जानें तेलंगाना टनल रेस्क्यू मिशन में माया-मर्फी कुत्तों का क्या है काम? क्या है इनकी खासियत
22 फरवरी को तेलंगाना में एसएलबीसी सुरंग की छत का तीन मीटर हिस्सा डोमलपेंटा के पास 14 किलोमीटर के निशान पर ढह गया. जिसमें 8 मजदूर फंस गए. लंबे समय से उन्हें खोजने की कोशिश की जा रही है. अब ऐसे में दो खास कुत्तों को यह काम दिया गया है.

तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले के डोमलपेंटा के पास श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग हादसे में 8 मजदूरों के शव को ढूंढने के लिए माया और मर्फी दो कुत्तों को काम सौंपा गया.
6 मार्च के दिन तेलंगाना पुलिस कैडवर डॉग स्क्वायड के दो बेल्जियन मालिनोइस कुत्तों को इंडियन एयर फोर्स चॉपर से उतारा गया. माया और मर्फी को कोचीन इंटरनेशनल एयर पोर्ट से एयरफोर्स कार्गो फ्लाइट में उनके हैंडलर प्रभात पी और जॉर्ज मैनुअल के साथ ले जाया गया था.
गुरप्रीत सिंह की मिली लाश
इन कुत्तों को सुरंग के अंदर ऑफिसर गाइड करेंगे. दोनों कुत्तों की उम्र साढ़े पांच साल है. रविवार शाम इन कुत्तों ने जाब के तरनतारन के गुरप्रीत सिंह के शव को खोज निकाला है. अब बाकि बचे साल लोगों की तलाश जारी है. माया के ऑपरेटर ने हवलदार प्रभात ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'हमने कुत्तों को पहले सुरंग में नहीं जाने दिया, दिया क्योंकि हम खतरों का पतला लगाना चाहते थे. सुंगर के अंदर ठोस मलबा था. सुरंग नौ मीटर से अधिक ऊंची है और मलबा आठ मीटर से अधिक ऊंचाई तक पाया गया. कुत्तों को आगे बढ़ने के लिए हमें मलबे के कुछ हिस्सों को खोदना पड़ा.'
मर्फी का काम
इसके बाद मर्फी को दूसरी जगहों की पहचान करने के लिए अंदर भेजा गया, जहां शव मिल सकते थे. इस पर प्रभात ने कहा कि 'मर्फी ने दो जगहों पर भौंका और माया ने भी ऐसा ही किया. हमने उन दो जगहों को बंद कर दिया और सर्च टीम को वहां खुदाई करने के लिए कहा.'
कैडवर डॉग्स की खासियत
रेस्क्यू टीम की तमाम कोशिशे नाकाम होने के बाद तेलंगाना सरकार ने एसएलबीसी सुरंग के अंदर मलबे में मानव अवशेषों की तलाश के लिए उन्हें बुलाया था. केरल पुलिस कैडर डॉग टीम को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के कहने पर बुलाया गया था. ये कुत्ते 15 फीट की गहराई से भी मानव गंध का पता लगा सकते हैं. बेल्जियन मालिनोइस 22 से 26 इंच तक लंबे चौड़े कुत्ते होते हैं. नस्ल की पहचान उसके सिर का गौरव ढंग से खड़ा होना है. कोट के रंग गहरे हलके पीले से लेकर महोगनी तक होते हैं। काले कान और मुखौटा चमकदार, सवाल पूछने वाली आंखों को गहरे बेल्जियम चॉकलेट के रंग में निखारते हैं.
कुत्तों की ट्रेनिंग
माया और मर्फी को केरल के त्रिशूर में स्टेट डॉग ट्रेनिंग स्कूल में नौ महीने तक ट्रेन किया गया. पहले तीन महीने ओबेडिएंस ट्रेनिंग में बीते. इसके बाद अगले छह महीनों के लिए उन्हें सूंघने और पहचानने के लिए ह्यूमन बॉडी पार्ट्स दिए गए. चूंकि शवों का इस्तेमाल ट्रेनिंग के लिए नहीं किया जा सकता है. इसलिए उन्हें ह्यूमन ओडर से परिचित कराने के लिए दांत और खून दिया गया.