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JNUSU Election: लेफ्ट ने तीन पदों पर कब्जा किया, आइसा के नीतीश बने छात्रसंघ अध्यक्ष; ABVP की कैसे हुई 10 साल बाद वापसी?

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2024 में AISA-DSF गठबंधन ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव पदों पर जीत हासिल की, जबकि ABVP ने संयुक्त सचिव पद पर सफलता प्राप्त की. एबीवीपी ने काउंसलर चुनावों में भी ऐतिहासिक प्रदर्शन किया, 1999 के बाद से अपनी सर्वश्रेष्ठ जीत दर्ज की. परिणामों ने जेएनयू कैंपस की राजनीति में नए बदलाव और चुनौती का संकेत दिया है.

JNUSU Election: लेफ्ट ने तीन पदों पर कब्जा किया, आइसा के नीतीश बने छात्रसंघ अध्यक्ष; ABVP की कैसे हुई 10 साल बाद वापसी?
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 28 April 2025 11:07 AM IST

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2024-25 में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला, जहां वामपंथी संगठनों ने अध्यक्ष और अन्य दो प्रमुख पदों पर जीत हासिल की, जबकि ABVP ने संयुक्त सचिव पद पर अपनी विजय प्राप्त की. इन चुनावों के दौरान लगभग 70 प्रतिशत मतदान हुआ, और परिणामों ने कैंपस की राजनीति में नई ऊर्जा का संचार किया.

इस बार AISA और DSF गठबंधन ने मिलकर अध्यक्ष पद सहित तीन प्रमुख पदों पर जीत दर्ज की. नीतीश कुमार (AISA) ने अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की, जबकि मनीषा (DSF) और मुन्तेहा फातिमा (DSF) क्रमशः उपाध्यक्ष और महासचिव बने. यह जीत वामपंथी संगठनों के लिए जेएनयू में लगातार अपने प्रभाव को बनाए रखने का संकेत है.

ABVP की वापसी

ABVP ने हालांकि संयुक्त सचिव पद पर अपनी जीत दर्ज की, जो पिछले एक दशक में उनकी पहली जीत है. इसके साथ ही, काउंसलर चुनावों में ABVP ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 42 में से 23 सीटें जीतीं, जो 1999 के बाद उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. यह नतीजे ABVP की राजनीतिक ताकत में वापसी को दर्शाते हैं.

जेएनयू की राजनीति में बदलाव का संकेत

इस चुनाव में जहां एक ओर वामपंथी संगठनों का दबदबा बना रहा, वहीं ABVP ने भी अपना स्थान मजबूत किया. एबीवीपी के नेता वैभव मीना ने कहा कि यह जीत भविष्य में उनके और संगठन के लिए बड़े बदलाव का संकेत है, और वे अगले चुनावों में सभी चार सीटें जीतने का लक्ष्य रखते हैं.

नेताओं की प्रतिबद्धता और छात्र हितों की रक्षा

नवनिर्वाचित अध्यक्ष नीतीश कुमार ने छात्रों के कल्याण के लिए काम करने का वादा किया, जबकि उपाध्यक्ष मनीषा और महासचिव मुन्तेहा ने भी छात्र अधिकारों के लिए अपनी वकालत जारी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की. उन्होंने यह भी कहा कि जेएनयू हमेशा छात्रों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता रहेगा. इन चुनावों के परिणाम जेएनयू के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव और दोनों मुख्य पार्टियों की ओर से भविष्य में होने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा का संकेत देते हैं.

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