Ganoji और Kanhoji Shirke के वंशज क्यों कर रहे हैं छावा का विरोध? जानिए इस कुल का इतिहास
विक्की कौशल की फिल्म छावा छत्रपति संभाजी महाराज की जीवन की कहानी है. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन कर रही है, लेकिन मूवी को लेकर विवाद जारी है. जहां हाल ही में मराठा योद्धाओं गनोजी और कान्होजी शिर्के के वंशज ने दावा किया है कि फिल्म में उनके परिवार को गलत तरीके से पेश किया है.
विक्की कौशल की फिल्म छावा 14 फरवरी को थिएटर्स में रिलीज हुई थी. यह फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आ रही है. इसके चलते ही छत्रपति संभाजी महाराज पर बनी इस फिल्म ने 300 करोड़ से ज्यादा रुपये की कमाई कर ली है. हालांकि, जहां एक तरफ लोग इसे पसंद कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर फिल्म को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं.
पहले लेजिम डांस को लेकर फिर अब मराठा योद्धाओं गनोजी और कान्होजी शिर्के के वंशज ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस फिल्म में उनके पूर्वजों को गलत तरीके से दिखाया गया है. साथ ही, मेकर्स खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा दायर करने की भी धमकी दी है. ऐसे में अब जानते हैं कि आखिर गणोजी और कान्होजी शिर्के का इतिहास क्या है?
750 साल पुराना है इतिहास
गणोजी और कान्होजी शिर्के का इतिहास 750 साल पुराना है. कहा जाता है कि उन्होंने पुणे, गोवा, मुंबई और कोंकण के कुछ हिस्सों पर राज किया था. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मराठा इतिहास में इस वंश के सरदार पिलाजी राजे शिर्के और उनके बच्चों गणोजी और महारानी येसुबाई भोसले का जरूरी योगदान रहा है.
येसुबाई की बेटी से हुआ विवाह
यह बात साल 1664 की है, जब महारानी येसुबाई भोसले का विवाह छत्रपति संभाजी महाराज से हुआ था. इस शादी से छत्रपति शिवाजी महाराज की बेटी राजकुंवर हुई, जिसका विवाह येसुबाई भोसले के भाई गणोजी शिर्के से किया गया था. दीपक राजे शिर्के ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में स्वराज के लिए लड़ने के लिए कई छोटे शासक एक-साथ मिल गए थे. इनमें से एक शिर्के भी थे. जहां संयोग से रायगढ़ किला 350 साल तक शिर्के परिवार के पास था.'
गणोजी ने किया था मुगलों से गठबंधन!
दरअसल यह इतिहास बेहद जटिल है, क्योंकि कहा जाता है कि शिर्के बंधुओं ने संभाजी महाराज को धोखा दिया था. हालांकि, इस पर इतिहासकारों के अलग-अलग विचार हैं. कमल गोखले ने शिवपुत्र संभाजी की जीवनी लिखी थी, जिसमें बताया गया है कि गणोजी और उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने 1682-83 में ही मुगलों के साथ मिल गए होंगे.
कौन है कवि कलश?
हालांकि, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर राहुल मगर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'मुगल पक्ष के इतिहासकार जैसे निकोलाओ मनुची और ईश्वर दास नागर का कहना है कि कवि कलश मुगल जासूस थे. ऐसे में निष्कर्ष यह निकलता है कि संभाजी राजे को धोखा दिया गया था, लेकिन उन्हें इसके दो अलग-अलग वर्जन मिले हैं. ' बता दें कि कवि कलश छत्रपति संभाजी के करीबी दोस्त थे.
'कोई सबूत नहीं'
शिर्के परिवार का दावा है कि उनके पूर्वजों ने संभाजी महाराज को धोखा दिया था. यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है. 2009 में इस परिवार ने डायरेक्टोरेट ऑफ आर्काइव्स के साथ एक आरटीआई फाइल किया था, जिसने जवाब दिया था कि मुगलों द्वारा संभाजी महाराज के कब्जे से गनोजी और कान्होजी शिर्के को जोड़ने वाले दस्तावेजी सबूतों का कोई सबूत नहीं था.





