बीजेपी के नए अध्यक्ष के सामने क्या होंगी चुनौतियां? जानें क्यों दक्षिण भारत से ही नया चेहरा चाहती है पार्टी
बीजेपी को बहुत जल्द नया अध्यक्ष मिलने वाला है. उम्मीद जताई जा रही है कि दक्षिण भारत से ही कोई चेहरा होगा. जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी के सामने दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में विस्तार, ओबीसी और ईसाई समुदायों तक पहुंच बनाना और संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी होगी. पार्टी नए अध्यक्ष के चयन में क्षेत्रीय संतुलन पर ध्यान दे सकती है.

बीजेपी को बहुत जल्द नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. संगठन के अंदर चुनावी प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है. मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा की अध्यक्षता का कार्यकाल जल्द समाप्त होने वाला है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार का राष्ट्रीय अध्यक्ष दक्षिण क्षेत्र के बन सकते हैं ताकि उन क्षेत्रों में भी बीजेपी को मजबूत किया जा सके.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अपने कार्यकाल में नड्डा ने बीजेपी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 26 जीत दिलाई, जो पार्टी के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड था. उन्होंने 2023 के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को फिर से बीजेपी के खाते में डलवाया.
अमित शाह का क्या था रिकॉर्ड?
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष थे. चुनाव के बाद जब जेपी नड्डा ने पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला तो उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी थी. अमित शाह ने 2014 में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने और तीन साल बाद उत्तर प्रदेश में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके कार्यकाल में बीजेपी ने उत्तराखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, झारखंड, असम और त्रिपुरा में जीत दर्ज की, जबकि नागालैंड और मेघालय में भी मजबूती हासिल की थी. हालांकि, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण हिंदी पट्टी राज्यों में पार्टी को झटका लगा और दिल्ली में भी हार का सामना करना पड़ा था.
जेपी नड्डा बने अध्यक्ष
अमित शाह का कार्यकाल तब समाप्त हुआ जब बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 303 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी. नड्डा को पहले जून 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और फिर जनवरी 2020 में सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. नड्डा का पीएम मोदी और अमित शाह के साथ बेहतर रिश्ता था. उन्हें पार्टी में अच्छा श्रोता और शॉक एब्जॉर्बर माना जाता था, जो कठिन निर्णयों को बिना किसी नाराजगी के लागू करवा सकते थे. उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 26 जीत दिलावाई थी.
आरएसएस से मतभेद
2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी अब अपने फैसले खुद ले सकती है और उसे पहले की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. इस बयान से बीजेपी और संघ के बीच मतभेद सामने आए, जिसे बीजेपी की कमजोर लोकसभा प्रदर्शन का एक कारण माना गया. पार्टी की सीटें 303 से घटकर 242 रह गईं और इसके कुछ ओबीसी वोट विपक्ष की ओर खिसक गए. हालांकि, इससे नड्डा की राजनीतिक साख को नुकसान नहीं हुआ. उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और पार्टी अध्यक्ष के रूप में भी विस्तार मिला. इसके बाद बीजेपी ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में जीत हासिल कर लोकसभा चुनाव की निराशा को पीछे छोड़ दिया.
नड्डा के उत्तराधिकारी के लिए चुनौतियां
नए बीजेपी अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण भारत में पार्टी की पकड़ मजबूत करना होगी. शाह और नड्डा के नेतृत्व में पार्टी ने उत्तर, पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर में तेजी से विस्तार किया, लेकिन दक्षिण भारत में अब भी बीजेपी की स्थिति कमजोर बनी हुई है. कर्नाटक में 2023 में सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी के लिए केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में पैर जमाना मुश्किल साबित हो रहा है, जबकि आंध्र प्रदेश में बीजेपी अपने गठबंधन में सबसे कमजोर सहयोगी बनी हुई है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने स्वीकार किया है कि दक्षिण भारत में बीजेपी को अब भी उत्तर भारतीय और हिंदी भाषी पार्टी के रूप में देखा जाता है.
दक्षिण भारत से होगा नया अध्यक्ष!
नए बीजेपी अध्यक्ष की नियुक्ति पार्टी के लिए दक्षिण भारत में नए विस्तार की शुरुआत होगी. यही वजह है कि नड्डा के उत्तराधिकारी के रूप में दक्षिण भारत से किसी नेता को चुने जाने की चर्चा तेज हो गई है. हालांकि नेतृत्व ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन पार्टी के भीतर कर्नाटक से केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, तेलंगाना से केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी और ओबीसी मोर्चा प्रमुख के लक्ष्मण के नाम चर्चा में हैं. दक्षिण और पूर्वोत्तर में विस्तार के लिए पार्टी को ईसाई और जनजातीय समुदायों के बीच अपनी पैठ बनानी होगी. तमिलनाडु और केरल की जटिल राजनीति में सफलता हासिल करने के लिए ये समुदाय अहम भूमिका निभा सकते हैं, वहीं पूर्वोत्तर में भी इनका समर्थन जरूरी होगा.