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Alimony 50,000 रुपये महीना, हर दो साल में 5% की बढ़त; गुजारा भत्ता को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा लेकिन अविवाहित महिला को 50,000 रुपये मासिक स्थायी भत्ता देने का आदेश दिया, जिसमें हर दो साल में 5% की वृद्धि भी जोड़ी गई है. कोर्ट ने कहा कि पति की दूसरी शादी या जिम्मेदारियां अलिमनी घटाने का आधार नहीं बन सकतीं. यह फैसला तलाकशुदा महिलाओं के अधिकारों की दिशा में ऐतिहासिक साबित हो सकता है.

Alimony 50,000 रुपये महीना, हर दो साल में 5% की बढ़त; गुजारा भत्ता को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 17 Jun 2025 3:17 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तलाकशुदा लेकिन अविवाहित महिला को 50,000 रुपये मासिक स्थायी भत्ता देने और हर दो साल में 5% वृद्धि लागू करने का आदेश दिया है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने पूर्व पति के घर को पत्नी के नाम पर ट्रांसफर करने का आदेश भी बरकरार रखा है. यह फैसला अब तक के अल्पतम स्थायी भत्तों की तुलना में 2.5 गुना बड़ा है, जिससे भविष्य के तलाक मामलों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.

दरअसल, रश्मि साधुखान बनाम राजा साधुखान केस में रश्मि ने यह तर्क दिया कि तलाक के बाद उन्हें वैसी जीवनशैली का भत्ता नहीं मिला जैसा उन्होंने शादीशुदा जीवन में जिया था. राजा ने जवाब में कहा कि उसकी आय सीमित है, दूसरी शादी हो चुकी है और बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारी भी है. 2007 में दोनों का अलगाव हुआ और मामला 2019 तक खिंचता रहा. 2016 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने 20,000 रुपये मासिक स्थायी भत्ता तय किया, लेकिन रश्मि ने इसे नाकाफी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

SC का बड़ा आदेश- 50,000 रुपये महीना, हर दो साल में 5% वृद्धि

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 50,000 रुपये मासिक भत्ता "न्यायसंगत, उचित और यथार्थवादी" है. हर दो साल में 5% बढ़ोतरी महंगाई और खर्चों के अनुरूप होगी. अदालतें केवल वर्तमान वेतन ही नहीं, बल्कि पूर्व आय, संपत्ति, जीवनशैली और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखेंगी. पति की दूसरी शादी, नए बच्चे या माता-पिता की जिम्मेदारी अलिमनी यानी गुजारा भत्ता घटाने का आधार नहीं हो सकते.

पति का फ्लैट भी पत्नी को मिलेगा

कोर्ट ने साफ किया कि पति को अपना फ्लैट पत्नी के नाम करना होगा और बकाया लोन चुकाना होगा. यह भी माना गया कि संपत्ति ट्रांसफर एक प्रभावशाली और स्थायी तरीका है ताकि पत्नी को रहने की स्थायी जगह मिल सके और बार-बार अदालत का सहारा न लेना पड़े.

"जीवनस्तर" बना अब कानूनी मानक

अदालतों को अब यह देखना होगा कि पत्नी को वैसा ही जीवनस्तर मिले जैसा विवाह के दौरान था, रहने का तरीका, स्वास्थ्य सेवाएं, सामाजिक गतिविधियां, यात्रा, आदि. अब भत्ते को "महज गुजारे लायक पैसा" नहीं माना जाएगा, बल्कि जीवन की निरंतरता के रूप में देखा जाएगा.

कमाई की होगी गहराई से जांच

कोर्ट ने आदेश दिया कि पति की घोषित और अघोषित आमदनी, पिछले वर्षों की कमाई, बैंक रिकॉर्ड, आयकर रिटर्न, संपत्ति दस्तावेज, नौकरी का इतिहास, सब कुछ देखा जाए. अब केवल कम आय बताकर बचा नहीं जा सकेगा.

इंटरिम मेन्टेनेन्स से सीख

रश्मि के केस में अंतरिम भत्ता भी कई बार बढ़ाया गया. 2010 में 8,000 रुपये, 2016 में 20,000 और 2023 में गैर-हाजिरी के चलते 75,000 रुपये. यानी जितनी देर होगी, उतना नुकसान होगा. यह उन पतियों के लिए चेतावनी है जो मुकदमे खींचकर पत्नी को थकाने की रणनीति अपनाते हैं. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मेंटेनेन्स और विरासत दो अलग चीजें हैं. तलाक के कारण बच्चों के पैतृक संपत्ति पर अधिकार खत्म नहीं होते. इससे तलाक के मामलों में बच्चों के भविष्य को लेकर कानूनी स्पष्टता बढ़ेगी.

भविष्य की तलाक नीति पर असर

  • कोर्ट अब पति की पूरी आर्थिक स्थिति को जांचेगा
  • संपत्ति ट्रांसफर को भत्ते के वैकल्पिक रूप में देखा जाएगा
  • भत्ते को महंगाई से जोड़ना अब नई सामान्य प्रक्रिया बन सकती है

महिलाएं अब निचले भत्तों को चुनौती दे सकेंगी, और वकीलों को आय की पूरी जांच का कानूनी अधिकार मिलेगा.

सुप्रीम कोर्ट
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