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बिन पानी सब सून! 5,000 लोगों का नादगुडी गांव बना वीराना, सरकार भी नहीं आई काम

शिवगंगा जिला, जो मुख्य रूप से धान और चावल की खेती के लिए जाना जाता है. नादगुडी जैसे गांवों में सिंचाई के लिए पानी की कमी ने किसानों को निराश किया. बिना पानी के खेती असंभव हो गई, और रोजगार के अवसर खत्म होने के कारण परिवारों ने गांव छोड़ना शुरू कर दिया.

बिन पानी सब सून! 5,000 लोगों का नादगुडी गांव बना वीराना, सरकार भी नहीं आई काम
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रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 5 Aug 2025 10:01 AM

तमिलनाडु के शिवगंगा जिले का नादगुडी गांव, जो कभी 5,000 से अधिक लोगों का समुदाय था, आज एक वीरान और खाली गांव में तब्दील हो चुका है. इस गांव की कहानी पानी की कमी की त्रासदी को बयां करती है, जिसने न केवल लोगों के जीवन को प्रभावित किया, बल्कि एक पूरे समुदाय को उजड़ने पर मजबूर कर दिया. कई सालों से पानी के अभाव ने इस गांव को भूतिया बना दिया है, जहां अब केवल खाली घर और सूनी गलियां बची हैं.

एक त्रासदी से गुजर रहा नादगुडी गांव, जो शिवगंगा शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कभी अपने कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था और सामुदायिक जीवन के लिए जाना जाता था. स्थानीय निवासियों के अनुसार, गांव में पानी की समस्या कई दशकों से चली आ रही है. ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी, और बारिश पर निर्भरता ने स्थिति को और जटिल कर दिया. बारिश के मौसम में पहाड़ियों से बहकर आने वाला पानी ग्रामीणों को राहत तो देता था लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए.

अब इस गांव में कोई नहीं बचा

स्थानीय निवासी थंगराज ने अपनी व्यथा शेयर करते हुए बताया, 'हमारा गांव नादगुडी कभी हंसी-खुशी से भरा था. लेकिन पानी की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने हमें धीरे-धीरे पलायन के लिए मजबूर कर दिया. अब यहां कोई नहीं बचा.' थंगराज उन अंतिम लोगों में से एक हैं, जिन्होंने गांव छोड़ने से पहले इस संकट को करीब से देखा. पानी की कमी ने न केवल दैनिक जीवन को प्रभावित किया, बल्कि खेती और आजीविका को भी नष्ट कर दिया.

खाली घर और ख़ामोशी में पड़े उजाड़ खेत

शिवगंगा जिला, जो मुख्य रूप से धान और चावल की खेती के लिए जाना जाता है. नादगुडी जैसे गांवों में सिंचाई के लिए पानी की कमी ने किसानों को निराश किया. बिना पानी के खेती असंभव हो गई, और रोजगार के अवसर खत्म होने के कारण परिवारों ने गांव छोड़ना शुरू कर दिया. हाल के सालों में, नादगुडी की आबादी तेजी से घटती चली गई. एक समय था जब यहां 5,000 से अधिक लोग रहते थे, लेकिन आज गांव लगभग खाली हो चुका है. जो कुछ लोग बचे थे, वे भी बेहतर भविष्य की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर गए. खाली पड़े घर और उजाड़ खेत इस गांव की दुखद कहानी को चीख-चीखकर बयां करते हैं.

मदद के लिए सरकार भी विफल

सरकारी प्रयास और चुनौतियां पानी की कमी से निपटने के लिए कई सरकारी योजनाएं और जल संरक्षण परियोजनाएं चलाई गईं, लेकिन नादगुडी जैसे दूरदराज के गांवों तक इनका लाभ नहीं पहुंच सका. तमिलनाडु में चक्रवाती तूफान जैसे प्राकृतिक आपदाओं ने भी स्थिति को और जटिल किया. उदाहरण के लिए, 2018 में चक्रवात गाजा ने पुदुक्कोट्टई जिले के कोठमंगलम जैसे क्षेत्रों में पानी की समस्या को हल करने में मदद की थी, जब एक किसान ने बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए कुआं बनाया. लेकिन नादगुडी में ऐसी पहल की कमी रही. स्थानीय लोगों ने सरकार से बार-बार पानी की आपूर्ति के लिए अनुदान और बुनियादी ढांचे की मांग की, लेकिन उनकी मांगें अनसुनी रह गईं. ग्रामीणों का कहना है कि टैंकरों पर निर्भरता ने उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर किया, जिससे पलायन ही एकमात्र विकल्प बचा.

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