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Pahalgam Terror Attack: पूर्व डीजी बीएसएफ बोले- पहलगाम तो झांकी है, कर्नाटक, केरल, बंगाल अभी बाकी है – EXCLUSIVE

पूर्व बीएसएफ डीजी प्रकाश सिंह ने पहलगाम हमले को सिर्फ 'झांकी' बताया. उन्होंने चेताया कि असली खतरा कर्नाटक, केरल और बंगाल में छिपा है. स्थानीय स्लीपर सेल्स की मदद से पाकिस्तानी आतंकवादी हमले अंजाम दे रहे हैं. एजेंसियों को भीतर के गद्दारों को कुचलने की जरूरत है वरना ऐसे नरसंहार दोहराए जाएंगे.

Pahalgam Terror Attack: पूर्व डीजी बीएसएफ बोले- पहलगाम तो झांकी है, कर्नाटक, केरल, बंगाल अभी बाकी है – EXCLUSIVE
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 28 April 2025 11:03 PM IST

पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को मंगलवार के दिन हो चुके शर्मनाक ‘अमंगल’ की तह तक पहुंचने के लिए हिंदुस्तानी हुकूमत जुटी है. पाकिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों की रुह कंपाती आवाज और, नरसंहार में मारे जा चुके निहत्थे-निर्दोषों की ‘मर्माहतक कराह और चीखों’ ने, हमले के वक्त सोती रही भारतीय एजेंसियों (रॉ, आईबी, केंद्रीय अर्धसैनिक-सुरक्षा बलों, जम्मू कश्मीर पुलिस और एनआईए) को भी नींद से जगा दिया है. बात मगर इतने पर ही खतम नहीं हो जाती है. भारत के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force BSF) के रिटायर्ड महानिदेशक प्रकाश सिंह (IPS Prakash Singh) की मानें तो, पहलगाम (Pahalgam Terror Attack) सिर्फ ट्रेलर (झांकी) है. कर्नाटक, केरल बंगाल में देखिए अभी क्या होता है?

पहलगाम नरसंहार को लेकर यह तमाम अहम आशंकाएं बीएसएफ के रिटायर्ड महानिदेशक प्रकाश सिंह ने, नई दिल्ली में स्टेट मिरर से एक्सक्लूसिव बात करते हुए व्यक्त कीं. प्रकाश सिंह से पूछा गया था कि, ‘क्या पहलगाम रोका जा सकता था?’ जवाब में वह बोले, ‘जब तक हम कश्मीर से 370 हटा लिए जाने का ढिंढोरा पीटना बंद नहीं करेगें, तब तक कश्मीर में यही सब होगा. कश्मीर आज भी आतंकवादियों से भरा पड़ा है. कश्मीर में आस्तीन के सांपों की भरमार हैं. जम्मू-कश्मीर घाटी का भूगोल इतना विचित्र है कि उसे पढ़ पाना किसी बाहरी (पाकिस्तानी) इंसान के बूते की बात नहीं है.

पहलगाव-पुलवामा अपने ही अंजाम दिलाते हैं

यही वजह है कि पाकिस्तानी आतंकवादी, लोकल (कश्मीर घाटी के वे लोकल निवासी जो सीमा पार के आंतकवादियों की मदद करते हैं, जिन्हें फोर्स की भाषा में स्लीपर सेल कहा जाता है) लोगों का सहारा लेते हैं. कश्मीरी बाशिदों के यहां भारत के यह दुश्मन खाते-पीते रहते-सोते हैं. स्लीपर सेल (कश्मीर के स्थानीय मूल निवासी) यह सब पैसों के लालच में और कौम वालों की मदद के नाम पर करते हैं. और जैसे ही उन्हें (सीमा पार से कश्मीर घाटी में तबाही मचाने पहुंचे आतंकवादी) मौका मिलता है वह पुलवामा और पहलगाम को अंजाम देकर साफ भाग जाते हैं. इस पूरी खतरनाक खूनी प्रक्रिया में सबसे पहले तो जिम्मेदारी स्लिपर सेल की ही होती है. बाद में पाकिस्तान और उसके यहां पल-बढ़कर भारत में घुस आए आतंकवादियों की.’

स्लीपर सेल भी खास कमजोरी के युवा बनते हैं

एक सवाल के जवाब में सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक मानते हैं, “दरअसल कश्मीर में भी ऐसा नहीं है कि हर कोई स्लीपर सेल का ही काला धंधा करने के लिए व्याकुल हो. स्लीपर सेल बनने वालों में अधिकांश वे युवा शामिल होते हैं जिनकी एजूकेशन या तो बिलकुल नहीं है. अगर वे पढ़े लिखे भी हैं थोड़ा बहुत, तो उनके पास खाने-कमाने का कोई जरिया नहीं है. बस इसी कमजोर नस को पाकिस्तान में बैठे बड़े आतंकवादी गुट पकड़ कर दबाते हैं. यह कहकर कि तुम्हें (स्लीपर सेल बने स्थानीय नागरिकों को) किसी पर गोली थोड़ा ही न चलानी है. तुम्हें तो सिर्फ हमारे लड़कों (आतंकवादियों) की मदद भर करनी है क्योंकि उनके लिए किसी भी आतंकवादी घटना को अंजाम देने के लिए कुछ दिन ठहरने के लिए रहने, खाने-पीने और रास्ता दिखाने की जरूरत होती है.”

एजेंसियों का कुछ नहीं बिगड़ा, अपने सांप-सपोले मारो

पूर्व डीजी बीएसएफ प्रकाश सिंह के मुताबिक, “पाकिस्तान को भारत (विशेषकर कश्मीर घाटी में) में तबाही मचाने के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं करना है. हमारे बीच में मौजूद आस्तीन के सांप उनके लिए रामबाण होते हैं. पहले हमारी एजेंसियों को इन अपने बीच मौजूद सपोलों-सांपों को कुचलना होगा. कुछ इस तरह से कि एक सांप कुचला जाए उसकी दुर्दशा देखकर बाकी सांप-सपोलों की रुहें कांप उठें. एजेंसियों को किसी भी वक्त और कश्मीर घाटी में किसी भी जगह को यह सोचकर नहीं छोड़ देना है कि, फलां जगह तो दुश्मन ताकतें कुछ कर ही नहीं सकती है. शायद पहलगाम की बैसारन घाटी में स्थित पर्यटन स्थल को लेकर, हमारी एजेंसियों के दिमाग में बैठी यही गफलत-गलतफहमी ले डूबी. एजेंसियों का क्या बिगड़ा कुछ नहीं. मारे तो पहलगाम में 26 बेकसूर गए न.”

पुलवामा-पहलगाम रोके जा सकते थे बशर्ते...

क्या पहलगाम-पुलवामा नरसंहार रोके जा सकते थे? सवाल के जवाब में सीमा सुरक्षा बल के रिटायर्ड और उत्तर प्रदेश/असम के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहा, “हां, क्यों नहीं रोके जा सकते हैं? सब कुछ संभव है मगर हमारी एजेंसियों में ईमानदारी, कर्तव्य-परायणता, सुरक्षा और समझदारी तो प्रचुर मात्रा में बाकी बची हो तब न.” क्या आप यह कहना चाहते हैं कि पहलगाम नरसंहार में हमारी एजेंसियां चूक गईं?

26 को मारकर वे 4-5 जिंदा क्यों निकल गए?

पूछने पर प्रकाश सिंह ने कहा, “केवल चूक नहीं गईं बहुत बुरी तरह से चूक गईं. सोचिए जिस जगह और इतनी दुर्गम घाटी में पर्यटन स्थल हो, वहां सुरक्षाकर्मी तक मुहैया नहीं थे. पाकिस्तानी आतंकवादी उस जगह पर जाकर अंधाधुंध गोलियां बरसाकर जिंदा आखिर बच ही कैसे गए? यह सब क्या है? इसे अपनी एजेंसियों की लापरवाही नहीं तो और क्या कहूं मैं? अगर यही हाल रहा तो अभी तो पुलवामा-पहलगाम को लेकर थू-थू हो रही है. आने वाले वक्त में देखिए कि केरल, कर्नाटक, बंगाल में क्या-क्या और देखने को मिल जाए?”

आतंकी हमला
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