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Pahalgam Terror Attack: पहलगाम पर कोसने से पहले यह तो सोचो कि... कारगिल हीरो कर्नल (रिटा.) की खरी-खरी-EXCLUSIVE

कारगिल युद्ध के हीरो रहे रिटायर्ड कर्नल उदय प्रताप सिंह चौहान ने पहलगाम नरसंहार पर सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि निर्जन बैसारन घाटी में सुरक्षा इंतजाम न होने से 26 बेगुनाहों की जान गई. चौहान ने एजेंसियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब मौत तय थी तो आम लोगों को भी आतंकियों से मुकाबला करना चाहिए था. सरकार को सब दोष देना सही नहीं.

Pahalgam Terror Attack: पहलगाम पर कोसने से पहले यह तो सोचो कि... कारगिल हीरो कर्नल (रिटा.) की खरी-खरी-EXCLUSIVE
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 28 April 2025 10:08 AM IST

‘पहलगाम नरसंहार (Pahalgam Terror Attack) का ज़ख्म बेशक कभी नहीं भर सकेगा. बियाबान जंगल में पाकिस्तानी आतंकवादियों (Pakistani Terrorist) ने निहत्थे-निर्दोष भारतीयों के साथ जो तांडव किया, वो आम-ओ-खास की रुह कंपा देने वाला है. भारतीय फौज की नौकरी के दौरान बैसारन घाटी (Baisaran Valley Terror Attack) मेरी पूरी घूमी हुई है. डरावना दुर्गम पहाड़ी जंगली इलाका है. आम-आदमी की बात छोड़िये, कार-स्कूटर का पहुंचना ही दूभर है. पर्यटन के लिहाज से राज्य सरकार ने भले ही उसे थोड़ा-बहुत तैयार कर लिया है. यह अलग बात है.

पहलगाम तांडव एजेंसियों की चूक का नतीजा

निर्जन जंगल के बीच मौजूद बैसारन घाटी पर्यटन स्थल और स्थानीय लोगों की आय-अस्थाई रोजगार की जगह तो हो सकती है. सुरक्षित तो यह जगह जब फौज केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों के लिए नहीं तो फिर, यहां भला आम इंसान की क्या बकत होगी? आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. इस सबके बाद भी मगर 22 अप्रैल 2025 को जो कहर बरपाने का मौका आतंकवादियों के हाथ लग गया, वह हिंदुस्तानी सुरक्षा, खुफिया एजेंसियों की ढील और चूक का नतीजा हैं. यह स्वीकार करना पड़ेगा.’

कॉरगिल वॉर में पाकिस्तानी फौज से सामना

यह तमाम अंदर की बातें बेबाकी से बयान की हैं उदय प्रताप सिंह चौहान ने. वह भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1999 में लड़ी गई ‘कारगिल-वॉर’ के ‘हीरो’ हैं. कारगिल वॉर के दौरान पाकिस्तान की तरफ से अपने ऊपर आए ग्रेनेड से बुरी तरह जख्मी हो गए थे. भारतीय फौज में मेजर के रूप में कारगिल वॉर के रणबांकुरे रह चुके उदय प्रताप सिंह चौहान तब भारत पाकिस्तान सीमा पर, बोफोर्स तोपखाने (बोफोर्स रेजीमेंट) की तरफ से बहैसियत “बोफोर्स तोप बैटरी कमांडर” के पद पर पाकिस्तानी फौज के छक्के छुड़ा रहे थे.

इसलिए कारगिल वॉर मैदान छोड़ना पड़ा

पाकिस्तान की ओर से छेड़े गए कारगिल वॉर में Colonel Uday Pratap Singh Chauhan (Kargil War Bofors Battery Commander Indian Army) करीब दो महीने तक, कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों में पाकिस्तानी फौज के लिए भारतीय फौज की ओर से जानलेवा मुसीबत की वजह बन रहे. भारत-पाकिस्तान के बीच उस युद्ध में बोफोर्स तोप से पाकिस्तानी सैनिकों पर ‘काल’ बनकर टूटने वाले, रिटायर्ड कर्नल (कारगिल युद्ध के दौरान मेजर थे) उदय प्रताप सिंह चौहान को जब, पाकिस्तानी फौज की ओर से दागा गया एक ग्रेनेड बदन में आकर घुस गया. तभी उन्हें भारतीय फौज को वहां से मजबूरन सुरक्षित निकाल कर आर्मी हॉस्पिटल में दाखिल कराना. उस हमले में चौहान के बदन में कितने ‘स्प्लिंटर’ घुसे, गिनती याद नहीं.

इसलिए बैसारन घाटी के बारे में मालूम है

भारत के ऐसे रणबांकुरे लाल कहिये या फिर सपूत और कारगिल वॉर में खुद की जान की बाजी लगा देने वाले, रिटायर्ड कर्नल ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर, खुलकर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम से बात की. उदय प्रताप सिंह चौहान कारगिल वॉर के बाद भी कई साल तक भारतीय फौज की सेवा में रहे. साल 2018 में वे भारतीय सेना से कर्नल के पद से रिटायर हो गए. पहलगाम कांड पर बात करते वक्त वे उत्तराखंड के रुद्रपुर में मौजूद रहे. चौहान ने विशेष बातचीत के दौरान बताया कि, “मेरी पोस्टिंग सेना की नौकरी के दौरान पहलगाम में तो कभी नहीं रही. कश्मीर घाटी में मैं भारतीय फौज की तरफ से श्रीनगर में तैनात रहा. जहां तक सवाल पहलगाम की अब खूनी हो चुकी बैसारन घाटी के बाबत मुझे जानकारी होने का सवाल है, तो वह पूरा इलाका मैंने माउंटेन एडवेंचर के दौरान घूमा है. इसलिए बैसारन घाटी के चप्पे चप्पे और भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हूं.”

26 मौत की जिम्मेदार सुस्त भारतीय एजेंसियां

हिंदुस्तानी एजेंसियों (आईबी, रॉ, एनआईए, जम्मू कश्मीर पुलिस, केंद्रीय अर्धसैनिक बल) की लापरवाही से नाराज, भारतीय फौज और कारगिल वॉर के पूर्व योद्धा उदय प्रताप सिंह चौहान सवाल करते हैं, “जिस बियाबान जंगल के बीच निर्जन स्थान पर कार-स्कूटर तक जाना संभव नहीं है. उस पर्यटन स्थल को आखिर हमारी एजेंसियों ने लावारिस छोड़ ही क्यों दिया था? क्या हमारी एजेंसियां यह सोचे बैठी थीं कि, जहां आम इंसान का पहुंचना दुर्लभ है, वहां आतंकवादी भी नहीं पहुंच सकेंगे? मुझे तो पूरा विश्वास है कि हमारी ऐजेंसियों की यही अक्षम्य चूक, 26 निहत्थे बेगुनाह भारतीय की 22 अप्रैल 2025 को बैसारन घाटी में अकाल मौत की वजह बन गई.”

पहलगाम, पुलवामा हो या फिर मुंबई हमले

पहलगाम में बीते मंगलवार को हुए ‘खूनी-अमंगल’ पर भारतीय फौज के पूर्व कर्नल और कॉरगिल वॉर के योद्धा चौहान, हिंदुस्तानी एजेंसियों के निक्मेपन पर बेबाक बयानी करते हैं. वहीं वे दूसरी ओर उससे भी महत्वपूर्ण तर्क देते हैं. जिसके मुताबिक, “भारतीय एजेंसियों ने बैसारन घाटी (पहलगाम) को लावारिस छोड़ दिया. इसका जवाब तो हिंदुस्तानी हुकूमत को एजेंसियों के बॉसेस से मांगना चाहिए. मगर ऐसे मौकों पर मैंने एक फौजी होने के नाते जो अक्सर भारत में खासकर देखा है. वो भी कम शर्मनाक नहीं है. पहलगाम-पुलवामा या फिर मुंबई के 26/11 आतंकवादी हमले हों. हमारा जनमानस ऐसे बुरे वक्त के लिए सीधे-सीधे हुकूमत को कोसना शुरू कर देता है. जोकि सरासर गलत है.

सरकार को कोसने से पहले आप भी तो सोचें...

जब मौके पर सीधा मुकाबला दुश्मन से आपका हो रहा है. और आप जानते हैं कि मौत तय है. तब फिर दुश्मन के सामने मौजूद भारतीय को भी तो मुकाबला करना चाहिए. आतंकवादियों से लड़ने के लिए जब तक एजेंसियां दूर दराज से पहुंचेंगी, तब तक तो आप ही दुश्मन के सामने हैं. जब जान जाने की पूरी पूरी उम्मीद है ही तो फिर क्यों नहीं भिड़ जाते हैं दुश्मन से. क्या होगा मार ही डालेगा न. अगर आप विरोध नहीं भी करेंगे. तब भी तो सामने हथियारबंद खड़ा दुश्मन आपकी जान बख्श ही देगा, इसकी क्या गारंटी. आपके विरोध से कम से कम दुश्मन के रास्ते में कुछ तो बाधा पड़ेगी. हो सकता है कि दुश्मन आपके विरोध से हड़बड़ाकर पीछे हट जाए या फिर भाग खड़ा हो. भले ही ऐसे में आपकी जान न बच सके, मगर जो और लोग मुसीबत में है. उनकी जिंदगी सुरक्षित हो सकने के चांस तो बढ़ ही सकते हैं. सब कुछ उस सरकार पर डाल देने से कुछ नहीं होगा, जो आपसे बहुत दूर है. पहलगाम-पुलवामा जैसी मुसीबतों में फंसे होने पर निहत्थों को भी मुकाबला करना चाहिए. यह सोचकर कि बिना मुकाबले के ही मरना है तो क्यों न मुकाबला करके मरें.”

आतंकी हमला
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