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सोशल मीडिया पर अपने कामों का प्रचार क्‍यों नहीं कर सकते वकील, बार काउंसिल क्‍यों लगा रही रोक?

कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल (KSBC) ने सोशल मीडिया पर वकीलों द्वारा अपने काम का प्रचार करने पर कड़ा रुख अपनाया है और आठ वकीलों को नोटिस जारी किए. रिपोर्ट के अनुसार, वकील रील और वीडियो बनाकर सीधे ग्राहकों को आकर्षित कर रहे थे, जिसे पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन माना गया. भारत में वकीलों को विज्ञापन करना एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत प्रतिबंधित है.

सोशल मीडिया पर अपने कामों का प्रचार क्‍यों नहीं कर सकते वकील, बार काउंसिल क्‍यों लगा रही रोक?
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 10 Oct 2025 11:44 AM IST

कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल (KSBC) ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपने काम का प्रचार करने वाले वकीलों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है. काउंसिल ने आठ वकीलों को शो-कॉज़ नोटिस जारी किया क्योंकि उन्होंने अपने प्रचारात्मक रील और वीडियो हटाने से इनकार किया. यह कार्रवाई 15 अगस्त, 2025 को पास की गई एक प्रस्तावना के बाद की गई, जिसमें राज्य के सभी वकीलों से कहा गया था कि वे 31 अगस्त तक कोई भी ऐसा ऑनलाइन कंटेंट हटा दें जो काम मांगने या ग्राहक आकर्षित करने के रूप में देखा जा सके.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, KSBC ने यह भी नोट किया कि कुछ वकील “कार में, पेड़ों के नीचे और फुटपाथ पर” रील बनाकर सीधे तौर पर ग्राहकों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे थे. काउंसिल ने इसे अप्रोफेशनल और पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया.

यह कदम कर्नाटक में देश भर के बार काउंसिलों की उन पहलों की नवीनतम कड़ी है, जो वकीलों द्वारा विज्ञापन पर लंबे समय से लगे प्रतिबंध को लागू करने के प्रयास हैं. डिजिटल युग में सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के बढ़ते प्रभाव के चलते यह नियम अब और चुनौतीपूर्ण बन गया है. इस वर्ष की शुरुआत में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और दिल्ली, पंजाब व हरियाणा के बार काउंसिल ने भी इसी तरह के निर्देश जारी किए थे.

वकीलों पर विज्ञापन पर रोक का कानूनी ढांचा

भारत में वकीलों को अपने सेवाओं का प्रचार या काम मांगना सख्ती से प्रतिबंधित है. इसका आधार है एडवोकेट्स एक्ट, 1961. एक्ट की धारा 49(1)(c) बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह शक्ति देती है कि वह वकीलों के लिए पेशेवर आचार और शिष्टाचार के नियम बना सके. इस अधिकार का उपयोग करते हुए BCI ने Bar Council of India Rules बनाए. इन नियमों के Part VI, Chapter II, Rule 36 में स्पष्ट कहा गया है: "एक वकील सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से, सर्कुलर, विज्ञापन, व्यक्तिगत संचार, अनावश्यक साक्षात्कार, समाचार पत्र टिप्पणियों या अपने फोटो को मामले से जोड़कर प्रकाशित कराना आदि के माध्यम से काम की मांग नहीं करेगा."

रोक के पीछे तर्क

इस प्रतिबंध का मूल आधार यह मानना है कि कानूनी पेशा एक नोबल सेवा है, व्यवसाय नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इसे रेखांकित किया है. Bar Council of Maharashtra v MV Dabholkar (1975) के मामले में जस्टिस वी कृष्णा अय्यर ने कहा था, "कानून व्यापार नहीं है, ब्रिफ्स कोई माल नहीं, और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा या ग्राहकों की खोज से पेशे की गरिमा गिर सकती है." 1995 में Indian Council of Legal Aid & Advice v Bar Council of India के फैसले में कोर्ट ने कहा कि कानून एक “उच्च पेशा” है और इसमें लगे लोगों की समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारियां होती हैं. विज्ञापन की अनुमति देने से पेशे की गरिमा और जनता का विश्वास कम हो सकता है. 2008 में थोड़ी ढील दी गई थी, जिसके तहत वकील अपनी वेबसाइट पर बुनियादी जानकारी दे सकते हैं - नाम, संपर्क विवरण, योग्यता, एनरोलमेंट नंबर और कार्यक्षेत्र। लेकिन सक्रिय प्रचार या काम मांगना अभी भी प्रतिबंधित है.

ऑनलाइन लीगर डायरेक्‍टरीज पर रोक

जुलाई 2024 में मद्रास हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ऑनलाइन कानूनी निर्देशिकाओं (Online Legal Directories) में भी विज्ञापन प्रतिबंध लागू होता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि “कानूनी पेशे में ब्रांडिंग संस्कृति समाज के लिए हानिकारक है और पेशे की आत्मा को नीचा दिखाती है.” इसके बाद BCI ने सभी राज्य बार काउंसिलों को निर्देश दिए कि वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वकीलों द्वारा विज्ञापन के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें.

कैसे हुई कार्रवाई की शुरुआत?

हाल की कड़ी कार्रवाई की शुरुआत DSK Legal के प्रचार वीडियो से हुई, जिसमें अभिनेता राहुल बोस ने भाग लिया था. इसके बाद 17 मार्च, 2025 को BCI ने “सेल्फ-स्टाइल्ड लीगल इन्फ्लुएंसर्स” के बढ़ते चलन पर कड़ा बयान जारी किया. BCI ने विशेष रूप से सोशल मीडिया, प्रचार वीडियो और सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट के इस्तेमाल की निंदा की और कहा कि इससे जनता में गलत जानकारी और न्यायालय पर अनावश्यक दबाव पड़ता है. इस निर्देश के बाद दिल्ली और पंजाब-हरियाणा बार काउंसिल ने जुलाई और अगस्त में अपने नोटिस जारी किए. इन नोटिसों में चेतावनी दी गई कि सोशल मीडिया और प्रचार सामग्री के जरिए काम मांगना पेशेवर कदाचार माना जाएगा, जिससे वकील का लाइसेंस सस्पेंड या रद्द हो सकता है. कर्नाटक ने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सभी वकीलों के लिए सोशल मीडिया कंटेंट हटाने की अंतिम तिथि तय की, और यह पहला ऐसा कदम था जिसमें डेडलाइन के साथ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान रखा गया.

सोशल मीडिया और डिजिटल मार्केटिंग के युग में, वकीलों द्वारा प्रचार पर रोक अब पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है. जबकि कानून और कोर्ट के फैसले स्पष्ट हैं, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वकीलों की उपस्थिति लगातार बढ़ रही है. कर्नाटक और अन्य राज्यों की बार काउंसिलों की हाल की कार्रवाई इस बात का संकेत है कि पेशे की गरिमा और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए नियमों को सख्ती से लागू किया जाएगा.

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