3000 करोड़ की मोनोरेल निकली फुस्स! 17 स्टेशन और कई विवादों के बाद शुरू हुई थी मुंबई के सपनों की सवारी, जानें कैसे हुई फेल
मुंबई में भारी बारिश ने मोनोरेल की पोल खोल दी. मंगलवार शाम यात्रियों से भरी ट्रेन अचानक बीच ट्रैक पर अटक गई. एसी और लाइट बंद होने से घुटन और अफरा-तफरी मच गई. 3000 करोड़ की इस परियोजना पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं. मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन लोगों का भरोसा टूटता दिख रहा है.

मुंबई की मोनोरेल अचानक यात्रियों से भरी हालत में बीच ट्रैक पर रुक गई. यह घटना मैसूर कॉलोनी और भक्ति पार्क स्टेशन के बीच हुई. तेज बारिश के कारण पहले से ही शहर की लोकल ट्रेनें और सड़क यातायात बुरी तरह प्रभावित थे, ऐसे में लोग मोनोरेल को विकल्प मानकर चढ़े. लेकिन भारी भीड़ ने ट्रेन को पंगु बना दिया.
जैसे ही ट्रेन बंद हुई, उसके साथ एसी और लाइट भी ठप हो गए. बंद डिब्बों में यात्रियों को सांस लेने में मुश्किल होने लगी. धीरे-धीरे चीख-पुकार शुरू हो गई. कई यात्री घबराकर सीटों से उठ गए, तो कुछ बेहोश हो गए. सोशल मीडिया पर यात्रियों के वीडियो सामने आए, जिसमें लोग खिड़कियों से बाहर झांककर मदद की गुहार लगा रहे थे.
एमएमआरडीए ने क्या दी सफाई?
एमएमआरडीए ने सफाई देते हुए कहा कि बारिश की वजह से लोकल ट्रेन सेवाएं ठप थीं, इसलिए असामान्य रूप से ज़्यादा लोग मोनोरेल में चढ़ गए. ट्रेन की अधिकतम क्षमता से ज्यादा भार होने के कारण बिजली सप्लाई बाधित हुई और ट्रेन फंस गई. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी आधुनिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए था.
मुख्यमंत्री फडणवीस ने दिए जांच के आदेश
घटना पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है, सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि घटना की पूरी जांच होगी और जिम्मेदारी तय की जाएगी. साथ ही उन्होंने अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है कि आखिर ट्रेन इतनी आसानी से क्यों फंस गई.
कितनी लागत से बना था?
मुंबई मोनोरेल को 3000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था. इसे आधुनिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रतीक बताया गया था. लेकिन महज तीन दिनों की बारिश ने इसकी असली हालत उजागर कर दी. लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी सिस्टम इतना कमजोर क्यों है कि एक झटके में ठप पड़ गया.
मुंबई मोनोरेल की शुरुआत की कहानी
मुंबई मोनोरेल का उद्घाटन 1 फरवरी 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने किया था. इसका उद्देश्य मुंबई की भीड़भाड़ कम करना और लोकल ट्रेन व मेट्रो को जोड़ना था. अनुमान था कि लाखों यात्री रोज़ इसमें सफर करेंगे. लेकिन शुरुआत से ही यह प्रोजेक्ट उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. आज भी केवल 15–20 हजार यात्री ही रोज इसका इस्तेमाल करते हैं.
कहां से कहां तक है मोनोरेल?
मोनोरेल चेंबूर से संत गाडगे महाराज चौक (महालक्ष्मी) तक चलती है. लगभग 19.54 किलोमीटर लंबे इस कॉरिडोर में 17 स्टेशन हैं. पहले चरण में वडाला–चेंबूर (8.8 किमी) और दूसरे चरण में वडाला–संत गाडगे महाराज चौक (11.2 किमी) को जोड़ा गया. यह मुंबई का पहला मोनोरेल प्रोजेक्ट है और पूरे भारत में भी अनोखा माना जाता है.
कैसे बनी योजना और क्यों आई अड़चनें?
सितंबर 2008 में मुंबई में मोनोरेल लाने का फैसला हुआ. RITES को तकनीकी और वित्तीय रिपोर्ट तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया. Tramway Act के तहत इसे लागू किया गया. वैश्विक बिडिंग के बाद लार्सन एंड टुब्रो और मलेशिया की स्कॉमी इंजीनियरिंग (LTSE) को ठेका मिला. लागत 2460 करोड़ तय हुई, लेकिन देरी और संचालन की गड़बड़ियों के कारण यह बढ़कर लगभग 3000 करोड़ तक पहुंच गई.
संचालन में देरी और ठेकेदार की नाकामी
पहला चरण 2014 में शुरू हो गया, लेकिन संचालन में लगातार दिक्कतें आती रहीं. ठेकेदार कंपनी LTSE समय पर काम पूरा करने और ट्रेन को सुचारू रखने में असफल रही. दिसंबर 2018 में एमएमआरडीए ने ठेका रद्द कर दिया और खुद संचालन अपने हाथ में ले लिया. बाद में मार्च 2019 में दूसरा चरण भी शुरू हुआ, लेकिन समस्याएं खत्म नहीं हुईं.
अब MMMOCL के पास जिम्मेदारी
29 दिसंबर 2023 से मोनोरेल का संचालन महा मुंबई मेट्रो ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (MMMOCL) को सौंपा गया. लेकिन मंगलवार की घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं- क्या यह प्रोजेक्ट मुंबईकरों के लिए वाकई भरोसेमंद है या सिर्फ एक महंगी गलती साबित हो रहा है?