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कौन होगा CPM (M) का नया अध्‍यक्ष, क्‍या बिहार और बंगाल चुनाव से पहले पार्टी में फूंक सकते हैं नई जान?

CPM (M) New President: रविवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के नए महासचिव का चुनाव होगा. पार्टी के कई नेताओं के नाम इस रेस में सामने आए हैं. सबसे आगे एम.ए. बेबी और अशोक धावले चल रहे हैं. हालांकि धावले को ज्यादा लोगों का समर्थन मिल रहा है. कई नेता मानते हैं कि अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने में वे मददगार साबित हो सकते हैं.

कौन होगा CPM (M) का नया अध्‍यक्ष, क्‍या बिहार और बंगाल चुनाव से पहले पार्टी में फूंक सकते हैं नई जान?
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निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 6 April 2025 2:11 PM IST

CPM (M)New President: देश भर इन दिनों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के अगले महासचिव के चुनाव को लेकर चर्चा हो रही है. हर कोई जानना चाहता है कि पार्टी की बागडोर अब किसके हाथ में होगी. अलग-अलग नेताओं के नाम सामने आए हैं, जिसमें सबसे आगे 2012 से पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे एम.ए. बेबी सबसे आगे हैं.

जानकारी के अनुसार, नए महासचिव के चुनाव में एम.ए. बेबी और अशोक धावले के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि इन दोनों में से किसी एक को चुना जाएगा. हालांकि अब देखना होगा कि परिणाम क्या होता है.

किसको- किसका समर्थन

सीपीआई पार्टी का एक वर्ग अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के अध्यक्ष अशोक धावले को महासचिव बनते देखना चाहता है. उनका मानना है कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी के विस्तार के लिए कृषि मुद्दों को ज्यादा अहमियत दी जानी चाहिए. धावले को पश्चिम बंगाल यूनिट का समर्थन मिला हुआ है. कई नेता मानते हैं कि अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने में वे मददगार साबित हो सकते हैं.

एम.ए. बेबी की जीत का भी अनुमान लगाया जा रहा है. अगर बेबी महासचिव बनते हैं तो कांग्रेस और सीपीआई(एम) केरल में आमने-सामने होने के कारण गठबंधन में दिक्कत आ सकती है. पोलित ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य मोहम्मद सलीम का नाम इस रेस में शामिल है. हालांकि उन्होंने बंगाल यूनिट के सचिव पद पर बने रहने की इच्छा जताई है. तेलंगाना के वरिष्ठ नेता बी.वी. राघवुलु और ब्रिंदा करात के नाम भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं. सीपीआई(एम) ने 75 साल की उम्र सीमा तय की है, लेकिन कुछ मामलों में छूट दी जा सकती है.

केरल और पश्चिम बंगाल के समूह नाराज

साल 1996 ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था. उस समय सीपीआई(एम) के केरल गुट ने इसका विरोध किया था. फिर 2007 में पार्टी ने मनमोहन सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. तब भी मुद्दे पर दोनों समूह के विचार अलग थे. लेने के मुद्दे पर भी दोनों गुटों की राय अलग थी. बता दें कि 2015 में महासचिव पद के लिए सीताराम येचुरी चुने गए थे, जबकि केरल गुट एस.आर. पिल्लई के समर्थन में था.

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