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'उन्होंने पापा को बोलने तक नहीं दिया...' पहलगाम हमले में अपने पिता को खोने वाले इस बच्‍चे की आंखों देखी

"हमने गोलियों की आवाज़ सुनी, पहले तो हमें लगा कुछ और हो रहा है. लेकिन फिर वहां भगदड़ मच गई. तभी हमें एहसास हुआ कि आतंकवादी आ गए हैं," नक्श ने कांपती आवाज़ में बताया. उसकी आंखें अभी भी डरी हुई थीं, और उसके शब्दों में उस दिन का खौफ आज भी जिंदा था.

उन्होंने पापा को बोलने तक नहीं दिया... पहलगाम हमले में अपने पिता को खोने वाले इस बच्‍चे की आंखों देखी
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 24 April 2025 2:37 PM IST

22 अप्रैल 2025… कश्मीर की वादियों में बसे 'मिनी स्विट्ज़रलैंड' पॉइंट पर सब कुछ शांत था. सैलानी घूम रहे थे, बच्चे हंस रहे थे… और एक परिवार सूरत से आया था, जिंदगी के कुछ खूबसूरत पल कैद करने. लेकिन फिर गोलियों की आवाज ने सब कुछ बदल दिया. और उस दिन, 10 साल का नक्श कलथिया, बचपन से सीधे आतंक के साये में पहुंच गया.

आतंकी हमले में सूरत शहर के वराछा इलाके के रहने वाले शैलेश कलथिया की जान चली गई. लेकिन इस खौफनाक घटना के सबसे बड़े गवाह बने उनके छोटे बेटे नक्श कलथिया, जिनकी जुबानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

"हम ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ पॉइंट पर थे... अचानक गोलियों की आवाज आई," नक्श ने कांपती आवाज में कहा. "जैसे ही समझ में आया कि आतंकवादी आ गए हैं, हम सब छिप गए. लेकिन उन्होंने हमें खोज निकाला…"

नक्श ने बताया कि उन्होंने दो आतंकवादियों को अपनी आंखों से देखा. उनमें से एक ने सभी लोगों को हिंदू और मुस्लिम के आधार पर अलग होने का आदेश दिया. "फिर उन्होंने हिंदू पुरुषों से 'कलमा' पढ़ने को कहा… जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी गई."

"पापा को उन्होंने बोलने तक नहीं दिया," नक्श ने बताया. "मां को कुछ नहीं कहा... महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया."

नक्श के मुताबिक, उनमें से एक आतंकी गोरा था, उसकी दाढ़ी थी और उसने सिर पर एक कैमरा बांधा हुआ था, जैसे वह पूरी घटना रिकॉर्ड कर रहा हो.

"जब आतंकवादी चले गए, तब स्थानीय लोग ऊपर आए और कहा कि जो भी जिंदा हैं, वे तुरंत नीचे उतर जाएं. हम जैसे-तैसे नीचे पहुंचे, उसके करीब एक घंटे बाद सेना आई…"

यह बयान सिर्फ एक बच्चे की कहानी नहीं है, बल्कि उस क्रूरता की गवाही है जो इंसानियत को शर्मसार करती है.

एक बच्चा, जो सब देख चुका है

11 साल की उम्र में नक्श वो सब देख चुका है, जो किसी उम्र में नहीं देखना चाहिए. गोलियां, खून, चीखें, और अपने पिता की मौत, वो मंजर अब उसके सपनों में आता है. शैलेश कलथिया न सिर्फ एक पिता थे, बल्कि अपने परिवार की रीढ़ थे. उनके जाने के बाद अब नक्श की मां पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. बेटे को उस सदमे से निकालना और खुद को संभालना.

इंसाफ की उम्मीद

कलथिया परिवार अब बस एक ही बात कह रहा है, “हमें इंसाफ चाहिए.” नक्श की मां कहती हैं, “उन्होंने हमारे परिवार को तोड़ दिया. अब हम चाहते हैं कि सरकार, सेना और पूरी दुनिया ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा कदम उठाए.”

इस आतंकी हमले में कुल 26 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे. नक्श का बयाना इस घटना की सबसे सजीव, सच्ची और झकझोर देने वाली गवाही बनकर सामने आया है.

आतंकी हमला
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