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नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक, हर मोड़ पर सरकार के साथ खड़े दिखे शक्तिकांत दास; बस इस चीज का रहेगा अफसोस

Shaktikanta Das: आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास आज रिटायर हो रहे हैं. वे 6 साल तक गवर्नर रहे. इस दौरान उन्होंने कई बड़े फैसले लिए. उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी बात यह रही कि उनका सरकार के साथ टकराव देखने को नहीं मिला. वे भी सरकार के हर फैसले के साथ खड़े दिखाई दिए. वह चाहे नोटबंदी का हो या फिर जीएसटी का...

नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक, हर मोड़ पर सरकार के साथ खड़े दिखे शक्तिकांत दास; बस इस चीज का रहेगा अफसोस
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आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास
( Image Source:  ANI )

RBI Governor Shaktikanta Das Tenure: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का कार्यकाल आज समाप्त हो रहा है. उनकी जगह संजय मल्होत्रा आरबीआई के नए गवर्नर होंगे. शक्तिकांत दास 6 साल तक आरबीआई के गवर्नर रहे. उन्होंने इस दौरान कई बड़े फैसले लिए.

शक्तिकांत दास को 2018 में उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफा देने के बाद आरबीआई गवर्नर बनाया गया था. वे 1980 बैच तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में मास्टर डिग्री और बर्मिंघम विश्वविद्यालय से लोकप्रशासन में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है.

शक्तिकांत दास को उनके कार्यकाल के दौरान अमेरिकी की ग्लोबल फाइनेंस पत्रिका ने दो बार सर्वश्रेष्ठ केंद्रीय बैंकर घोषित किया था. उन्होंने एकीकृत व्यवस्था गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आइए, उनके कार्यकाल में लिए गए बड़े फैसलों पर एक नजर डालते हैं...

नोटबंदी की योजना बनाना

नोटबंदी की योजना बनाना और उसका क्रियान्वयन करने में शक्तिकांत दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस समय वे आर्थिक मामलों के सचिव थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे देशवासियों को संबोधित करते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि 500 और 1000 के नोट अब प्रचलन में नहीं रहेंगे. नोटबंदी के फैसले की काफी आलोचना हुई, लेकिन दास ने इसका बचाव किया. उन्होंने लोगों की समस्याओं को दूर रखने के उपाय में जुटे रहे.

सरकार को मिला दिया ज्यादा लाभांश

आरबीआई गवर्नर के रूप में शक्तिकांत दास और केंद्र सरकार के बीच तालमेल अच्छा रहा. उनके गवर्नर बनने के बाद कभी आरबीआई की स्वायत्ता का मुद्दा नहीं उठाया गया. इस साल की शुरुआत में आरबीआई ने सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये का अब तक का सबसे अधिक लाभांश दिया.

कोविड महामारी की चुनौतियों का किया सामना

शक्तिकांत दास के कार्यकाल में ही कोरोना महामारी आई. इस दौरान उन्होंन महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए कई कदम उठाए. उन्हें लॉकडाउन के कारण होने वाले व्यवधानों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इस दौरान दास ने रेपो रेट को 4 प्रतिशत से नीचे लाने का ऐतिहासिक फैसला लिया. इससे पहले रेपो रेट इतना नीचे नहीं लाया गया था. उन्होंने दो साल तक कम ब्याज दर व्यवस्था को जारी कर रखा, जिससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आई.

सरप्लस हस्तांतरण के मुद्दे को सुलझाया

सरप्लस हस्तांतरण के मुद्दे को लेकर सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी बढ़ गई, जिससे उर्जित पटेल ने गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, शक्तिकांत दास ने गवर्नर बनने के बाद बाजार की चिंताओं को दूर किया और सरकार के साथ सरप्लस हस्तांतरण के मुद्दे को चतुराई से सुलझा लिया. उन्होंने सरकार को समय-समय पर पैसे का हस्तांतरण भी किया.

जीएसटी का सफल क्रियान्वयन

भारत में जुलाई 2017 से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को लागू किया गया. यह एकसमान अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है. इसके सफल क्रियान्वयन के लिए दास ने राज्यों के साथ मिलकर काम किया. उन्होंने जीएसटी को लागू करने के लिए कई कदम उठाए.

सात प्रतिशत से अधिक विकास दर पर रहा फोकस

शक्तिकांत दास को 2021 में तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया. इस दौरान उनका पूरा फोकस सात प्रतिशत से अधिक विकास दर बने रहने पर था. उन्होंने कोरोना महामारी से प्रभावित अर्थव्यस्था को फिर से पटरी पर लाने का काम किया.

मुद्रास्फीति बना अधूरा एजेंडा

शक्तिकांत दास के लिए मुद्रास्फीति एक अधूरा एजेंडा बन गया था. मई 2022 और 8 फरवरी 2023 के बीच रेपो दर में 250 आधार अंकों का इजाफा करने के बावजूद मुद्रास्फीति उच्च बनी रही. यह आरबीआई के 2-6 प्रतिशत के आराम क्षेत्र से ऊपर है. अपनी पिछली नीति समीक्षा में 6 दिसंबर को आरबीआई ने जीडीपी वृद्ध में गिरावट के बीच रेपो दर को 6.50 प्रतिशत के हाई लेवल पर बनाए रखा. इससे दर में कटौती की संभावना खत्म हो गई. नए आंकड़ों से पता चलता है कि खुदरा मुद्रास्फीति अक्तूबर 2024 में 14 महीने के हाई लेवल 6.21 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि सितंबर में यह 5.5 प्रतिशत थी.

कुल मिलाकर आरबीआई गवर्नर के रूप में अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान शक्तिकांत दास ने देश में व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए पारंपरिक और अपारंपरिक नीतिगत उपायों का इस्तेमाल किया.कोविड-19 महामारी के दौरान, दास ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए रेपो दर में 115 आधार अंकों की कटौती की. उन्होंने महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए ऋण स्थगन की पेशकश की.

बड़े कारपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने से किया परहेज

दास ने बड़े कारपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने से भी परहेज किया, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर उन्हें बैंकिंग क्षेत्र में अनुमति दी गई तो वे जुड़े हुए ऋण और स्व-व्यवहार पर रोक लगा देंगे. दास ने इस साल जुलाई में कहा था, कि दुनिया भर के अनुभव से पता चला है कि जब रियल सेक्टर की कंपनियां बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश करती हैं, तो हितों के टकराव की संभावना होती है. संबंधित पक्ष के लेन-देन की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है.

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