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चुनाव से जुड़े नियमों में हुआ संशोधन तो बीजेपी पर भड़की कांग्रेस, इलेक्शन कमीशन पर भी उठाए सवाल

केंद्र सरकार ने सीसीटीवी फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की सार्वजनिक जांच को रोकने के लिए चुनाव नियम में संशोधन किया है. इस कदम की कांग्रेस ने कड़ी आलोचना की है. जयराम रमेश ने कहा कि यह चुनावी प्रक्रिया की तेजी से खत्म होती अखंडता के पार्टी के दावे की पुष्टि है.

चुनाव से जुड़े नियमों में हुआ संशोधन तो बीजेपी पर भड़की कांग्रेस, इलेक्शन कमीशन पर भी उठाए सवाल
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Election Conduct Rules 1961: केंद्र सरकार ने चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन किया है. यह संशोधन सीसीटीवी फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की सार्वजनिक जांच को रोकने के लिए किया गया है. हालांकि, इस कदम की कांग्रेस ने कड़ी आलोचना की है. सांसद जयराम रमेश ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह संशोधन चुनावी प्रक्रिया की तेजी से खत्म होती अखंडता के कांग्रेस के दावे की पुष्टि है. उन्होंने चुनाव आयोग पर भी सवाल खड़े किए.

जयराम रमेश ने X पर एक पोस्ट में लिखा कि हाल के दिनों में भारत के चुनाव आयोग की ओर से मैनेज किए जाने वाले चुनावी प्रक्रिया में तेजी से कम होती सत्यनिष्ठा से संबंधित हमारे दावों का जो सबसे स्पष्ट प्रमाण सामने आया है, वह यही है. पारदर्शिता और खुलापन भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों को उजागर करने और उन्हें खत्म करने में सबसे अधिक मददगार होते हैं और जानकारी इस प्रक्रिया में विश्वास बहाल करती है. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसी तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग को सभी जानकारी साझा करने का निर्देश दिया.


'चुनाव आयोग डरता क्यों है'

रमेश ने कहा कि ऐसा जनता के साथ करना कानूनी रूप से जरूरी भी है, लेकिन चुनाव आयोग फैसले का अनुपालन करने के बजाय, शेयर किए जाने वाली चीजों की लिस्ट को कम करने के लिए कानून में संशोधन करने में जल्दबाजी करता है. उन्होंने कहा कि आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है? आयोग के इस कदम को जल्द ही कानूनी चुनौती दी जाएगी.


चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में किया गया संसोधन

इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय विधि मंत्रालय ने 20 दिसंबर को चुनाव आयोग की सिफारिश पर चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया है, ताकि सार्वजनिक जांच के लिए खुले दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके. चुनाव संचालन नियमों के पहले के नियम 93(2)(ए) में कहा गया था- चुनाव से संबंधित सभी अन्य कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे. वहीं, नियम के संशोधित संस्करण में कहा गया है - इन नियमों में चुनाव से संबंधित निर्दिष्ट सभी अन्य कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे.

सरकार ने क्यों किया नियमों में संशोधन?

विधि मंत्रालय और चुनाव अधिकारियों ने बताया कि एक अदालती मामले के कारण सरकार को नियमों में संशोधन करना पड़ा. चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, "ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नियमों का हवाला देते हुए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं. संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि केवल नियमों में उल्लिखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे. तथा कोई अन्य दस्तावेज, जिसका नियमों से कोई संबंध नहीं है, उसे सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी."


चुनाव संचालन नियमों में उल्लेखनीय नामांकन फॉर्म, मतदान एजेंटों की नियुक्तियां, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेज़ सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध रहेंगे. हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ इस दायरे से बाहर रहेंगे. चुनाव अधिकारियों ने आशंका जताई कि मतदान केंद्र के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने की अनुमति देने से इसका दुरुपयोग हो सकता है और मतदाता गोपनीयता से समझौता हो सकता है. उन्होंने कहा कि इस तरह की सभी सामग्री उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध है, जिसमें फुटेज भी शामिल है. संशोधन के बाद भी यह उनके लिए उपलब्ध होगी, लेकिन अन्य लोग ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए हमेशा अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

हाल ही में, अधिवक्ता महमूद प्राचा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर डाले गए मतों से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और दस्तावेजों की प्रतियां मांगी थीं, जिसमें भाजपा ने जीत हासिल की थी. उनकी याचिका पर संज्ञान लेते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह प्राचा द्वारा मांगे गए आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराए.

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