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24 घंटे के अंदर भीतर मकानों को गिराना कहां का न्याय... सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बिना पर्याप्त नोटिस के घरों को गिराने पर यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन बताया और प्रभावित मकान मालिकों को पुनर्निर्माण की अनुमति दी. कोर्ट ने कहा कि प्रशासन को निष्पक्षता से काम करना चाहिए और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है.

24 घंटे के अंदर भीतर मकानों को गिराना कहां का न्याय... सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई फटकार
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 25 March 2025 8:50 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में 24 घंटे के भीतर घरों को तोड़ने करने की कार्रवाई पर उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने इसे 'न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरने वाला' करार दिया और संकेत दिया कि वह प्रभावित मकान मालिकों को अपने घरों का पुनर्निर्माण करने की अनुमति दे सकती है, बशर्ते कि मामला लंबित होने तक वे कुछ शर्तों का पालन करें. यह मामला 2021 में एक वकील, एक प्रोफेसर और अन्य लोगों के घरों को तोड़े जाने से जुड़ा है.

जज अभय ओका और जज एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार की कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे मनमाना करार दिया. अदालत ने कहा कि मात्र 24 घंटे के भीतर मकानों को गिराना न्यायसंगत नहीं है और इस तरह की प्रक्रिया अस्वीकार्य है. याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उन्हें विध्वंस नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया, जबकि राज्य सरकार ने इस दावे का विरोध किया.

नोटिस के अगले दिन गिरा दिया गया घर

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को पर्याप्त समय दिया गया था. उन्होंने कहा कि पहला नोटिस दिसंबर 2020 में जारी हुआ था, और बाद में जनवरी तथा मार्च 2021 में भी नोटिस दिए गए थे. हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1 मार्च 2021 को विध्वंस नोटिस जारी हुआ, 6 मार्च को सौंपा गया और 7 मार्च को घरों को गिरा दिया गया.

नहीं किया जायेगा नजर अंदाज

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नोटिस की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं. अदालत ने कहा कि नोटिस देना कानूनन उचित तरीका नहीं है, और केवल अंतिम नोटिस ही सही ढंग से दिया गया था. अदालत ने आगे कहा कि यदि ऐसी प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया गया, तो यह अन्य मामलों में भी दोहराया जाएगा. इसलिए, अदालत ने प्रभावित मकान मालिकों को अपने खर्च पर पुनर्निर्माण करने की अनुमति देने का फैसला किया, लेकिन यह शर्त रखी कि अगर उनकी अपील खारिज हो जाती है, तो उन्हें फिर से अपने खर्च पर ही मकानों को गिराना होगा.

मनमानी नहीं होगी बर्दाश्त

इस मामले में याचिकाकर्ता वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और तीन अन्य लोग हैं, जिनके घर प्रयागराज में गिरा दिए गए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि ऐसी मनमानी कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी और प्रशासन को कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करना होगा.

सुप्रीम कोर्ट
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