Pegasus Case: 'जो हालात हैं...', जासूसी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पहलगाम हमले का भी दिया संकेत
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति, जिसे संदेह हो कि वह पेगासस द्वारा निगरानी में रहा है, वह सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है. ऐसे व्यक्तियों को निजी तौर पर सूचित किया जा सकता है कि क्या वे निगरानी में थे या नहीं, लेकिन पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती.

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी केस की सुनवाई के दौरान मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत निजता के बीच एक संवेदनशील संतुलन पर अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्पाईवेयर (जैसे पेगासस) का इस्तेमाल करती है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है, जब तक उसका इस्तेमाल नागरिक समाज के खिलाफ न हो. साथ ही कोर्ट ने अपने टेक्निकल पैनल की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि इससे देश की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
इस संदर्भ में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम जिस तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं, उसमें बेहद सतर्क रहने की ज़रूरत है.'' उनका यह बयान स्पष्ट रूप से हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले की ओर इशारा था, जिसमें 25 निर्दोष पर्यटकों और एक कश्मीरी घुड़सवारी ऑपरेटर की जान चली गई थी.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने कहा, “अगर देश सुरक्षा के लिए स्पाईवेयर का उपयोग करता है तो वह गलत नहीं है. असली सवाल यह है कि वह किसके खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है. अगर उसका दुरुपयोग कर नागरिकों या सामाजिक कार्यकर्ताओं को टारगेट किया जाए, तो निश्चित रूप से वह गंभीर मामला होगा.''
साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति, जिसे संदेह हो कि वह पेगासस द्वारा निगरानी में रहा है, वह सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है. ऐसे व्यक्तियों को निजी तौर पर सूचित किया जा सकता है कि क्या वे निगरानी में थे या नहीं, लेकिन पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती.
रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं?
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित टेक्निकल कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “जो रिपोर्ट देश की संप्रभुता और सुरक्षा को प्रभावित करती हो, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. लेकिन यदि कोई व्यक्ति व्यक्तिगत जानकारी चाहता है कि वह रिपोर्ट में शामिल है या नहीं, तो वह जानकारी दी जा सकती है.''
अमेरिका के फैसले का हवाला बेअसर
याचिकाकर्ताओं ने अमेरिका की एक जिला अदालत के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप को पेगासस से 1,400 डिवाइसेज़ को टारगेट करने का दोषी ठहराया गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमें अमेरिका का निर्णय दिखाइए. हम मानते हैं कि व्यक्ति की आशंका का निवारण होना चाहिए, लेकिन इसे सड़क पर बहस के दस्तावेज़ की तरह नहीं देखा जा सकता.''
'आतंकी को निजता का अधिकार नहीं'
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए, ने कहा, “अगर पेगासस का इस्तेमाल आतंकियों के खिलाफ हो रहा है, तो इसमें गलत क्या है? आतंकियों को निजता का कोई अधिकार नहीं होता.''
क्या था पेगासस विवाद?
साल 2021 में, दुनिया की 17 मीडिया संस्थाओं के एक संयुक्त इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ कि लगभग 50,000 फोन नंबर पेगासस के जरिए निगरानी में थे. भारत में जिन लोगों के नाम सामने आए, उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी, और कई पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे.
इस खुलासे से देशभर में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था. विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला बोला था, जबकि सरकार ने कहा था कि इन आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है. सरकार ने यह भी कहा कि देश में किसी भी प्रकार की निगरानी कानून के तहत ही होती है.
सुप्रीम कोर्ट की टेक्निकल जांच में क्या निकला?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित टेक्निकल कमेटी ने 29 मोबाइल फोनों की जांच की थी. पेगासस का कोई निर्णायक सबूत नहीं मिला, हालांकि 5 मोबाइल्स में मालवेयर जरूर पाया गया.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जहां राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानता है, वहीं व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता की रक्षा का भी भरोसा दिलाता है. पहलगाम जैसे हमलों की पृष्ठभूमि में कोर्ट का यह सख्त रुख यह संकेत देता है कि आने वाले समय में साइबर निगरानी बनाम निजता की बहस और तेज़ हो सकती है.