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Tahawwur Rana: फेफड़ों के पानी ने कराया 26/11 का हमला - तहव्‍वुर राणा की डील डिस्‍क्‍लोज

26/11 मुंबई हमले के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा ने पूछताछ में पाकिस्तान सेना, ISI और लश्कर-ए-तैयबा के साथ गहरे संबंध उजागर किए हैं. उसने सियाचिन में बीमारी, सेना से बर्खास्तगी, और भगोड़ा बनने से बचने के लिए कनाडा भागने की कहानी भी बताई. राणा की कबूलनामे से 26/11 की साजिश के पीछे का नेटवर्क और स्पष्ट हो गया है.

Tahawwur Rana: फेफड़ों के पानी ने कराया 26/11 का हमला - तहव्‍वुर राणा की डील डिस्‍क्‍लोज
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 4 Dec 2025 4:27 PM IST

26/11 मुंबई आतंकी हमलों के साजिशकर्ता तहव्वुर हुसैन राणा की भारत वापसी और पूछताछ ने एक बार फिर इस त्रासदी की भयावह परतों को उधेड़ कर रख दिया है. अमेरिका से लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अप्रैल 2025 में भारत लाए गए राणा ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के सामने कबूल किया कि वह न सिर्फ पाकिस्तानी सेना का भरोसेमंद एजेंट था, बल्कि उसने खाड़ी युद्ध के दौरान गुप्त मिशन पर सऊदी अरब की यात्रा भी की थी. पूछताछ में उसने कई चौंकाने वाले खुलासे किए, जिनमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और लश्कर-ए-तैयबा से उसके संबंध साफ तौर पर उजागर होते हैं.

तहव्वुर राणा ने स्वीकार किया कि 2008 में जब मुंबई पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने हमला किया, वह मुंबई में ही मौजूद था. उसने छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस सहित अन्य संवेदनशील जगहों की खुद रेकी की थी. साथ ही उसका यह भी दावा है कि उसका सहयोगी डेविड हेडली कई बार लश्कर के प्रशिक्षण शिविरों में गया था और ISI के लिए जासूसी नेटवर्क का हिस्सा था. इन बयानों से साफ है कि राणा की भूमिका महज़ सहायक की नहीं थी, बल्कि वह पूरे षड्यंत्र का एक सक्रिय और प्रमुख सूत्रधार था.

तहव्वुर राणा को क्यों छोड़नी पड़ी थी पाकिस्तानी सेना?

तहव्वुर राणा ने बताया कि वह 1986 में पाकिस्तानी सेना में कैप्टन डॉक्टर के रूप में शामिल हुआ था. रावलपिंडी के आर्मी मेडिकल कॉलेज से MBBS करने के बाद उसे क्वेटा, सिंध और बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों में तैनात किया गया. लेकिन सियाचिन में तैनाती के दौरान एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या ने उसकी सैन्य सेवा पर विराम लगा दिया. उसे पल्मोनरी एडिमा नामक बीमारी हो गई, जो अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होती है.

इस बीमारी के चलते वह बार-बार अपनी ड्यूटी से गैरहाजिर रहने लगा. सेना ने जब उसकी अनुपस्थिति को नियमित देखा, तो उसे "डिज़र्टर" यानी भगोड़ा घोषित कर दिया गया. अंततः उसे सेना से बर्खास्त कर दिया गया. यहीं से तहव्वुर राणा का करियर आतंक के रास्ते की ओर मुड़ता गया, जिसकी परिणति 26/11 जैसे भीषण आतंकी हमले में हुई.

फेफड़े में कैसे भरा था पानी?

सियाचिन जैसे अत्यधिक ऊंचाई और ठंडे मौसम वाले इलाके में राणा को पल्मोनरी एडिमा नामक बीमारी ने जकड़ लिया. इस स्थिति में फेफड़ों में तरल पदार्थ भरने लगता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है और व्यक्ति को तत्काल चिकित्सा सहायता की जरूरत पड़ती है. राणा के मुताबिक, वह लंबे समय तक इस बीमारी से जूझता रहा, जिससे उसके सैन्य कर्तव्यों पर असर पड़ा.

इस बीमारी के चलते न केवल वह युद्ध क्षेत्र में तैनात रहने के योग्य नहीं रहा, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति भी धीरे-धीरे बदलती गई. राणा ने यह भी कहा कि उसकी इसी कमजोरी का फायदा बाद में लश्कर और ISI ने उठाया, जब उन्होंने उसे अपने नेटवर्क का हिस्सा बना लिया. इस बीमारी ने न सिर्फ उसकी सैन्य सेवा खत्म की, बल्कि उसे आतंकवाद की ओर भी ढकेल दिया.

भगोड़ा घोषित होने से बचने के लिए की थी 26/11 की साजिश?

सेना से निकाले जाने के बाद तहव्वुर राणा ने सीधे कनाडा की ओर रुख किया और वहां की नागरिकता हासिल कर ली. उसने वहां मेडिकल लाइसेंस पास किया और फिर अमेरिका में मीट प्रोसेसिंग, रियल एस्टेट और ग्रोसरी जैसे व्यवसायों में उतर गया. जांचकर्ताओं को दिए बयान में उसने बताया कि उसने डेविड हेडली के भरोसे यह सोचा कि वह उसके सैन्य रिकॉर्ड को पाकिस्तानी सेना में साफ करवा देगा.

यह विश्वास ही उसे 26/11 की साजिश में शामिल होने की ओर ले गया. लेकिन भारतीय एजेंसियों का मानना है कि राणा का लश्कर-ए-तैयबा और ISI से संपर्क लगातार बना रहा और उसने खुद कई बार लश्कर के ट्रेनिंग कैंपों का दौरा किया. यानी राणा की "निर्दोषता" का दावा जांच की कसौटी पर खरी नहीं उतरता.

मुंबई हमले में क्या थी भूमिका?

राणा ने स्वीकार किया कि वह नवंबर 2008 में भारत आया था और पवई इलाके के एक होटल में रुका था. हमलों से कुछ दिन पहले ही वह दुबई होते हुए बीजिंग रवाना हो गया. लेकिन उसके भारत प्रवास का मकसद पूरी तरह से हेडली की मदद करना था. राणा ने ही ‘फर्स्ट इमिग्रेशन सेंटर’ नामक एक ऑफिस की शुरुआत की, जिससे मुंबई में जासूसी गतिविधियां आसानी से संचालित की जा सकें.

इस ऑफिस को एक महिला चलाती थी और हेडली को दिए गए फंड्स को व्यापारिक खर्च के रूप में दिखाया गया. चार्जशीट में यह भी उल्लेख है कि राणा ने शिवसेना कार्यालय और भीड़भाड़ वाले स्थानों की रेकी में भी अहम भूमिका निभाई. पूछताछ में राणा ने साजिद मीर, अब्दुल रहमान पशा और मेजर इकबाल जैसे पाकिस्तानी अधिकारियों से संबंध होने की बात भी कबूल की है.

लश्कर से गहराता जुड़ाव और अमेरिका की साज़िश में भागीदारी

राणा ने रावलपिंडी में शिक्षा के दौरान डेविड हेडली से मित्रता की थी, जो आगे चलकर लश्कर का अहम एजेंट बना. राणा का कहना है कि हेडली ने बताया था कि लश्कर केवल आतंक की विचारधारा नहीं, बल्कि एक जासूसी नेटवर्क के रूप में भी काम करता है. इसी नेटवर्क के ज़रिए राणा को भारत भेजा गया और उसके माध्यम से आतंकी गतिविधियों की जमीन तैयार की गई.

अमेरिका में रहते हुए भी राणा ने लश्कर और ISI से अपने संपर्क बनाए रखे. अमेरिकी न्याय विभाग के अनुसार, उसने भारत में वीज़ा दस्तावेजों में धोखाधड़ी की और हेडली को फर्जी पहचान के साथ भारत भेजने में मदद की. पूछताछ में उसने बशीर शेख जैसे व्यक्ति के बारे में भी बताया, जो मुंबई एयरपोर्ट पर हेडली को लेने आया था और वर्तमान में फरार है.

26/11 के शिकार और वह भयानक रात

मुंबई में 26 नवंबर 2008 की रात आई और इंसानियत थर्रा गई. लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने योजनाबद्ध तरीके से समुद्री रास्ते मुंबई में घुसकर CST स्टेशन, ताज होटल, ओबेरॉय और नरीमन हाउस को निशाना बनाया. 166 मासूमों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए. तहव्वुर राणा का इस पूरे ऑपरेशन में सक्रिय हाथ था, भले ही वह हमले से पहले देश छोड़कर चला गया हो.

क्राइम ब्रांच की चार्जशीट और एनआईए की जांच में यह सामने आया है कि राणा ने न केवल हेडली की मदद की, बल्कि कई रणनीतिक फैसलों में उसकी राय भी ली गई. उसका मकसद सिर्फ एक व्यापारिक व्यक्ति बनकर रहना नहीं था, बल्कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के इशारे पर भारत के खिलाफ जंग लड़नी थी.

अब आगे क्या?

भारत सरकार तहव्वुर राणा पर लगे गंभीर आरोपों की जांच तेजी से आगे बढ़ा रही है. उसकी न्यायिक हिरासत 9 जुलाई तक बढ़ा दी गई है. भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि 26/11 के इस अहम आरोपी को पूरी सजा मिले और हमले के हर सूत्र को न्याय के कठघरे तक लाया जा सके. पाकिस्तान द्वारा पनपा और पोषित यह आतंकवाद अब अंतरराष्ट्रीय अदालतों और देशों के सामने बेनकाब होता जा रहा है. राणा की स्वीकारोक्तियों और खुलासों से यह भी साबित होता है कि 26/11 सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सैन्य-साजिश थी, जिसमें राज्य-प्रायोजित आतंकवाद की भूमिका रही. अब देखना है कि भारत राणा जैसे दुर्दांत आतंकियों को कैसे न्याय दिलाता है और आगे की रणनीति कैसे बनाता है.

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