Mumbai Train Blasts 2006: HC के फैसले के बाद पीड़ित परिवारों में गुस्सा, पूछा - क्या हमें और 19 साल इंतजार करना पड़ेगा?
2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले से पीड़ित परिवारों में गुस्सा और सदमा है. 19 साल के लंबे इंतजार के बाद आए इस फैसले पर परिवारों ने कहा कि 'न्याय की हत्या हुई है.' कई ने पूछा, “अगर ये दोषी नहीं हैं तो 200 लोगों को किसने मारा?” कई पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की मांग की.

2006 के 11 जुलाई को मुंबई में हुई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट ने 200 जिंदगियां निगल ली थीं और 700 से ज्यादा लोगों को घायल कर दिया था. 19 साल तक चले इस केस में सोमवार को एक चौंकाने वाला मोड़ आया जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. इस फैसले ने न सिर्फ पीड़ित परिवारों को झकझोर दिया, बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए. पीड़ितों के परिजन और बचे हुए लोग सदमे में हैं.
किसी ने कहा, “अब तो ऐसा लगता है कि किसी ने भी हत्या नहीं की.” किसी ने इसे 'न्याय की हत्या' करार दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कोर्ट के इस फैसले ने उन परिवारों के पुराने जख्म हरे कर दिए जिन्होंने अपनों को खोया या हादसे में अपनी जिंदगी बदलते देखी. कई लोग कहते हैं कि अगर ये लोग निर्दोष हैं, तो फिर असली गुनहगार कहां हैं? क्या हमें फिर से 19 साल इंतजार करना पड़ेगा?
क्या किसी ने हत्या नहीं की? - परिजनों का दर्द
परिजनों ने कहा कि यह फैसला उनके लिए बेहद चौंकाने वाला है. कई ने सवाल उठाया - “अगर ये 12 आरोपी निर्दोष हैं तो 200 लोगों को किसने मारा? क्या अब कानून कह रहा है कि किसी ने भी यह अपराध नहीं किया?”
प्रीति सावंत, जिनके पति पराग इस ब्लास्ट के बाद 9 साल कोमा में रहने के बाद 2015 में चल बसे, अब वेस्टर्न रेलवे में काम करती हैं. उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और कहा, “मैं पुराने घाव नहीं कुरेदना चाहती.”
'न्याय की हत्या हुई' - पीड़ितों का गुस्सा
कलाकार महेंद्र पिताले, जिन्होंने धमाके में एक हाथ गंवाया, बोले - “यह फैसला बड़ा झटका है. हमें लगा था गुनहगारों को फांसी होगी. अगर ये लोग निर्दोष हैं, तो असली अपराधी कौन हैं? 19 साल बाद भी न्याय नहीं मिला.” उन्होंने यह भी कहा कि उनका कृत्रिम हाथ बेहद महंगा है और उन्हें इसे बदलने के लिए बार-बार ट्रस्ट और स्पॉन्सर्स की मदद लेनी पड़ती है.
चार्टर्ड अकाउंटेंट चिराग चौहान, जो धमाके में रीढ़ की चोट से पैरालाइज हो गए, ने सोशल मीडिया पर लिखा - “मैंने आतंकियों को माफ कर दिया, लेकिन आज कानून ने हमें धोखा दिया. आज न्याय की हत्या हुई.”
घर तबाह, जिंदगी बदल गई
वसई की सगुना भालेराव ने अपने बेटे हर्षल को इस ब्लास्ट में खो दिया. उन्होंने कहा - “कोई फैसला मेरे बेटे को वापस नहीं ला सकता, लेकिन गुनहगारों को सजा मिलनी चाहिए थी.” हर्षल के पिता यशवंत ने कहा - “हमने अपने बंगले का नाम ‘हर्षल 7/11’ रखा. वह हमारा इकलौता बेटा था. अब बेटी ही सहारा है.”
वसई निवासी रानिया डीसूजा ने छह साल की उम्र में पिता को खोया. “हमारी पूरी जिंदगी बदल गई. पापा ही कमाने वाले थे. मां ने हमें पाला, वेस्टर्न रेलवे ने हमें नौकरी दी, लेकिन खालीपन कभी नहीं भरेगा.”
19 साल बाद भी क्यों लटका है न्याय?
कई पीड़ितों ने सवाल उठाए कि निचली अदालत में जिन सबूतों पर सजा हुई, वही हाई कोर्ट में क्यों खारिज हुए? वकीलों और पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील और केस की फिर से जांच की मांग की. 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के भीतर सात धमाके हुए थे. इन धमाकों में 200 लोगों की मौत और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.