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सिर्फ जयचंद ही नहीं, सियासत में मीर जाफर का भी बार-बार क्‍यों आता है जिक्र? ममता ने अमित शाह को बताया मीर जाफर

सीएम बनर्जी ने कहा- अमित शाह एक दिन पीएम मोदी के मीर जाफर बन सकते हैं. मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के नाम पर चुनाव आयोग जो कुछ भी कर रहा है, वह शाह के इशारे पर ही है. ममता बनर्जी ने ऐसा कहा विवादित टिप्पणी की. जानिए क्यों इतिहास में मीर जाफर का नाम विश्वासघात और सियासी गद्दारी के पर्याय के रूप में आता है.

सिर्फ जयचंद ही नहीं, सियासत में मीर जाफर का भी बार-बार क्‍यों आता है जिक्र? ममता ने अमित शाह को बताया मीर जाफर
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( Image Source:  ANI )

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 8 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि अमित शाह 'एक एक्टिंग पीएम' (कार्यवाहक प्रधानमंत्री) की तरह काम कर रहे हैं. अमित शाह की मीर जाफर के समान हैं. इसके आगे सीएम ने पीएम मोदी को शाह पर भरोसा नहीं करने की सलाह भी दी थी. उन्होंने पीएम मोदी को चेताते हुए कहा कि वे उन पर ज्यादा भरोसा न करें. जब तक समय है, सतर्क रहें क्योंकि सुबह ही दिन दिखाती है.

यहां पर इस बात का जिक्र कर दें कि जब सीएम ममता बनर्जी अमित शाह को मीर जाफर कहती हैं, तो वे यह तंज लगा रही हैं कि अमित शाह कभी वर्तमान नेतृत्व (प्रधानमंत्री मोदी) के खिलाफ जाकर काम कर सकते हैं या उन्हें धोखा दे सकते हैं. यह एक राजनीतिक आलोचना और पूर्वानुमान है.

शाह पर आंख मूंदकर न करें 'भरोसा'

पश्चिमी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह अनुरोध किया कि वे अमित शाह पर आंख मूंदकर भरोसा न करें, क्योंकि एक दिन वही 'मीर जाफर' बन सकते हैं.

'शाह के इशारे पर काम कर रहा EC'

सीएम बनर्जी ने कहा, "अमित शाह एक दिन पीएम मोदी के लिए मीर जाफर साबित हो सकते हैं. मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के नाम पर चुनाव आयोग जो कुछ भी कर रहा है, वह अमित शाह के इशारे पर हो रहा है."

मीर जाफर कौन था?

मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला का सेनापति था. साल 1757 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराज-उद-दौला के बीच प्लासी का युद्ध हुआ. इस युद्ध में मीर जाफर ने अपने राजा को धोखा दिया. अपने देश की स्वतंत्रता को गिरवी रख दिया और अंग्रेजों को भारत में पैर जमाने का मौका दिया. इसलिए वह भारतीय इतिहास में 'गद्दार' का प्रतीक बन गया.

तभी से मीर जाफर का नाम इतिहास में सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि 'गद्दारी की मिसाल' के रूप में दर्ज है. यही वजह है कि जब भी कोई किसी को धोखेबाज या गद्दार कहता है, तो 'मीर जाफर' का नाम ज़ुबान पर आ ही जाता है.

इसलिए लिया जाता है मीर जाफर का नाम

अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया, लेकिन वह सिर्फ कठपुतली शासक था. कुछ ही समय बाद अंग्रेजों ने उसे भी हटा दिया और दूसरे लोगों को नवाब बनाते रहे. यानी जिसने अंग्रेजों से मिलकर अपने राजा को धोखा दिया, वही खुद बाद में अंग्रेजों के हाथों इस्तेमाल होकर अपमानित हुआ.

मीर जाफर की गद्दारी के बाद ही अंग्रेजों का भारत पर शासन शुरू हुआ. ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल की दौलत पर कब्जा किया और धीरे-धीरे पूरे भारत पर ब्रिटिश राज कायम हो गया.

मीर जाफर के इसी कारनामे की वजह से भारत में जब भी कोई व्यक्ति अपने ही लोगों, संगठन या देश से विश्वासघात करता है, तो उसे 'मीर जाफर' कहा जाता है. जैसे यूरोप में 'जूडस (Judas)' को धोखेबाज माना जाता है, वैसे ही भारत में 'मीर जाफर' गद्दारी का पर्याय बन गया.

जयचंद को गद्दार क्यों माना जाता है?

जयचंद कन्नौज का राजा था. वह गाहड़वाल वंश का शासक था और बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शासन करता था. उसका शासनकाल लगभग 1170 से 1194 ईस्वी तक माना जाता है.

जयचंद के समय में पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के शासक शक्तिशाली राजा थे. दोनों के बीच लंबे समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चली आ रही थी. कहा जाता है कि इन दोनों के बीच झगड़े की वजह सत्ता और प्रतिष्ठा की लड़ाई थी.

लोककथाओं और चंदबरदाई द्वारा रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार जयचंद की पुत्री संयोगिता पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करती थी. जयचंद इस विवाह के खिलाफ था, इसलिए उसने संयोगिता का स्वयंवर रखा, लेकिन पृथ्वीराज स्वयंवर में घोड़े पर सवार होकर पहुंचे और संयोगिता का हरण कर लिया. यह घटना जयचंद के अहंकार और अपमान का कारण बनी.

जब मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया, तब पृथ्वीराज चौहान ने उसका सामना किया. लोककथाओं में कहा जाता है कि जयचंद ने अपनी नाराजगी के कारण गौरी की मदद की. इसी कारण बाद में इतिहास में जयचंद को भी 'गद्दार' माना जाता है, जिसने अपने ही देश के खिलाफ विदेशी आक्रमणकारी का साथ दिया.

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