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वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक लगेगी या नहीं, 15 सितंबर को आएगा फैसला; CJI की पीठ करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट लगभग चार महीने बाद, जब 21 याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी,15 सितंबर को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के अंतरिम निलंबन पर अपना आदेश सुनाएगा. इन याचिकाओं में पंजीकरण की आवश्यकता, मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और जनजातीय भूमि पर वक्फ बनाने पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई है, जबकि केंद्र इसे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाला सुधार बता रहा है. कोर्ट ने पहले ही वक्फ संपत्ति पंजीकरण के शताब्दीभर के कानूनी ढांचे पर ध्यान आकर्षित किया था और मई में अपना निर्णय सुरक्षित रखा था.

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक लगेगी या नहीं, 15 सितंबर को आएगा फैसला; CJI की पीठ करेगी सुनवाई
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Supreme Court on Waqf Amendment Act 2025: सुप्रीम कोर्ट 15 सितंबर को यह तय करेगा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक लगाई जाए या नहीं. यह फैसला लगभग चार महीने बाद आ रहा है, जब अदालत ने 21 याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर 22 मई को आदेश सुरक्षित रख लिया था. इन याचिकाओं में नए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

मुख्य न्यायाधीश भूषण आर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ यह आदेश सुनाएगी. इससे पहले 22 अगस्त को हुई सुनवाई में पीठ ने केंद्र सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसमें सभी वक्फ संपत्तियों को छह महीने के भीतर केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल UMEED (Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency and Development) पर दर्ज कराने का प्रावधान है. केंद्र ने दलील दी थी कि यह पोर्टल वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी और डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करेगा.

'राज्य सरकारों की विफलता की कीमत मुस्लिम समुदाय को चुकानी पड़ रही है'

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 1954 से अब तक राज्य सरकारें वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण और पहचान करने में विफल रही हैं, और अब उनकी विफलता की कीमत पूरी मुस्लिम समुदाय को चुकानी पड़ रही है. उन्होंने इसे अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन बताया. वहीं, अधिवक्ता राजीव धवन और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि नया कानून मुस्लिमों को उनके परंपरागत अधिकारों से वंचित करता है और मान्यता प्राप्त वक्फ संपत्तियों को भी खतरे में डाल सकता है.

'संशोधन पारदर्शिता बढ़ाने और दुरुपयोग रोकने के लिए लाए गए हैं'

दूसरी ओर, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है, इसलिए इसे किसी गैर-मुस्लिम द्वारा समर्पित करना तार्किक रूप से गलत है. उन्होंने दावा किया कि संशोधन पारदर्शिता बढ़ाने और दुरुपयोग रोकने के लिए लाए गए हैं. मेहता ने अनुसूचित जनजातियों की जमीन पर वक्फ बनाने पर पाबंदी को सही ठहराया, लेकिन अदालत ने इस पर सवाल उठाया और कहा कि धर्म तो एक ही है, परंपराएं अलग हो सकती हैं.

दूरगामी असर डालेगा अदालत का फैसला

इतिहास के संदर्भ में अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि 1923 से 2025 तक, हर कानून ने वक्फ संपत्तियों की जानकारी या पंजीकरण पर जोर दिया है. यही वजह है कि इस कानून पर अदालत का फैसला न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि संपूर्ण संपत्ति प्रबंधन ढांचे के लिए दूरगामी असर डाल सकता है. अब देखना यह होगा कि अदालत का सोमवार का फैसला वक्फ अधिनियम पर रोक लगाता है या केंद्र सरकार के पारदर्शिता और जवाबदेही के तर्क को मान्यता देता है.

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