Begin typing your search...

'डेड बॉडी से यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं है...', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया कर्नाटक हाईकोर्ट का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डेड बॉडी के साथ संबंध बनाना दुष्कर्म का अपराध नहीं माना जाएगा. वह कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी को शव के साथ यौन संबंध बनाने के लिए दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन हत्या के अपराध के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी गई.

डेड बॉडी से यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं है..., सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया कर्नाटक हाईकोर्ट का तर्क
X
( Image Source:  Freepik )

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि डेड बॉडी के साथ यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के प्रावधानों के तहत दुष्कर्म नहीं है. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा, जिसमें एक व्यक्ति को दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया गया था, क्योंकि उसने 21 साल की महिला की लाश के साथ यौन संबंध बनाए थे, जिसकी उसने हत्या की थी. कोर्ट ने कहा कि दंड कानून नेक्रोफीलिया को अपराध नहीं मानता. इसलिए वह हाईकोर्ट के आंशिक बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता.

कर्नाटक हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता अमन पंवार ने दलील दी कि आईपीसी की धारा 375 सी के तहत शरीर शब्द में मृत शरीर भी शामिल होना चाहिए. दुष्कर्म की 7वीं परिभाषा के तहत ऐसी स्थिति, जिसमें महिला सहमति नहीं दे सकती, उसे दुष्कर्म माना जाना चाहिए. इस प्रकार इसका अर्थ है कि सहमति देने में असमर्थ मृत व्यक्ति इस श्रेणी में आता है.

खंडपीठ ने मामले में हस्तक्षेप करने से किया इनकार

हालांकि, जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि नेक्रोफीलिया को आईपीसी की धारा 376 के तहत दुष्कर्म के अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी गई है. पीठ ने धारा 376 के तहत दोषी ठहराए जाने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से पलटते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 375 और 377 के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता. इस प्रकार इसमें धारा 375 या 377 के प्रावधान लागू नहीं होंगे. इसलिए, आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय कोई अपराध नहीं किया गया है.

'मनोवैज्ञानिक विकार है नेक्रोफीलिया'

हाईकोर्ट ने आगे सिफारिश की कि संसद को नेक्रोफीलिया को दंडित करने के लिए कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है. यह एक 'मनोवैज्ञानिक विकार' है.

India NewsSupreme Court
अगला लेख