हरतालिका तीज की कथा का हरिद्वार में मिलता है प्रमाण, मां पार्वती ने बेलपत्र खाकर की थी तपस्या
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भोलेनाथ की आराधना करना अत्यधिक लाभदायक होता है। इस दिन हरतालिका तीज होती है, जो शिव-पार्वती की पूजा को समर्पित है।

वैसे तो हर दिन या खासकर सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है। लेकिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भोलेनाथ की आराधना करना अत्यधिक लाभदायक होता है। इस दिन हरतालिका तीज होती है, जो शिव-पार्वती की पूजा को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकारा था। इस तिथि पर व्रत रखने से पति की तरक्की और लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
अखण्ड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति के लिए सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। हरतालिका तीज पर शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 2 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 33 मिनट तक रहने वाला है। ऐसे में आप शिव-पार्वती की पूजा विधि विधान से कर सकते हैं।
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हरतालिका तीज व्रत की कथा का प्रमाण उत्तराखंड के हरिद्वार में मिलता है। यहां गंगा की गोद और हिमालय की छाया में मां पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति बनाने के लिए तपस्या की थी। यहां स्थित शिवलिंग पर जल चढ़ाने से आपकी मनोकामना पूरी होती है।
हरिद्वार में कहां है स्थान?
हरिद्वार के पास ही बिल्व पर्वत पर वो स्थान है जहां माता पार्वती ने कठोर तप कर पति रूप में कैलाश वासी औघड़दानी शिव को पाया था। हरिद्वार में शिव को एक बार नहीं दो-दो बार अपनी अर्द्धांगिनी मिली। पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी रूप में पाया और फिर उन्हीं माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।
देव ऋषि नारद की सलाह पर पार्वती ने बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर आकर शिव की कठोर तपस्या की और भोलेनाथ को प्रसन्न कर दोबारा उनकी अर्द्धांगिनी बनीं। हरिद्वार से पश्चिम में हर की पौड़ी से थोड़ी ही दूरी पर ये पावन स्थान है, जहां प्रतिष्ठित बिल्वकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। यहां शेषनाग के नीचे लिंग रूप में विराजे हैं बिल्वकेश्वर महादेव।
कहते हैं माता पार्वती यहां बेलपत्र खाकर अपनी भूख शांत किया करती थी, लेकिन जब पीने के लिए पानी की समस्या आयी तब देवताओं के आग्रह पर स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की। यह आज बिल्वकेश्वर मंदिर से महज 50 कदम की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि तपस्या के दौरान माता पार्वती इसी गौरी कुंड में स्नान किया करती थी और इसी कुंड का पानी पिया करती थी।