Zero Tariff भारत के लिए घाटे या फायदे का सौदा, ट्रंप के ऑफर की क्या है सच्चाई?
कतर में ट्रंप के बयान ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में नया मोड़ ला दिया है. उन्होंने दावा किया कि भारत ने अमेरिकी सामान पर जीरो टैरिफ की पेशकश की है. लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि कोई भी डील आपसी लाभ पर आधारित होगी. सवाल उठ रहा है कि क्या ये प्रस्ताव दोस्ती है या एकतरफा व्यापारिक दबाव?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सऊदी अरब, कतर और UAE की चार दिवसीय यात्रा केवल सामरिक रिश्तों का विस्तार नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार नीति में नई चालों का संकेत है. इस दौरे के दौरान कतर में ट्रंप ने दावा किया कि भारत ने अमेरिकी सामान पर जीरो टैरिफ की पेशकश की है. यानी अमेरिका से भारत में आयात होने वाले उत्पादों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. लेकिन इस बयान के पीछे जो रणनीतिक संदेश छुपा है, वह सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि भारत पर दबाव बनाने की नई कोशिश है.
भारत सरकार ने ट्रंप के दावे को सीधे स्वीकार नहीं किया. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यापारिक समझौता तभी होगा जब दोनों देशों को संतुलित लाभ मिलेगा. इससे साफ है कि भारत अमेरिकी दबाव में आकर एकतरफा फैसले नहीं लेगा. इस वक्तव्य से यह भी इशारा मिलता है कि भारत जीरो टैरिफ के मुद्दे पर रणनीतिक सोच के साथ आगे बढ़ रहा है, न कि सिर्फ दोस्ती के नाम पर आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार है.
क्या है जीरो टैरिफ?
जीरो टैरिफ का मतलब है कि दो देशों के बीच व्यापार में आयात या निर्यात किए जाने वाले सामान पर कोई अतिरिक्त सीमा शुल्क या कस्टम ड्यूटी नहीं लगाई जाती. आम तौर पर जब एक देश किसी दूसरे देश से सामान मंगाता है, तो उस पर इंपोर्ट टैक्स यानी टैरिफ लगाया जाता है, लेकिन जब यह टैक्स पूरी तरह हटा दिया जाए, तो उसे 'जीरो टैरिफ' कहा जाता है. अगर भारत और अमेरिका के बीच ऐसी कोई डील होती है, तो इसका आशय यह होगा कि दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात पर कोई अतिरिक्त टैक्स नहीं लगेगा, हालांकि कुछ मौजूदा औसत टैरिफ व्यवस्थाएं बनी रह सकती हैं. इस नीति के फायदे और नुकसान दोनों हैं. जहां एक ओर उपभोक्ताओं को सस्ता माल मिल सकता है, वहीं घरेलू उद्योगों पर विदेशी प्रतिस्पर्धा का दबाव भी बढ़ सकता है.
क्या है ट्रंप का असली इरादा?
अब सवाल यह उठता है कि ट्रंप के 'जीरो टैरिफ' एजेंडे के पीछे अमेरिका का असली इरादा क्या है? जीरो टैरिफ की नीति दिखने में तो फायदेमंद लग सकती है लेकिन अगर ये एकतरफा हो, तो भारतीय बाजार अमेरिकी उत्पादों से भर सकते हैं, जबकि भारत के उत्पादों को अमेरिकी बाजार में वही पुरानी बंदिशें झेलनी पड़ेंगी. इससे घरेलू उद्योगों पर भारी दबाव पड़ेगा, खासकर मैन्युफैक्चरिंग और एग्रीकल्चर सेक्टर पर.
रेसिप्रोकल टैरिफ की भी चर्चा जरूरी
इस संदर्भ में रेसिप्रोकल टैरिफ यानी 'जैसे को तैसा' नीति की भी चर्चा जरूरी है, जिसे ट्रंप प्रशासन पहले ही दुनिया के कई देशों के खिलाफ लागू कर चुका है. भारत पर भी यह दबाव बनाया गया है कि वह अमेरिका के टैरिफ नियमों का अनुपालन करे, वरना जवाबी कर लगाए जाएंगे. इस प्रकार की नीति, खासकर विकासशील देशों के लिए, एकतरफा आर्थिक नियंत्रण का माध्यम बनती जा रही है.
भारत के लिए होगा घाटे का सौदा
अगर अमेरिका भारत से शून्य कर चाहता है, तो उसे भी भारत के निर्यात को उतनी ही रियायत देनी चाहिए. नहीं तो यह पूरा प्रस्ताव एक असंतुलित व्यापार गठबंधन में बदल जाएगा, जहां अमेरिका को फायदा और भारत को घाटा होगा. इसीलिए भारत को हर डील को राष्ट्रहित और घरेलू उद्योग की सुरक्षा की कसौटी पर तौलना होगा, ना कि कूटनीतिक शो ऑफ में फंसकर समझौते करना चाहिए.