'महिला दूसरे पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, भले ही उसकी...', SC का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला अपने दूसरे पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, भले ही उसकी पहली शादी कानूनी रूप से भंग न हुई हो. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.

सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी को बड़ा फैसला सुनाया. उसने कहा कि पहली शादी कानूनी रूप से भंग न होने पर भी पहले पति से अलग हुई पत्नी दूसरे पति से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है. तलाक का औपचारिक आदेश जरूरी नहीं है. महिला अगर अपने पहले पति से अलग रह रही है तो कानूनी तलाक न होने के बावजूद उसे दूसरे पति से भरण-पोषण मांगने से नहीं रोका जा सकता.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने महिला के दूसरे पति को उसे भरण-पोषण देने से मना कर दिया था, क्योंकि महिला का पहले पति से तलाक नहीं हुआ था.
'यह पति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है'
पीठ ने कहा कि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का अधिकार पत्नी को मिलने वाला लाभ नहीं है, बल्कि यह पति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है. सीआरपीसी की धारा 125 के सामाजिक कल्याण उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इसकी व्यापक व्याख्या की जरूरत है.
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को किया रद्द
शीर्ष अदालत ने 13 अप्रैल, 2017 के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ महिला द्वारा दायर याचिका को स्वीकार किया. हाईकोर्ट ने महिला को 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उसे प्रतिवादी (दूसरा पति) की कानूनी पत्नी नहीं माना जा सकता, क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति के साथ उसकी पहली शादी कानूनी डिक्री के माध्यम से भंग नहीं हुई थी.
प्रतिवादी ने अपीलकर्ता नंबर 1 के साथ दो बार की शादी
पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने स्पष्ट निष्कर्ष निकाला है कि प्रतिवादी को अपीलकर्ता की पहली शादी के बारे में पूरी जानकारी थी. इसलिए, प्रतिवादी ने जानबूझकर अपीलकर्ता नंबर 1 (महिला) के साथ एक बार नहीं, बल्कि दो बार शादी की. महिला ने कोर्ट के सामने अपने पहले पति से अलग होने का समझौता ज्ञापन पेश किया. हालांकि, यह तलाक का कानूनी आदेश नहीं है, लेकिन इस दस्तावेज़ और अन्य साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि महिला ने अपने पहले पति से संबंध समाप्त कर लिए हैं. वे अलग-अलग रह रहे हैं और अपीलकर्ता नंबर 1 अपने पहले पति से भरण-पोषण नहीं ले रही है.
पीठ ने कहा कि कहा कि कानूनी आदेश के अभाव को छोड़कर अपीलकर्ता संख्या 1 वस्तुतः अपने पहले पति से अलग हो चुकी है. उस विवाह के कारण उसे कोई अधिकार या हक नहीं मिल रहा है.
महिला ने 1999 में की पहली शादी
अपीलकर्ता (महिला) ने पहली शादी 30 अगस्त, 1999 को हैदराबाद में की थी. 15 अगस्त, 2000 को विवाहेतर संबंध से एक लड़का पैदा हुआ. फरवरी, 2005 में अमेरिका से लौटने के बाद दंपत्ति के बीच विवाद शुरू हो गया. आखिरकार 25 नवम्बर 2005 को दम्पति के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत उनका विवाह समाप्त हो गया. इस बीच, अपीलकर्ता की अपने पड़ोसी, प्रतिवादी से जान-पहचान हुई और दोनों ने 27 नवंबर 2005 को शादी कर ली.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 12 और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 7 के तहत दायर याचिका पर फरवरी 2006 में उनका विवाह टूट गया. 14 फरवरी, 2006 को अपीलकर्ता नंबर 1 ने प्रतिवादी से दोबारा शादी कर ली. यह दूसरी शादी रजिस्टर हुई और 11 सितंबर, 2006 को हैदराबाद के चिक्कड़पल्ली में विवाह रजिस्ट्रार द्वारा इस आशय का प्रमाण पत्र जारी किया गया.
महिला ने दूसरे पति के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत
28 जनवरी, 2008 को दंपति को एक बेटी हुई. हालांकि, दंपति के बीच फिर से मतभेद पैदा हो गए और महिला ने प्रतिवादी (दूसरा पति) और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के साथ आईपीसी की धारा 498ए, 406, 506, 420 के तहत अपराधों के लिए शिकायत दर्ज कराई.
फैमिली कोर्ट ने पक्ष में सुनाया फैसला
अपीलकर्ता महिला और बेटी ने फैमिली कोर्ट में धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण पोषण के लिए आवेदन किया. 26 जुलाई 2012 को न्यायालय ने महिला और बेटी को भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया. इसके खिलाफ पीड़ित प्रतिवादी ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की. विवादित आदेश के तहत हाईकोर्ट ने बेटी को भरण-पोषण का आदेश बरकरार रखा, लेकिन अपीलकर्ता नंबर 1 को दिए गए भरण पोषण के आदेश को खारिज कर दिया.
पीठ ने मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य (2024) के मामले का हवाला दिया, जिसमें भारत में गृहिणियों की वित्तीय कमजोरी पर जोर दिया गया. इसमें कहा गया है कि पत्नी को भरण पोषण का अधिकार देना पति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है. इसके साथ ही, पीठ ने अपील को स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए भरण पोषण के आदेश को बहाल कर दिया.