क्या अब न्यायपालिका कानून भी बनाएगी और खुद ही... कोर्ट पर क्यों भड़के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़?
राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें.

Vice President on Supreme Court judgment : बिलों को मंज़ूरी देने की समयसीमा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ ही दिन बाद, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर कड़े शब्दों का प्रयोग किया है. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें. इसके साथ ही उपराष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 142 पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह अनुच्छेद अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन चुका है, जो न्यायपालिका को 24x7 उपलब्ध है.
राज्यसभा के इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर पर हुई बड़ी नकद बरामदगी का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, "14 और 15 मार्च की रात को दिल्ली में एक न्यायाधीश के आवास पर एक घटना घटी. सात दिनों तक किसी को कुछ नहीं पता चला. हमें खुद से सवाल पूछने की ज़रूरत है कि क्या यह देरी उचित है? क्या इसे माफ़ किया जा सकता है? क्या यह कुछ मौलिक सवाल नहीं उठाता? आम हालात में, जहां कानून का शासन चलता है, प्रतिक्रिया कुछ और होती. 21 मार्च को जब एक अखबार ने इसका खुलासा किया, तब देश स्तब्ध रह गया."
'देश बेचैन है'
घऩखड़ ने आगे कहा कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से 'अधिकृत स्रोत' के रूप में कुछ जानकारी सामने आई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मामला गंभीर था और जांच की ज़रूरत है, लेकिन अब देश बेताबी से इंतजार कर रहा है. देश बेचैन है, क्योंकि वो संस्था, जिस पर लोगों ने हमेशा सबसे अधिक सम्मान और आस्था रखी है, अब कटघरे में है."
'न्यायाधीश के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई'
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि नकदी मिलने के इतने दिन बाद भी उस न्यायाधीश के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. उन्होंने कहा, "इस देश में किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है, चाहे वह कोई भी संवैधानिक पद हो- यहां तक कि मेरे खिलाफ भी... लेकिन अगर बात न्यायाधीशों की हो, तो उनके खिलाफ सीधे एफआईआर नहीं की जा सकती. न्यायपालिका की अनुमति चाहिए, लेकिन यह संविधान में कहीं नहीं लिखा गया है."
'क्या न्यायाधीश कानून से ऊपर हो गए हैं'
धनखड़ ने सवाल उठाया कि केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को ही संविधान में अभियोजन से छूट दी गई है... तो फिर न्यायाधीशों को यह छूट किसने दे दी? क्या वे कानून से ऊपर हो गए हैं? अगर किसी आम आदमी के घर में इतनी नकदी मिलती, तो कार्रवाई रॉकेट की स्पीड से होती. अब तो बैलगाड़ी भी तेज़ चलती है.
'क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे'
धनखड़ ने इस बात पर भी चिंता जताई कि इस मामले की जांच तीन न्यायाधीशों की समिति कर रही है, जबकि किसी कानून के तहत ऐसी समिति का कोई आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि किसी जज के खिलाफ अगर कार्रवाई होनी है, तो वह केवल संसद द्वारा की जा सकती है. समिति अधिकतम सिफारिश ही कर सकती है- वह भी किसे और क्यों, यह अस्पष्ट है. एक महीने से ज़्यादा समय बीत गया है और अब भी जांच शुरू नहीं हुई है. क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे?
'डिब्बा खोल दिया जाए'
उपरा्ष्ट्रपति ने कहा कि अगर यह मामला किसी आम नागरिक से जुड़ा होता, तो अब तक काफी कुछ हो चुका होता. अब तो वक्त आ गया है कि डिब्बा खोल दिया जाए. चाहे उसमें कितने भी कीड़े या कंकाल हों- सबको बाहर आना चाहिए ताकि सफाई हो सके."
उपराष्ट्रपति की यह तीखी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले के बाद आई है, जिसमें तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को रोके जाने के फैसले को 'गैरक़ानूनी' और 'मनमाना' बताया गया. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई बिल दूसरी बार विधानसभा द्वारा पास किया गया है, तो राष्ट्रपति या राज्यपाल को उसे तीन महीने में मंजूरी देनी होगी.
'संविधानिक मामलों पर केवल अदालत ही निर्णय दे सकती है'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधानिक मामलों पर केवल अदालत ही निर्णय दे सकती है और कार्यपालिका को ऐसे मामलों में संयम बरतना चाहिए. धनखड़ ने इसका जवाब देते हुए कहा कि राष्ट्रपति भारत का सर्वोच्च संवैधानिक पद है और वे संविधान की रक्षा, संरक्षण और पालन की शपथ लेते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय राष्ट्रपति को समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दे रहा है. यह किस दिशा में जा रहे हैं हम? क्या अब न्यायपालिका कानून भी बनाएगी, कार्यपालिका का कार्य भी करेगी, और खुद ही सर्वोच्च संसद बन जाएगी... और इस सबके लिए उन पर कोई जवाबदेही भी नहीं होगी?"
अंत में धनखड़ ने अनुच्छेद 142 पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अनुच्छेद 142, जो कभी न्याय दिलाने का अंतिम उपाय था, अब लोकतंत्र के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जिसे न्यायपालिका किसी भी समय चला सकती है.