एडविना और अल्बर्ट आइंस्टीन को लिखे नेहरू के पत्रों में ऐसा क्या था?
Nehru Letter To Edvina and JP: प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी (PMML) ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा एडविना और आइंस्टीन को लिखे पत्रों को रिटर्न करने के लिए राहुल गांधी को पत्र लिखा है. इन पत्रों को 2008 में सोनिया गांधी ने PMML से वापस मंगा लिया था. सोनिया गांधी से सितंबर में भी पत्रों को वापस करने की मांग की गई थी।

Nehru Letter To Edvina and JP: प्रधानमंत्री संग्रहालय और लाइब्रेरी (PMML) ने पहली बार भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा एडविना माउंटबेटन, जयप्रकाश नारायण, अल्बर्ट आइंस्टीन और अन्य को लिखे पत्रों को रिटर्न करने के लिए कांग्रेस सांसद व लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखा है. इन पत्रों को 2008 में सोनिया गांधी ने अपने पास मंगवा लिया था. अहमदाबाद के रहने वाले इतिहासकार और पीएमएमएल के सदस्य रिजवान कादरी ने 10 दिसंबर को राहुल गांधी को पत्र लिखकर सोनिया गांधी से असली पत्रों की फोटो कॉपी या डिजिटल वर्जन उपलब्ध कराने को कहा है. सितंबर के महीने में ऐसी रिक्वेस्ट सोनिया गांधी से भी की गई थी.
कादरी ने कहा कि ये पत्र एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ पंत के साथ नेहरू के संचार से संबंधित हैं. उन्होंने कहा कि ये पत्र रिसर्चर्स और स्कॉलर्स के लिए मददगार हो सकते हैं और इन्हें PMML में उपलब्ध कराया जाना चाहिए. बीजेपी प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने सवाल उठाते हुए कहा कि पंडित नेहरू के द्वारा एडविना को लिखे गए पत्रों में ऐसा क्या सीक्रेट था कि सोनिया गांधी को उन्हें अपने कब्जे में लेना पड़ा. देश सोनिया गांधी से इसका जवाब चाहता है.
नेहरू ने एडविना को क्या लिखा था?
नेहरू ने एडिवना को पत्र में क्या लिखा था, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन एडविना की बेटी पामेला हिक्स ने कुछ पत्र देखे थे, जिनका जिक्र पामेला ने अपनी किताब 'डॉटर ऑफ एम्पायर: लाइफ एज़ ए माउंटबेटन' में किया है. पामेला ने अपनी किताब में लिखा है कि उनकी मां एडविना और पंडित नेहरू के बीच गहरा रिश्ता था. यह तब शुरू हुआ था, जब वह अपने पति और भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन के साथ भारत आईं थीं. उन्होंने इस पत्र में लिखा है कि उन्हें महसूस हुआ था कि वे और मेरी मां एक दूसरे से कितना प्यार करते थे और एक दूसरे का कितना सम्मान करते थे. एडविना को पंडित जी में वह संगति और आध्यात्मिक समानता और बुद्धिमता मिली जिसकी उन्हें चाहत थी.
'फिजिकल अफेयर का टाइम नहीं था'
पामेला ने कहा कि न तो मेरी मां और न ही पंडितजी के पास फिजिकल अफेयर का टाइम नहीं था, क्योंकि वे कभी अकेले नहीं मिले. वे हमेशा कर्मचारियों, पुलिस और अन्य लोगों से घिरे रहते थे, लेकिन जब एडविना भारत छोड़ने वाली थीं, तो वह नेहरू के लिए एक अंगूठी छोड़ना चाहती थीं. यह अच्छी तरह जानते हुए कि नेहरू इसे नहीं लेंगे, उन्होंने इसे उनकी बेटी इंदिरा गांधी को दे दिया.
एडविना के लिए नेहरू के विदाई भाषण की चर्चा पामेला ने अपनी किताब में की है. नेहरू ने भाषण में कहा- "आप जहां भी गई हैं, आपने सांत्वना, आशा और प्रोत्साहन दिया है. इसलिए, क्या यह आश्चर्य की बात है कि भारत के लोग आपसे प्यार करते हैं, आपको अपना मानते हैं और आपके जाने पर दुखी हैं?
अल्बर्ट आइंस्टीन ने नेहरू को लिखे पत्र में क्या कहा?
अल्बर्ट आइंस्टीन जर्मनी के साइंटिस्ट थे. उन्होंने 13 जून 1947 को पंडित नेहरू को एक पत्र लिखा था. इस पत्र की शुरुआत में उन्होंने लिखा, क्या मैं आपके साथ उस गहन भावना को शेयर कर सकता हूं जो मैंने हाल ही में यह जानकार अनुभव किया है कि भारतीय संविधान सभा ने छुआछूत को खत्म कर दिया है.
आइंस्टीन ने लिखा, मैंने पढ़ा है कि लाखों हिंदुओं से अछूत का अभिशाप हटने वाला है. ठीक उसी समय जब दुनिया का ध्यान मनुष्यों के एक अन्य समूह की समस्या पर केंद्रित था, जो अछूतों की तरह सदियों से उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार हो रहे हैं. दरअसल, उस समय यूरोप में यहूदियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था. इसी दौरान फिलिस्तीन में यहूदी देश की स्थापना को लेकर भी चर्चाएं तेज हो गई थीं. इसे लेकर यहूदियों और अरबों के बीच संघर्ष बढ़ गया था.
भारत कोई फैसला नहीं ले पा रहा था कि इजरायल के निर्माण का विरोध किया जाए या इसका समर्थन किया जाए. अंत में भारतीय नेताओं ने इजरायल के निर्माण पर कुछ भी बोलने से परहेज करने की रणनीति अपनाई. आइंस्टीन ने अपने पत्र के जरिए इजरायल के निर्माण का समर्थन करने के लिए भारत को राजी करने की कोशिश की थी.
नेहरू ने आइंस्टीन को पत्र में क्या लिखा?
नेहरू ने एक महीने बाद आइंस्टीन को नपे-तुले अंदाज और दृढ़ता के साथ जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उत्पीड़न के शिकार सभी लोग न्याय के हकदार हैं. नेहरू ने लिखा, जैसा कि आप जानते हैं.. राष्ट्रीय नीतियां अनिवार्य रूप से स्वार्थी होती हैं. प्रत्येक देश पहले अपने हितों के बारे में सोचता है और फिर दूसरों के बारे में सोचता है. यदि कोई अंतरराष्ट्रीय नीति राष्ट्रीय नीति के अनुरूप है, तो राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बेहतरी के बारे में ऊंची भाषा का प्रयोग करता है. हालांकि, जैसे ही वह अंतरराष्ट्रीय नीति राष्ट्रीय हितों या स्वार्थ के साथ टकराती हुई दिखाई देती है, उस अंतरराष्ट्रीय नीति का पालन न करने को उचित ठहराने के लिए कई कारण खोजे जाते हैं.
नेहरू ने लिखा, फिलिस्तीन में यहूदी अरबों की दया भाव हासिल करने में क्यों विफल रहे हैं. वे अरबों को उनकी इच्छा के खिलाफ कुछ मांगों के लिए क्यों मजबूर करना चाहते हैं. अपनाए गए अप्रोच से कोई समझौता नहीं हुआ है, बल्कि संघर्ष को बढ़ावा मिला है. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोष केवल एक पक्ष का नहीं है, बल्कि सभी ने गलती की है.