हम हमलावरों को पहचानते तक नहीं... बांग्लादेशी कट्टरपंथ की आग में जल रहा मुर्शिदाबाद, वक्फ हिंसा या विदेशी साज़िश?
मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन के विरोध की आड़ में उग्र हिंसा फैल रही है. सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों की घुसपैठ और स्थानीय अपराधियों की मिलीभगत से हालात विस्फोटक बन गए हैं. पुलिस पर बम, लूटपाट और सरकारी संपत्ति की तबाही यह आंदोलन नहीं, भारत की आंतरिक सुरक्षा पर हमला है. आम लोग डरे हुए हैं और हमलावरों को पहचान तक नहीं पा रहे.

मुर्शिदाबाद एक बार फिर आग की चपेट में है, लेकिन ये कोई साधारण आग नहीं, ये उस सरहदी ज़हर की चिंगारी है जो बांग्लादेश से घुसपैठ के रास्ते भारत के दिल में बोई जा रही है. वक्फ संशोधन अधिनियम का विरोध महज़ एक पर्दा है. इसके पीछे जो चेहरा है, वो न केवल कट्टरपंथ का है, बल्कि हमारे अंदरूनी मामलों में विदेशी दखल का भी है. शमशेरगंज, धुलियान और सुती जैसे इलाकों में जो हो रहा है, वह जनआंदोलन नहीं बल्कि योजनाबद्ध हिंसा है.
विरोध के नाम पर हिंसा, सरकारी संपत्ति को जलाना, पुलिस पर हमले... क्या ये किसी आम नागरिक का तरीका है? मुर्शिदाबाद की सरहदें जिस देश से जुड़ी हैं, वहीं से बार-बार कट्टरपंथ की लपटें उठती हैं. सवाल ये नहीं कि हिंसा क्यों हो रही है, सवाल ये है कि कौन इसे भड़का रहा है? क्या यह संभव है कि बांग्लादेश से जुड़ी शक्तियां इस ‘प्रदर्शन’ की आड़ में भारत की संप्रभुता को चोट पहुंचा रही हैं?
कट्टरपंथियों के लिए ओपन डोर है बॉर्डर
भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी का यह कहना कि पूरा इलाका अब सांसदों के नहीं, बल्कि पीएफआई, सिमी और अंसारुल बांग्ला जैसे संगठनों के कब्जे में है. कोई बड़ी बात नहीं है जब सीमाएं खुली हों, तस्करी फल-फूल रही हो और सीमा पार के उग्रवादियों को स्थानीय समर्थन मिल रहा हो, तब सवाल उठता है कि आखिर बांग्लादेश को भारत के अंदर अराजकता फैलाने की इतनी छूट क्यों दी जा रही है?
यह किसी और की है लड़ाई
राज्य भर में एक ही दिन में 118 लोगों की गिरफ्तारी इस बात का संकेत है कि मामला सिर्फ विरोध तक सीमित नहीं है. जो तस्वीरें सुती और जंगीपुर से सामने आई हैं, उनमें हिंसा करने वाले न तो स्थानीय दिखते हैं और न ही उनके इरादे शांतिपूर्ण. भीड़ का एक बड़ा हिस्सा पुलिस से सीधी भिड़ंत कर रहा था, वही लोग जिन्होंने सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया और दहशत का माहौल बनाया. बमबारी, लूटपाट और पुलिस पर पथराव यह सब उस वर्ग का काम है जो पेशेवर अपराधी हैं, जिनका एजेंडा भारत को भीतर से कमजोर करना है. स्थानीय लोग साफ कह रहे हैं कि वे हमलावरों को पहचानते तक नहीं तो फिर सवाल उठता है कि ये अराजक तत्व आए कहां से, और इनके पीछे कौन है?
दुश्मन की साज़िश
एनआरसी और कृषि कानूनों के खिलाफ भी देश में आंदोलन हुए, लेकिन तब आम जनता पर हमले नहीं हुए. फिर बंगाल में ऐसा क्या है कि ‘विरोध’ के नाम पर जान ली जा रही है? असल में, यह विरोध नहीं, सुनियोजित साज़िश है. बांग्लादेशी कट्टरपंथियों द्वारा उकसाए गए गुंडों ने आंदोलन की शक्ल ओढ़ ली है ताकि देश को बांटा जा सके, कानून को चुनौती दी जा सके.
मुर्शिदाबाद: सरहद के नाम पर धब्बा
जिस तरह कालियाचक थाने को जलाया गया था, और जांच में नकली नोट और ड्रग माफिया का कनेक्शन मिला था. उसी तरह आज मुर्शिदाबाद की आग में तस्कर, घुसपैठिए और बाहरी कट्टरपंथी अपनी रोटियां सेंक रहे हैं. बांग्लादेश की सरहदें अगर हमारी खुली नसें हैं, तो मुर्शिदाबाद जैसे ज़िले उन पर रखे नासूर हैं, जिन्हें अब नजरअंदाज करना देश के लिए आत्मघाती होगा.