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अब बस बहुत हुआ... Places of Worship Act पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, याचिका ख़ारिज

सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर कड़ा रुख अपनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि यह कानून धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने के लिए जरूरी है. फैसले से विवादित स्थलों से जुड़ी याचिकाओं पर रोक लगी है. कोर्ट ने कहा कि अब इस मुद्दे पर और बहस की जरूरत नहीं.

अब बस बहुत हुआ... Places of Worship Act पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, याचिका ख़ारिज
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 17 Feb 2025 4:21 PM IST

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट, 1991 से जुड़े मामलों में दायर नई याचिकाओं पर नाराजगी जताई है. यह अधिनियम किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदलने या उसे पुनः प्राप्त करने के लिए मुकदमा दायर करने से रोकता है. सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "बस बहुत हो गया, इसे खत्म होना चाहिए" और यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में कोई नई याचिका स्वीकार नहीं करेगा.

हालांकि, न्यायालय ने अतिरिक्त आधारों के साथ हस्तक्षेप याचिका दायर करने की अनुमति दी है, लेकिन उसने नई याचिकाओं पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस समय आई जब वह पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. यह कानून विशेष रूप से हिंदू मंदिरों को पुनः प्राप्त करने के कानूनी प्रयासों के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जाता है.

एक्ट पारित करने का क्या था उद्देश्य

प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट, 1991 को यह सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था कि 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में कोई बदलाव न हो. इस अधिनियम में राम जन्मभूमि विवाद को अपवाद के रूप में रखा गया था. कानून की वैधता को चुनौती देने वाली मूल याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की थी, लेकिन पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्षों द्वारा 10 मस्जिदों को पुनः प्राप्त करने की मांग करने वाली 18 याचिकाओं की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. इन विवादों में शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद और संभल मस्जिद शामिल हैं.

विपक्षी दलों ने किया SC का रुख

इस मामले को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्माया हुआ है. कई विपक्षी दलों ने इस कानून का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जबकि हिंदू संगठनों और दक्षिणपंथी समूहों ने इसे चुनौती दी. कांग्रेस जिसने 1991 में यह कानून पारित किया था और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रही हैं कि इस कानून को सख्ती से लागू किया जाए. एक और याचिकाकर्ता ने भी अदालत में दलील दी कि कानून को बरकरार रखा जाना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है.

अप्रैल में होगी अगली सुनवाई

सुनवाई के दौरान, सीजेआई खन्ना ने यह भी कहा कि पिछली बार नई याचिकाएं दाखिल करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन इस तरह के हस्तक्षेप की भी एक सीमा होनी चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल उन्हीं नई याचिकाओं को अनुमति दी जाएगी, जिनमें अब तक न उठाए गए नए आधार हों. इस बीच, याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार के जवाब का अभी इंतजार है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह तक स्थगित कर दी है.

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