भगवान का शुक्र है कि बच गए... लोगों ने बताया डरावना अनुभव, पुणे पुल हादसे में अब तक क्या-क्या हुआ?
पुणे के तालेगांव में इंद्रायणी नदी पर बना एक पुराना पैदल पुल रविवार को ढह गया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 51 घायल हो गए. हादसे से पहले चेतावनी जारी थी, फिर भी भारी भीड़ जुटी. स्थानीय लोगों ने कई की जान बचाई, लेकिन सवाल उठता है- पुल की मरम्मत पर मंजूर आठ करोड़ रुपए गए कहां?

पुणे के तालेगांव में इंद्रायणी नदी पर बना एक पुराना पैदल पुल रविवार दोपहर अचानक टूट गया, जिससे चार लोगों की मौत हो गई और 51 अन्य घायल हो गए. हादसे के समय पुल पर करीब 150 से 200 लोग मौजूद थे, जिनमें से एक हिस्सा अचानक गिरने से दर्जनों लोग नदी में समा गए. यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि वर्षों की लापरवाही का नतीजा साबित हो रही है.
प्रत्यक्षदर्शी स्वप्निल कोल्लम और निखिल कोल्लम ने इसे 'भगवान की कृपा' बताते हुए कहा कि उनका परिवार सुरक्षित है. लेकिन सवाल यह है कि यदि पुल की स्थिति पहले से ही खतरनाक थी, तो इसे चालू क्यों रखा गया? 'हमारा पुनर्जन्म हुआ है', जैसे बयान राहत के प्रतीक हो सकते हैं, लेकिन प्रशासन की जवाबदेही से ध्यान हटाने का माध्यम नहीं बनने चाहिए.
प्रशासन को थी चेतावनी, फिर क्यों नहीं हुई कार्रवाई?
जिला कलेक्टर जितेंद्र डूडी ने खुद स्वीकार किया कि प्रशासन ने पहले ही इस क्षेत्र को 'खतरनाक' घोषित किया था और चेतावनी जारी की थी. इसके बावजूद सैकड़ों पर्यटक वहां कैसे पहुंचे? क्या मौके पर कोई सुरक्षा या निगरानी व्यवस्था नहीं थी? यह साफ है कि प्रशासन ने खतरे को गंभीरता से नहीं लिया, जिसका खामियाजा लोगों को जान गंवाकर चुकाना पड़ा.
युवाओं ने दिखाई हिम्मत, सिस्टम रहा ग़ायब
एनसीपी नेता रोहित पवार ने बताया कि दुर्घटना के बाद स्थानीय युवाओं ने 20-25 लोगों की जान बचाई. उन्होंने यह भी माना कि पुल की मरम्मत पर चर्चा तो होती रही, लेकिन कभी काम शुरू नहीं हुआ. यह दर्शाता है कि लोग तो मदद को आगे आते हैं, लेकिन सिस्टम सिर्फ 'डिस्कशन मोड' में रहता है. बुनियादी ढांचे की अनदेखी से ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं.
आठ करोड़ मंजूर हुए, खर्च क्यों नहीं?
शिवसेना (यूबीटी) नेता आनंद दुबे ने दावा किया कि पुल के लिए पहले ही ₹8 करोड़ की राशि स्वीकृत हो चुकी थी, लेकिन उसका कोई उपयोग नहीं हुआ. उन्होंने प्रशासन पर सीधा हमला करते हुए इसे 'जानबूझकर हत्या' जैसा मामला करार दिया और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की. दुबे ने पुरानी संरचनाओं का ऑडिट कराने और पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा बढ़ाने की मांग की.
रात तक हटाया गया पुल का मलबा
घटना के बाद जिला प्रशासन ने तेजी से बचाव कार्य शुरू किया और 38 लोगों को सुरक्षित निकाला. सात गंभीर घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिनमें से एक की हालत नाजुक बताई गई है. रात तक पुल का मलबा हटा लिया गया और तलाशी अभियान पूरा हो गया, लेकिन हादसे की असली वजह की जांच जारी है. जिला प्रशासन की जांच टीम गठित हो चुकी है, लेकिन जनता का भरोसा टूट चुका है. यह हादसा एक चेतावनी है कि यदि बुनियादी संरचनाओं की अनदेखी यूं ही चलती रही, तो अगली त्रासदी दूर नहीं.