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लाल किले पर आजादी के जश्‍न के बीच चर्चा में क्‍यों है यह SUV, कहानी 60 साल पहले गिफ्ट में मिली जीप वैगोनियर की...

79वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर आयोजित समारोह में सबकी नजरें सेना की जीप वैगोनियर पर टिकीं. 1965 में भूटान के राजा द्वारा राष्ट्रपति राधाकृष्णन को दी गई यह गाड़ी आज भारतीय सेना की सेरेमोनियल फ्लीट का हिस्सा है. इसे आधुनिक इंजन से अपग्रेड किया गया है और हर साल स्वतंत्रता दिवस पर यह दिल्ली एरिया GOC को लाल किले तक पहुंचाती है. यह गाड़ी भारत-भूटान की दोस्ती, सेना की परंपरा और आधुनिकता का संगम बनकर एक जीवंत धरोहर बनी हुई है.

लाल किले पर आजादी के जश्‍न के बीच चर्चा में क्‍यों है यह SUV, कहानी 60 साल पहले गिफ्ट में मिली जीप वैगोनियर की...
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 15 Aug 2025 1:08 PM IST

79वें स्वतंत्रता दिवस पर जब पूरा देश देशभक्ति और गर्व की भावना से झूम रहा था, दिल्ली के लाल किले पर आयोजित मुख्य समारोह में कुछ ऐसा हुआ जिसने सभी की नज़रें अपनी ओर खींच लीं. प्रधानमंत्री के गार्ड ऑफ ऑनर के साथ-साथ एक अनोखी और ऐतिहासिक झलक ने भी लोगों का दिल जीत लिया. यह झलक थी जीप वैगोनियर की, जिसने भारतीय सेना के दिल्ली एरिया के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) लेफ्टिनेंट जनरल भवनीश कुमार को लाल किले तक पहुंचाया.

यह साधारण गाड़ी नहीं, बल्कि इतिहास और कूटनीति का जीता-जागता प्रतीक है. 1965 में भूटान के राजा ने इसे भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उपहार स्वरूप भेंट किया था. तभी से यह गाड़ी भारत की धरोहर बन गई. साल 2000 में इसे भारतीय सेना के बेड़े में शामिल किया गया और तब से यह विशेष मौकों पर उपयोग में लाई जाती है.

आज यह गाड़ी सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि भारत-भूटान की दोस्ती, परंपरा और गौरव का प्रतीक है. इस स्वतंत्रता दिवस पर जब यह जीप लाल किले की ओर बढ़ रही थी, तो मानो इतिहास और वर्तमान एक साथ कदमताल कर रहे हों.

जीप वैगोनियर: एक उपहार से राष्ट्रीय धरोहर तक

जीप वैगोनियर की कहानी 1965 से शुरू होती है. भूटान के राजा ने इसे भारत को उपहार में दिया. यह केवल गाड़ी नहीं थी, बल्कि भारत-भूटान के मजबूत रिश्तों की निशानी थी. उस समय इसे भारत के राष्ट्रपति भवन में रखा गया और यह एक विशेष धरोहर की तरह संजोई गई.

सेना के बेड़े में शामिल

साल 2000 में यह गाड़ी भारतीय सेना को सौंपी गई और इसे दिल्ली एरिया मुख्यालय के सेरेमोनियल फ्लीट का हिस्सा बनाया गया. आज भी यह गाड़ी सेना की परंपरा और अनुशासन का अहम हिस्सा बनी हुई है. खास मौकों पर, विशेषकर स्वतंत्रता दिवस पर, यह जीप सबसे आगे रहती है.

Image Credit: ANI

तकनीकी और ऐतिहासिक महत्व

जीप वैगोनियर 1962 से 1991 तक लगातार बनी. यह दुनिया की पहली ऐसी गाड़ियों में से थी जिसने SUV (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल) की पहचान बनाई. इसका डिज़ाइन 29 साल तक लगभग बिना बदलाव के चला और यह अमेरिकी ऑटोमोबाइल इतिहास की तीसरी सबसे लंबी अवधि तक बनने वाली गाड़ियों में गिनी जाती है. साल 2021 में जीप कंपनी ने इसका आधुनिक वर्ज़न लॉन्च किया, लेकिन भारतीय सेना के पास मौजूद यह वैगोनियर आज भी अपनी विंटेज खूबसूरती बरकरार रखे हुए है. इसे कारगर बनाए रखने के लिए इसमें फोर्ड एंडेवर का 2500CC इंजन लगाया गया है.

परंपरा और आधुनिकता का संगम

यह गाड़ी हर साल स्वतंत्रता दिवस पर दिल्ली एरिया GOC को मुख्यालय से लाल किले तक पहुंचाती है. इस बार भी लेफ्टिनेंट जनरल भवनीश कुमार इसी जीप में सवार होकर लाल किले पहुंचे. यह पल इतिहास, गौरव और अनुशासन का शानदार संगम था.

भारतीय सेना और धरोहर संरक्षण

भारतीय सेना हमेशा से परंपराओं और धरोहरों को सहेजने में अग्रणी रही है. जीप वैगोनियर इसका जीवंत उदाहरण है. सेना ने इसे न सिर्फ संरक्षित किया बल्कि उपयोगी बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक भी जोड़ी. यही वजह है कि यह गाड़ी आज भी स्वतंत्रता दिवस जैसे मौकों पर चमकती नजर आती है.

भारत-भूटान संबंधों की मिसाल

यह गाड़ी दोनों देशों के बीच की गहरी दोस्ती और विश्वास का प्रतीक है. 1965 में दिए गए इस उपहार ने समय की कसौटी पर अपनी अहमियत साबित की है. आज भी यह दोनों देशों की ऐतिहासिक साझेदारी और मजबूत रिश्तों की याद दिलाती है.

लाल किले पर जब झंडा फहराया गया और सेना का मार्च पास्ट हुआ, तो लोगों की नजरें बार-बार इस जीप की ओर मुड़ती रहीं. यह गाड़ी आज भी भीड़ में अपनी खास जगह बना लेती है.

समय से आगे की कहानी

एक दौर था जब वैगोनियर को साधारण “स्टेशन वैगन” कहा जाता था. लेकिन यही गाड़ी आज SUVs की जननी कहलाती है. इसने न सिर्फ ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की दिशा बदली, बल्कि भारत में यह एक ऐतिहासिक प्रतीक के रूप में अमर हो गई. आज जब भारत 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, तब जीप वैगोनियर की मौजूदगी ने समारोह को और ऐतिहासिक बना दिया. यह गाड़ी सिर्फ लोहे और मशीन का ढांचा नहीं, बल्कि कूटनीति, परंपरा और अनुशासन की कहानी है. आने वाली पीढ़ियों के लिए यह बताती है कि कैसे एक उपहार समय के साथ एक देश की पहचान और गौरव का हिस्सा बन सकता है.

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