बिहार में कोई शिकायत नहीं, बस दिल्ली में चिंता : SIR पर सुप्रीम कोर्ट में बोला चुनाव आयोग
सुप्रीम कोर्ट में बिहार की मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार के किसी मतदाता ने कोई शिकायत नहीं की है, सिर्फ दिल्ली के संगठन चिंतित हैं. आयोग ने बताया कि 65 लाख नाम हटाने के बाद 21.5 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं. कोर्ट ने आयोग से पारदर्शिता और नियम 21 के पालन की बात दोहराई, जबकि याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम और महिला मतदाताओं के नामों में असमान कटौती का मुद्दा उठाया.

बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को लेकर उठे विवाद पर मंगलवार को चुनाव आयोग (EC) ने सुप्रीम कोर्ट में तीखा जवाब दिया. आयोग ने कहा कि बिहार के किसी भी मतदाता ने अब तक कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है - सिर्फ दिल्ली के कुछ राजनीतिक दल और संगठन इस मुद्दे पर चिंता जता रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ - जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची शामिल हैं - बिहार में चल रहे SIR प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची अधिसूचित की जा चुकी है और जो लोग वास्तविक रूप से प्रभावित हैं, वे आगे आकर शिकायत कर सकते हैं.
अदालत में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “जो लोग अवैध रूप से भारत में रह रहे होंगे, वे खुद आगे नहीं आएंगे क्योंकि वे उजागर हो जाएंगे... लेकिन हमें कम से कम उन लोगों की एक सूची दीजिए जो वास्तव में प्रभावित हुए हैं.” न्यायमूर्ति बागची ने सवाल उठाया कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाए गए हैं. उन्होंने कहा, “हमने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति मृत है या स्थानांतरित हो गया है, तो उसे हटाना ठीक है. लेकिन अगर किसी जीवित व्यक्ति का नाम हटाया जा रहा है, तो नियम 21 और SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का पालन किया जाना चाहिए. जो नाम हटाए गए हैं, उनकी जानकारी संबंधित निर्वाचन कार्यालयों में सार्वजनिक की जानी चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा कि मतदाता सूची के अंतिम आंकड़ों में भ्रम है, “हमें यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि जो नए नाम जोड़े गए हैं, वे पहले हटाए गए मतदाताओं की भरपाई हैं या नई प्रविष्टियां.”
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने कहा, “अधिकांश नए मतदाता हैं. जो नाम हटाए गए हैं, वे मृत, स्थानांतरित, या डुप्लिकेट प्रविष्टियों से संबंधित हैं.” वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग के कदम से मुस्लिम और महिला मतदाताओं के नामों में असमान रूप से कमी आई है. उन्होंने अदालत को 65 लोगों की एक सूची सौंपी और कहा कि ये लोग प्रभावित हैं और इस संबंध में शपथपत्र भी दाखिल किया जा सकता है.
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि “बिहार में SIR से संबंधित कुछ शिकायतें आई थीं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर निगरानी रखी, लेकिन दूसरे राज्यों में SIR कराना चुनाव आयोग का अधिकार-क्षेत्र है.”
मतदाता सूची में आंकड़ों का गणित
बिहार में SIR प्रक्रिया के बाद मतदाताओं की कुल संख्या 7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ रह गई है, यानी करीब 47 लाख मतदाता कम हो गए. हालांकि, अंतिम सूची में 17.87 लाख की वृद्धि भी हुई है क्योंकि 21.53 लाख नए नाम जोड़े गए हैं और 3.66 लाख नाम हटाए गए. इससे पहले 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट लिस्ट में आयोग ने 65 लाख नाम हटाए थे. इसमें 22 लाख मृतकों के नाम, 7 लाख डुप्लिकेट प्रविष्टियां और 36 लाख लोग ऐसे थे जो स्थायी रूप से दूसरे स्थान पर चले गए थे या सत्यापन के दौरान नहीं मिले.
चुनाव आयोग का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया 'विकेंद्रीकृत' है, यानी प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) या असिस्टेंट ERO को नाम जोड़ने या हटाने का अंतिम अधिकार है.
राजनीतिक और कानूनी मायने
इस पूरे विवाद का राजनीतिक महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब नजदीक हैं. विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूची में बदलाव के नाम पर संवेदनशील इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं के नाम बड़ी संख्या में हटाए जा रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग इसे नियमित प्रक्रिया बता रहा है. अदालत ने फिलहाल मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं की है, लेकिन यह साफ कर दिया है कि आयोग को अपने सभी कदम कानूनी प्रावधानों और पारदर्शिता के साथ उठाने होंगे.