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मनरेगा से नहीं हुआ गरीबों का भला, SBI रिसर्च ने VB-G RAM G को बताया गेमचेंजर, जानें कैसे

ग्रामीण गरीबों के लिए सुरक्षा कवच मानी जाने वाली मनरेगा योजना पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं. रोजगार के वादे के बावजूद ज़मीनी हकीकत यह रही कि करोड़ों जरूरतमंद परिवारों तक इसका पूरा लाभ नहीं पहुंच पाया. अब SBI रिसर्च की ताज़ा रिपोर्ट ने मनरेगा की इन खामियों को उजागर करते हुए VB-G RAM G फ्रेमवर्क को ग्रामीण रोजगार की दिशा में एक गेमचेंजर करार दिया है,

मनरेगा से नहीं हुआ गरीबों का भला, SBI रिसर्च ने VB-G RAM G को बताया गेमचेंजर, जानें कैसे
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( Image Source:  ANI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 30 Dec 2025 12:36 PM IST

ग्रामीण भारत में रोजगार की तस्वीर अब नए रंगों में उभरने वाली है. वर्षों से गांवों के लिए सुरक्षा कवच बने मनरेगा को अब एक नए ढांचे में ढाला जा रहा है. VB-G RAM G नाम के इस नए फ्रेमवर्क के साथ सरकार का लक्ष्य सिर्फ मजदूरी देना नहीं, बल्कि गांवों में टिकाऊ संपत्ति बनाना, रोजगार की गुणवत्ता सुधारना और लोगों की भागीदारी को मजबूत करना है.

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एसबीआई रिसर्च ने इस बदलाव को ग्रामीण विकास की दिशा में “एक अहम पड़ाव” बताया है, जहां योजनाएं कागजों से निकलकर ज़मीन पर असर दिखा सकेंगी. चलिए जानते हैं कैसे?

100 से 125 दिन: बढ़ा रोजगार का भरोसा

अब तक मनरेगा के तहत 100 दिनों की गारंटी थी, लेकिन नए ढांचे में इसे बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है. इससे उन परिवारों को राहत मिलेगी जो साल के कुछ महीनों में रोजगार के संकट से जूझते हैं. खास बात यह है कि योजना अब केवल मांग पर आधारित नहीं रहेगी, बल्कि न्याय और दक्षता को ध्यान में रखते हुए फंड का आकलन किया जाएगा.

फंडिंग का नया फॉर्मूला, राज्यों पर दबाव नहीं

वित्त वर्ष 2027 के लिए केंद्र सरकार से करीब 96 हजार करोड़ रुपये की सहायता का अनुमान है. हालांकि अब केंद्र और राज्यों के बीच फंडिंग का अनुपात 90:10 से बदलकर 60:40 किया जाएगा. एसबीआई रिसर्च का मानना है कि इससे राज्यों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनके पास अभी भी उधारी की पर्याप्त क्षमता है. जरूरत इस बात की है कि राज्य अपने खर्च को ज्यादा उत्पादक कार्यों की ओर मोड़ें.

कौन होंगे सबसे बड़े लाभार्थी?

एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्य इस नए फॉर्मूले से सबसे ज्यादा लाभ उठा सकते हैं. कुल मिलाकर राज्यों को पुराने मनरेगा आवंटन की तुलना में लगभग 17 हजार करोड़ रुपये अधिक मिल सकते हैं.

काम की प्रकृति में बड़ा बदलाव

नई व्यवस्था में कृषि सीजन के दौरान 60 दिनों का ब्रेक, बायोमेट्रिक आधारित कार्य आवंटन, सैटेलाइट और डिजिटल तकनीक से योजना निर्माण और बेरोजगारी भत्ते को अनिवार्य किया गया है. कार्यों को भी चार स्पष्ट श्रेणियों में बांटा गया है-जल संरक्षण, मूल ग्रामीण ढांचा, आजीविका से जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर और जलवायु अनुकूलन.

पुरानी खामियों पर सीधा वार

रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा व्यवस्था की कमजोरियों के कारण वित्त वर्ष 2025 में 1.22 करोड़ परिवार रोजगार से वंचित रह गए. औसत मजदूरी भले ही बढ़कर 267 रुपये प्रतिदिन हो गई हो, लेकिन कई राज्यों में घोषित और वास्तविक भुगतान में फर्क अब भी बना हुआ है.

ग्राम पंचायतें बनेंगी बदलाव की धुरी

VB-G RAM G के तहत ग्राम पंचायतों को ज्यादा अधिकार दिए जाएंगे. इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, बल्कि काम की गुणवत्ता भी सुधरेगी. अब तक हजारों पंचायतों में शून्य खर्च दर्ज होना एक बड़ी समस्या थी, जिसे जमीनी स्तर से योजना बनाकर दूर करने की कोशिश होगी.

महिलाएं, पारदर्शिता और भविष्य

मनरेगा में पहले से ही महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत है. सामाजिक ऑडिट और जन भागीदारी के साथ यह योजना अब ज्यादा पारदर्शी, समावेशी और भविष्य के लिए तैयार नजर आ रही है. ग्रामीण भारत के लिए यह बदलाव सिर्फ नीति नहीं, बल्कि नई उम्मीद की शुरुआत है.

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