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नहीं था बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर, SC के पूर्व जज ने किए हैरान करने वाले खुलासे

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन नरीमन ने बाबरी मस्जिद को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि अदालत के निर्णयों का सेक्यूलरिजम के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं किया गया है.

नहीं था बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर, SC के पूर्व जज ने किए हैरान करने वाले खुलासे
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सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Updated on: 6 Dec 2024 6:35 PM IST

इन दिनों संंभल की जामा मस्जिद से लेकर अजमेर शरीफ की दरगाह पर कई बयान सामने आ रहे हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट एक पूर्व जज रोहिंटन नरीमन ने बाबरी मस्जिद को लेकर कई चौंका देने वाले खुलासे किए हैं. दरअसल एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करी और सवाल उठाते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने सेक्युलरिज्म के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं किया. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर नहीं था.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई और 2019 के ऐतिहासिक फैसले की भी आलोचना की. इस दौरान उन्होंने कहा कि साल 2019 के विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई थी. इस पर मेरी राय ये है कि न्याय का एक बड़ा मजाक है. मजाक ये कि इन निर्णयों में सेक्यूलरिजम को सही जगह नहीं दी गई.

Place Of Woship Act क्या बोले पूर्व जज

वहीं इस दौरान कार्यक्रम में Place Of Woship Act पर भी बातचीत हुई. गुरुवार को कार्यक्रम में पूर्व जस्टिस नरीमन ने कहा था कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 5 पन्ने उम्मीद जगाने वाले थे. दरअसल उन पांच पन्नों पर देशभर में चल रहे मुकदमों का जवाब दिया गया था. जिसमें मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की याचिकाएं दायर की गई थी.

भ्रामक और शरारतपूर्ण फैसला

उन्होंने 1992 को बाबरी मस्जिद गिराने के बाद भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर भी सवाल खड़े किए और इसे भ्रामक और शरारतपूर्ण फैसला बताया. उन्होंने कहा कि सबसे पहले इन लोगों ने लिब्रहान आयोग का गठन किया. इस आयोग ने 17 सालों के बाद जाकर साल 2009 में एक रिपोर्ट पेश की. इसके बाद इन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति संदर्भ दिया ताकि ये निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर था या नहीं. इस पर मैं कहूंगा कि ये एक शरारतपूर्ण और भ्रम फैलाने का प्रयास था.

बाबरी मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर था या नहीं?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व जज ने बाबरी मस्जिक के मुद्दे पर सुनवाई करने वाली पीठ के निर्णयों का हवाला दिया और डॉ. एम. इस्माइल फारुकी बनाम भारत सरकार (1994) का जिक्र किया. इसमें अयोध्या क्षेत्र के कब्जे को लेकर अधिनियम 1993 की वैधता और राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई की गई थी. इस सुनवाई में ये तय करने की कोशिश की गई थी कि आखिर बाबरी मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर था या फिर नहीं. यहां न्यायालय ने माना कि केंद्र सरकार द्वारा 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण वैधानिक रिसीवरशिप का एक प्रयोग था. हालांकि, न्यायमूर्ति अहमदी ने असहमति जताते हुए कहा कि यह कानून सेकुलरिज्म के खिलाफ है.

अयोध्या मामले पर क्या बोले?

इस दौरान उन्होंने अयोध्या मामले के फैसले पर कहा कि इस फैसले में एक सकारात्मक बात ये है कि इसमें पूजा स्थल का खास प्रवाधान अधिनियम 1991 को बरकरार रखा गया है. वहीं उन्होंने हाल ही में मुस्लिम धार्मिक स्थलों के नीचे हिंदू मंदिरों का दावा करने वाली याचिकाओं पर चिंचा जताई और कोर्ट के लिए पूजा स्थल अधिनियम 1991 के आवेदन पर बाबरी-अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के 5 पृष्ठों पर भरोसा करने की आवश्यकता को रेखांकित किया.

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