सौतेली मां...प्यार में सगी, लेकिन पेंशन के लिए अजनबी क्यों? SC ने एयर फोर्स से पूछा सवाल, जानें क्या है मामला
जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि मां एक व्यापक शब्द है. ऐसे में इसमें सौतेली मां को शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इस पर फिर से वायु सेना ने कहा कि यह नियम सौतेली मां पर लागू नहीं होते हैं. जहां जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 'आपके ये नियम कोई संविधान नहीं हैं और ना ही पत्थर की लकीर.

जब कोई कहे सौतेली मां, तो आपके मन में क्या आता है? शायद कोई फिल्मी खलनायिका, जिसकी आंखों में जलन और चेहरे पर कठोरता हो? लेकिन ज़रा रुकिए! असल ज़िंदगी की सौतेली माएं अब कहानी की खलनायक नहीं, बल्कि ममता की मिसाल बन रही हैं और इसी हकीकत को भारतीय वायुसेना ने नजरअंदाज कर दिया, जिससे सुप्रीम कोर्ट भी चौंक गया. दरअसल वायुसेना में सौतेली मां को बेटे के मर जाने के बाद पेंशन का कोई नियम नहीं है.
जयश्री वाय योगी ने याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि 'डिलवरी के दौरान उसके पति की पहली पत्नी की मौत हो गई थी. ऐसे में शख्स ने दूसरी शादी की. बच्चे की सौतेली मां ने उसे पाल-पोसकर बढ़ा किया. इसके बाद जब उसका बेटा एयर फोर्स में गया, तो हादसे के कारण उसकी मौत हो गई, लेकिन उन्हें सेना द्वारा पेंशन नहीं दी गई. अब कोर्ट ने एयरफोर्स को इस याचिका पर सोचने के लिए कहा है.
जिसने पाला, वो क्या हक नहीं रखती?
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय वायुसेना से सीधा सवाल पूछा कि 'आप उस महिला को पारिवारिक पेंशन से कैसे इनकार कर सकते हैं, जिसने 6 साल की उम्र से एक बच्चे को पाला-पोसा,और उसे इतना काबिल बनाया कि वो फोर्स में भर्ती हुआ? इस पर वायुसेना ने अपनी सफाई में कहा कि हमने नियमों के मुताबिक काम किया.
आपका नियम पत्थर की लकीर नहीं!
जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि मां एक व्यापक शब्द है. ऐसे में इसमें सौतेली मां को शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इस पर फिर से वायु सेना ने कहा कि यह नियम सौतेली मां पर लागू नहीं होते हैं. जहां जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 'आपके ये नियम कोई संविधान नहीं हैं और ना ही पत्थर की लकीर!