पाकिस्तान को किनारे कर तालिबान ने थामा भारत का हाथ, मांगा वीजा-व्यापार; जानें दोनों देशों के बीच क्या हुई बातचीत
भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों में नई गर्माहट आई है. तालिबान सरकार ने न केवल पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की, बल्कि भारत से व्यापार, वीजा और कैदियों की रिहाई पर सहयोग मांगा. चाबहार बंदरगाह को लेकर भी चर्चा हुई. यह पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक झटका है और भारत के बढ़ते प्रभाव का संकेत है.

भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच बातचीत हुई. ये सिर्फ एक औपचारिक संवाद नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की बदलती भू-राजनीतिक दिशा का संकेत थी. ऐसे वक्त में जब भारत-पाक सीमा पर सैन्य तनाव चरम पर है और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति चल रही है. तालिबान शासन के विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले की कड़ी निंदा कर भारत के लिए अप्रत्याशित समर्थन दर्शाया. यह न सिर्फ एक नया कूटनीतिक संकेत है, बल्कि अफगानिस्तान की विदेश नीति में भारत के प्रति झुकाव को भी रेखांकित करता है.
इस बातचीत में अफगान पक्ष ने भारत से वीज़ा प्रक्रिया सरल करने, अफगान व्यापारियों और मरीजों के लिए मदद बढ़ाने और भारत में बंद अफगान कैदियों की रिहाई की मांग की. तालिबान की सरकार, जो अब तक वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ी थी, भारत जैसे लोकतांत्रिक और क्षेत्रीय शक्ति के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए सक्रिय नजर आ रही है. यह रवैया उस पारंपरिक मित्रता को दोबारा स्थापित करने की कोशिश है जो पहले अफगान जनता और भारतीय लोगों के बीच हुआ करती थी.
चाबहार बंदरगाह के विकास को देंगे प्राथमिकता
भारत की ओर से विदेश मंत्री जयशंकर ने सभी मुद्दों पर रचनात्मक प्रतिक्रिया दी और अफगानिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई. खास बात यह रही कि दोनों देशों ने चाबहार बंदरगाह के विकास को प्राथमिकता देने की बात की. एक ऐसा परियोजना जो पाकिस्तान को बाईपास कर ईरान के रास्ते अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की सीधी पहुंच को सुनिश्चित करता है. इस भू-रणनीतिक विकल्प का पुनः चर्चा में आना भारत की अफगान नीति को नई धार दे रहा है.
भारत से अच्छे रिश्ते चाहता है अफगानिस्तान
बातचीत का राजनीतिक अर्थ यह भी है कि तालिबान नेतृत्व पाकिस्तान से दूरी बनाते हुए भारत के साथ खुले और व्यावहारिक रिश्ते चाहता है. यह स्थिति उस वक्त बन रही है जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकियों के ठिकानों पर हमले किए और पाकिस्तान को सैन्य रूप से कठोर संदेश दिया. मुत्ताकी की फोन कॉल को इसी सन्दर्भ में भारत के प्रभाव को स्वीकार करने की एक मजबूरी और रणनीतिक समीकरण की पुनर्संरचना की तरह देखा जा सकता है.
भारत के लिए है मौका
इस कूटनीतिक समन्वय से भारत को एक फायदा यह भी है कि अफगानिस्तान के भीतर वह मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं के ज़रिये अपनी पकड़ फिर से मजबूत कर सकता है. अफगानिस्तान की निर्वासित सांसद मरियम सोलायमानखिल की बातों से भी यह स्पष्ट होता है कि आम अफगान जनता भारत के साथ गहरे आत्मीय संबंधों को आज भी ज़िंदा रखे हुए है, जो किसी भी सरकार से ऊपर हैं.
‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति
जयशंकर की इस पहल ने भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को फिर से जिंदा किया है, लेकिन इस बार यह संदेश साफ है कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा. तालिबान को यह बात अच्छी तरह समझ आ रही है, और शायद यही वजह है कि उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत का खुला समर्थन कर दिया. इस समर्थन का असर न केवल पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा, बल्कि भारत की वैश्विक कूटनीतिक स्थिति को भी और मजबूत करेगा.