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कहीं गांव के नाम से बनी कंपनी, तो कहीं शब्द में ही टॉप क्लास सोच, जानें Parle-G से लेकर Uber जैसे ब्रांड्स का कैसे पड़ा नाम

हर घर की रसोई से लेकर स्मार्टफोन ऐप तक, कुछ ब्रांड्स हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं. Parle-G बिस्किट हो या Uber कैब सर्विस, इनका नाम सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि इनके पीछे छुपी दिलचस्प कहानी और सोच का आइना है. कभी किसी गांव के नाम से कंपनी को ब्रांड मिला, तो कभी नाम में ही बेहतरीन विचार सोच से.

कहीं गांव के नाम से बनी कंपनी, तो कहीं शब्द में ही टॉप क्लास सोच, जानें Parle-G से लेकर Uber जैसे ब्रांड्स का कैसे पड़ा नाम
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( Image Source:  AI SORA )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 25 Dec 2025 6:27 PM IST

बाज़ार में हर तरफ़ ब्रांड्स की भरमार है, लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जो प्रोडक्ट नहीं, आदत बन जाते हैं. नूडल्स कहना हो तो ज़ुबान पर अपने आप मैग्गी आ जाती है, गोंद चाहिए तो फेविकोल, चाय के साथ Parle-G बिस्कुट. कभी आपने सोचा है कि ये नाम आए कहां से?

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क्या ये किसी शख़्स से जुड़े हैं या फिर इनके पीछे छुपी है कोई दिलचस्प कहानी? चलिए, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल इन बड़े ब्रांड्स के नामों के पीछे की मज़ेदार कहानियां जानते हैं.

मैग्गी जब बना ग्लोबल स्वाद

आज मैग्गी खाते हैं और पहाड़ों वाली मैग्गी का स्वाद ही अलग है. ये सारी बातें तो आपने जरूर सुनी होगी? लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर इसका नाम कैसे पड़ा? इस ब्रांड की शुरुआत जूलियस मैगी ने की थी, जिन्होंने 19वीं सदी के अंत में खाने से जुड़े कई प्रोडक्ट बनाए. उनके नाम पर ही इस ब्रांड को ‘मैगी’ कहा गयाय बाद में नेस्ले कंपनी ने इसे अपनाया और मैगी धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फेमस हो गई.

Parle-G का नाम कैसे पड़ा?

Parle-G सिर्फ़ बिस्कुट नहीं, बल्कि बचपन की यादों से जुड़ा नाम है. यह बिस्कुट खाते ही मजा आ जाता है. आज भी लोग बड़े शौक से Parle-G खाना पसंद करते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा कि आखिर यह नाम आया कहां से? इसमें ‘G’ का मतलब है ग्लूकोस, जो इसे ताक़त देता है. इस ब्रांड की शुरुआत 1929 में मोहनलाल दयाल चौहान ने की थी. मुंबई के पास पार्ले और इर्ला गांवों के बीच फैक्ट्री बनाई गई और इसी वजह से कंपनी का नाम ‘Parle’ रखा गया. नाम सरल है, लेकिन लोगों का भरोसा इसमें बहुत मजबूत है.

Uber: नाम में ही टॉप क्लास सोच

आजकल अगर आपको कैब बुक करनी हो तो लोग आमतौर पर Uber का नाम लेते हैं. इस नाम की जड़ें जर्मन भाषा में हैं. ‘Über’ का मतलब होता है “सबसे ऊपर” या “सबसे बेहतर”. कंपनी के फाउंडर्स ने यही सोचकर यह नाम चुना कि उनकी सर्विस दूसरों से अलग और बेहतरीन होगी.

फेवीकॉल

फेवीकॉल के एड भला कौन भूल सकता है. 'शर्मा की दुल्हन जो ब्याह के आई' जैसे आइकॉनिक एड आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं. घर में टूटी कुर्सी हो या स्कूल का प्रोजेक्ट, फेविकोल हर जगह काम आता है. इसके नाम की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. कंपनी के संस्थापक बलवंत्रे पारेख को जर्मनी में बिकने वाले ‘Movicol’ गोंद से इंस्पिरेशन मिली. उन्होंने ‘Fevi’ और जर्मन शब्द ‘Col’ (जिसका मतलब जोड़ने वाली चीज़) मिलाकर इसका नाम ‘Fevicol’ रखा.

Pepsodent: दांतों की सेहत का साइंटिफिक नाम

Pepsodent नाम सुनते ही दांतों की सफ़ाई याद आ जाती है. यह नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ‘Pepsin’ और ‘Dent’. पेप्सिन एक पाचन से जुड़ा तत्व है, जबकि डेंट दांतों से जुड़ा शब्द है. शुरुआत में इस टूथपेस्ट के फ़ॉर्मूले में ऐसा पदार्थ था जो दांतों पर लगी गंदगी हटाने में मदद करता था. इसी कारण इसका नाम भी इस सोच के साथ रखा गया.

इन ब्रांड्स की खास बात सिर्फ़ उनका प्रोडक्ट नहीं, बल्कि उनके नाम की कहानी है. यही वजह है कि ये नाम हमारी ज़िंदगी में इस कदर रच-बस गए हैं कि कभी-कभी हम प्रोडक्ट नहीं, सीधा ब्रांड ही मांग लेते हैं. अगली बार जब आप मैगी उबालें या पार्ले-जी की चाय बनाएं, तो याद रखिए- हर नाम के पीछे एक कहानी छुपी है.

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