौरान महिलाओं को अछूत माना जाता है. इतना ही नहीं, लोग इसे अंधविश्वास से जोड़कर भी देखते हैं. इसलिए तो महिलाओं को इस दौरान मंदिर से लेकर किचन तक में जाने नहीं दिया जाता है.
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि हमारे पड़ोसी देश नेपाल में भी पीरियड्स से जुड़ी चौपाड़ी प्रथा निभाई जाती है. इस प्रथा में महिलाओं के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता है. चलिए जानते हैं नेपाल की इस प्रथा के बारे में.
क्या है चौपाड़ी प्रथा?
चौपाड़ी प्रथा नेपाल में एक पुरानी और विवादास्पद परंपरा है, जिसमें महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अशुद्ध माना जाता है. इस प्रथा के अनुसार, महिलाओं को घर से बाहर निकाल दिया जाता है और उन्हें अक्सर गायों के बाड़े या झोपड़ियों में रखा जाता है.
मिलने से मनाही
पीरियड्स होने पर नेपाल में महिलाओं को किसी से मिलने से मनाही होती है. साथ ही, उन्हें मंदिर जाने से भी रोका जाता है, क्योंकि इसे अपवित्र माना जाता है.चौपाड़ी प्रथा को अंधविश्वास के रूप में देखा जाता है, जिसमें यह मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं पवित्र नहीं होती हैं.
लग चुका है बैन
नेपाल में चौपाड़ी प्रथा पर साल 2005 में बैन लग चुका है. इसके बाद 2017 में एक कानून पारित किया गया था, जिसके तहत महिलाओं को इस प्रथा को मानने के लिए मजबूर करने वालों को सजा और जुर्माना भरना पड़ेगा. बैन के बावजूद आज भी नेपाल के कई हिस्सों में इस प्रथा के जरिए महिलाओं को सताया जा रहा है.
चलाए जा रहे अभियान
ग्राउंड लेवल पर अभी भी यह प्रथा जारी है. इसलिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं, जो महिलाओं के अधिकारों और पीरियड्स के दौरान हाइजीन के बारे में लोगों को बताते हैं.
पीरियड्स से जुड़े अन्य रिवाज
नेपाल के अलावा, भारत के अलग-अलग राज्यों में पीरियड्स से जुड़े रिवाज निभाए जाते हैं. जहां तमिलनाडु में इस दौरान महिलाओं को अछूत नहीं माना जाता है. इसे मंजल निरातु विज़ा के नाम से जाना जाता है. वहीं, असम में तुलोनिया बिया के दौरान लड़कियों को पहले पीरियड्स में 7 दिन तक अलग झोपड़ी में रखा जाता है.