क्या है गोवा के लैराई देवी मंदिर में होने वाली श्री लैराई 'जात्रा'? हर साल जलते अंगारों पर भक्त देते हैं अग्निपरीक्षा
श्री लैराई 'जात्रा' गोवा के शिरगांव (बिचोलिम तालुका, उत्तर गोवा) में स्थित श्री लैराई देवी मंदिर में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू धार्मिक उत्सव है. यह उत्सव हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में पड़ता है.

गोवा के उत्तरी जिले के श्रीगाओ गांव स्थित प्रसिद्ध लैराई देवी मंदिर में शनिवार को हुई भगदड़ में कम से कम छह श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि 15 से अधिक लोग घायल हो गए. यह हादसा श्री देवी लैराई यात्रा के दौरान हुआ, जो शुक्रवार से शुरू हुई थी और इसमें हजारों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया था. एएनआई के अनुसार, उत्तरी गोवा के पुलिस अधीक्षक अक्षत कौशल ने बताया कि यात्रा के मद्देनज़र सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए करीब 1,000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे और ड्रोन की मदद से निगरानी भी की जा रही थी.
इसके बावजूद, भारी भीड़ के कारण भगदड़ जैसी स्थिति बन गई, जिसमें कई लोग घायल हो गए और कुछ की जान चली गई. घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज जारी है. प्रशासन ने हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं. यह वार्षिक यात्रा गोवा की सबसे प्रसिद्ध धार्मिक परंपराओं में से एक मानी जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी लैराई के दर्शन और अग्निपरीक्षा में भाग लेने आते हैं. हालांकि कई देश के अन्य राज्य के लोग प्रसिद्ध लैराई यात्रा से अनजान है आखिर यह कब और क्यों मनाई जाती है.
क्या है लैराई यात्रा?
श्री लैराई 'जात्रा' गोवा के शिरगांव (बिचोलिम तालुका, उत्तर गोवा) में स्थित श्री लैराई देवी मंदिर में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू धार्मिक उत्सव है. यह उत्सव हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में पड़ता है. यह गोवा के सबसे खास और अनोखे धार्मिक आयोजनों में से एक है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक से शामिल होते हैं. यह यात्रा देवी लैराई के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, जिन्हें शक्ति का रूप और सप्तमातृका (सात मातृ शक्तियों) में से एक माना जाता है, साथ ही, यह उत्सव गोवा की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को भी दर्शाता है.
धार्मिक और पौराणिक मान्यता
लैराई देवी को सप्तमातृकाओं में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि ये सात बहनें हैं, लैराई, केलबाई, महामाया, मिराबाई, मोरजाई, शीतलई और अंजदीपा और इनके साथ एक भाई खेतोबा भी हैं. एक प्रचलित लोककथा के अनुसार, चोरला घाट के रास्ते से ये सभी भाई-बहन एक हाथी पर सवार होकर गोवा आए थे, चोरला घाट के रास्ते से. माना जाता है कि लैराई देवी ने शिरगांव को अपना निवास स्थान चुना और तब से वहां उनकी उपस्थिति को गांव की समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है. एक अन्य कथा के अनुसार, लैराई देवी और उनके भाई खेतोबा के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया, जिससे दोनों अलग हो गए. इसी घटना की याद में आज भी 'अग्निदिव्य' नाम की रस्म यानी अग्निपरीक्षा की परंपरा निभाई जाती है.
होमकुंड पर चलने की रस्म
जात्रा का सबसे खास और रोमांचक हिस्सा होता है 'अग्निदिव्य', जिसमें भक्त जिन्हें 'धोंड' कहा जाता है वह जलते हुए अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं. यह रस्म तड़के करीब 4 बजे शुरू होती है, जब लकड़ियों से बने बड़े होमकुंड की आग शांत होकर अंगारों में बदल जाती है और उन्हें ज़मीन पर बिछाया जाता है. धोंड पारंपरिक पोशाक पहनते हैं जैसे सादा धोती, सिर पर लाल फेटा और हाथ में 'वेटाची काठी' नाम की खास छड़ी होती है. वे लैराई माता का नाम लेते हुए धीरे-धीरे अंगारों पर चलते हैं. मान्यता है कि जिनकी श्रद्धा सच्ची होती है, उन्हें आग कोई नुकसान नहीं पहुंचाती, जबकि अधर्मी व्यक्ति डर के मारे जल्दी-जल्दी दौड़ते हैं. यह रस्म भक्ति, साहस और शुद्धता का प्रतीक मानी जाती है. कुछ धोंड यह अग्निपथ एक बार पार करते हैं, जबकि कुछ इसे कई बार पार करते हैं. रस्म पूरी होने के बाद वे अपनी मोगरे की मालाएं पास के एक बरगद के पेड़ पर अर्पित करते हैं.
वर्जिन मैरी की बहन हैं लैराई देवी
जात्रा गोवा की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सौहार्द का सुंदर उदाहरण है. यहां लैराई देवी को मापुसा की मिलाग्रेस सायबिन (वर्जिन मैरी) की बहन माना जाता है. इसी मान्यता के तहत हिंदू और कैथोलिक समुदाय एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं. उदाहरण के लिए, लैराई देवी की जतरा के समय मिलाग्रेस चर्च से मोगरे के फूल भेजे जाते हैं, जबकि मिलाग्रेस सायबिन के पर्व पर लैराई मंदिर की ओर से तेल भेजा जाता है. यह परंपरा न केवल धार्मिक सहयोग का प्रतीक है, बल्कि गोवा की गहरी सांस्कृतिक जड़ों और आदिवासी परंपराओं को भी दर्शाती है.