क्या दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकना सही नहीं? पांच प्वाइंट में समझें केंद्र ने SC में क्या कहा
दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उसी याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि अयोग्यता की अवधि तय करना पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में है. तो आइए पांच प्वाइंट में समझते हैं सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है.

किसी भी अपराध के लिए दोषी पाए जाने वाले नेताओं पर क्या हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा देना चाहिए? इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि आजीवन प्रतिबंध ज्यादा कठोर सजा होगी और मौजूदा 6 साल का प्रतिबंध पर्याप्त है. दरअसल वकील अश्विनी उपाध्याय ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उसी याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि अयोग्यता की अवधि तय करना पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में है. तो आइए पांच प्वाइंट में समझते हैं सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है.
केंद्र ने क्या कहा सुप्रीम कोर्ट में...
- केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में साफ कहा कि दोषी नेताओं पर प्रतिबंध कितने समय तक के लिए लगाया जाए, यह तय करना सिर्फ संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. सरकार ने इस मांग को लेकर दायर याचिका का विरोध किया और कहा कि कानून से ही एक संतुलित सजा का प्रावधान है.
- केंद्र ने आगे हलफनामे में कहा कि 'ताउम्र प्रतिबंध' उचित होगा या नहीं. यह पूरी तरह से संसद का विषय हैं. सरकार ने तर्क दिया कि सजा की अवधि सीमित रखने से संतुलन बना रहता है और यह न्यायिक कठोरता को भी रोकता है.
- संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि चुनाव लड़ने की योग्यता और अयोग्यता तय करे.
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम संसद द्वारा पारित कानून है, और इसमें संसद ने पहले से ही अपराधियों के लिए 6 साल के प्रतिबंध का प्रावधान रखा है.
- अन्य अयोग्यता के आधार भी स्थायी नहीं हैं – जैसे दिवालियापन, लाभ के पद पर होना आदि. तो सिर्फ दोषसिद्धि के आधार पर आजीवन बैन क्यों हो?
इस समय में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के मुताबिक, सजा पूरी होने के बाद दोषी नेता 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, याचिकाकर्ता इस अवधि को आजीवन करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि यह तय करना कि 6 साल पर्याप्त हैं या आजीवन बैन जरूरी है. इस संसद का विशेषाधिकार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से इस मामले पर जवाब मांगा था. चुनाव आयोग अभी इस पर अपनी राय नहीं दे सका है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम संसद द्वारा पारित कानून है, और इसमें संसद ने पहले से ही अपराधियों के लिए 6 साल के प्रतिबंध का प्रावधान रखा है.