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महायुति क्यों नहीं तय कर पा रही CM, जातिगत समीकरण से समझें कहां फंसा पेंच?

Maharashtra New CM: महाराष्ट्र का अगला सीएम कौन होगा, 23 नवंबर से लोग इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश कर रहे हैं. एकनाथ शिंदे के सीएम पद पर दावेदारी छोड़ने के बावजूद महायुति अभी तक यह तय नहीं कर पा रही है कि आखिर सीएम बनाएं तो किसे बनाएं... कहीं इसके पीछे जातिगत समीकरण तो नहीं है... पढ़ें यह खास रिपोर्ट...

महायुति क्यों नहीं तय कर पा रही CM, जातिगत समीकरण से समझें कहां फंसा पेंच?
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( Image Source:  ANI )

Maharashtra New CM: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए थे, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर सस्पेंस बना हुआ है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से गुरुवार की रात महायुति में शामिल तीनों दलों (बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी) के नेताओं ने मुलाकात की, लेकिन फिर भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि सीएम कौन बनेगा. एकनाथ शिंदे मराठा समुदाय से आते हैं, जबकि देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण चेहरा हैं.

2014 में जब बीजेपी-शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, उस समय फडणवीस राज्य में बीजेपी के पहले सीएम थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था. 2019 में उद्धव ठाकरे के सीएम पद के लिए जिद करने पर गठबंधन टूट गया है और महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी. हालांकि, यह सरकार भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और 30 जून 2022 को शिंदे ने सीएम, जबकि फडणवीस ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली.

मराठाओं का रहा वर्चस्व

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठाओं का वर्चस्व रहा है. 2019 के विधानसभा चुनाव में 288 विधायकों में से आधे से अधिक करीब 160 विधायक मराठा समुदाय से थे. लोकसभा चुनाव में भी आधे से अधिक सीटों पर मराठा प्रत्याशियों की जीत हुई थी.

ओबीसी सबसे बड़ा वोट बैंक

वोट बैंक के लिहाज से ओबीसी सबसे बड़ा वर्ग है. महाराष्ट्र में 52 फीसदी ओबीसी हैं. मराठा समुदाय की आबादी में इनकी भागीदारी 28 फीसदी है, लेकिन सियासत में वर्चस्व मराठाओं का रहता है. ओबीसी मतदाताओं के बाहुल्य वाला क्षेत्र विदर्भ है. यहां 62 सीटें हैं. मराठा समुदाय के वर्चस्व वाले मराठवाड़ा में 46 और पश्चिमी महाराष्ट्र में 70 विधानसभा सीटें हैं. इस तरह दोनों क्षेत्रों में 116 सीटें हैं. जिस भी दल को ओबीसी और मराठा का वोट मिल जाए, उसकी सत्ता तक पहुंचने की राह आसान हो जाती है. ऐसा मानना है कि मराठा शिवसेना का सपोर्ट करते हैं. बीजेपी भी मराठा वोट के लिए शिवसेना पर निर्भर है.

ओबीसी और मराठा पर कभी एक दल की पकड़ नहीं हो पाई है. मनोज जरांगे पाटिल के मराठा आरक्षण को लेकर किए गए आंदोलन और मराठा समाज के लिए कुनबी सर्टिफिकेट की मांग ने दोनों समुदायों के बीच दूरी बढ़ा दी है. अगर मराठा समाज को कुनबी सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा तो इसका मतलब होगा ओबीसी के कोटे से आरक्षण देना. महायुति सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले मराठा आरक्षण विधेयक पारित किया. इसका मकसद ओबीसी और मराठा समुदाय को बैलेंस करना था, लेकिन इसका फायदा नहीं मिला. लोकसभा चुनाव में मराठवाड़ा में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि एक सीट शिंदे की शिवसेना को मिली.

सूबे की सियासत में 28 फीसदी मराठाओं के बाद 12 पीसदी दलित और मुस्लिम, 8 फीसदी आदिवासी और 38 फीसदी ओबीसी हैं. ब्राह्मण और अन्य समुदाय की आबादी 8 फीसदी है. ओबीसी में तेली, माली, लोहार, कुर्मी और धनगर जैसी 356 जातियां शामिल हैं.

18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा समुदाय से बने

प्रदेश के 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा समुदाय से बने. इसमें एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं. मराठावाड़ा, विदर्भ, पश्चिम महाराष्ट्र और कोंकण में मराठा वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. एकनाथ शिंदे की मराठा वोटरों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. हालांकि, सबसे बड़ा नेता शरद पवार को माना जाता है.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को 132, शिवसेना को 57 और एनसीपी को 41 सीटें मिलीं. इस चुनाव में मराठवाड़ा में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए महाविकास आघाड़ी से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की. शिंदे कैबिनेट के पांच मंत्रियों को भी मराठवाड़ा से टिकट दिया गया था.

मराठवाड़ा में महायुति का प्रदर्शन

मराठवाड़ा में 8 जिले आते हैं. इसमें औरंगाबाद, जालना, बीड, परभणी, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और हिंगोली जिला शामिल हैं. इसमें 46 विधानसभा सीटें हैं. इस बार के चुनाव में महायुति ने नांदेड़ में 9 की 9, हिंगोली में 3 की 3, औरंगाबाद यानी छत्रपति संभाजी नगर की 8 में से 8 और जालना की 5 में से 5 सीटें जीती हैं. वहीं, परभणी में 2 सीट महायुति को मिली है. इसके साथ ही, लातूर और बीड की 6 में से 5 सीटों पर महायुति को जीत मिली है. उस्मानाबाद यानी धाराशिव जिले की 4 में से 2 सीटो पर महायुति को जीत मिली है. पिछली बार 2019 में बीजेपी और शिवसेना को 28 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि इस बार सीटों की संख्या 34 है.

बता दें कि अमरावती संभाग की 30 सीटों में से 22 सीटें, औरंगाबाद संभाग की 46 सीटों में से 40 सीटें, कोंकण संभाग की 75 सीटों में से 57 सीटें, नागपुर संभाग की 32 सीटों में से 26 सीटें, नासिक संभाग की 47 सीटों में से 43 सीटें और पुणे संभाग की 58 सीटों में से 42 सीटें महायुति ने जीती हैं. इस तरह कहा जा सकता है कि बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति को पूरे राज्य में बंपर सीटें मिली हैं.

ओबीसी समुदाय के प्रभुत्व वाले जिले

ओसीबी समुदाय के प्रभुत्व वाले जिले कोल्हापुर, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल माने जाते हैं. प्रदेश की करीब 100 सीटों पर इनका प्रभाव है. अकोला की 5 में से 3, नांदेड़ की 9 में से 9, यवतमाल की 7 में से 5, पुणे की 21 में से 18, कोल्हापुर की 10 में से 9 और सोलापुर की 11 में से 5 सीटें महायुति ने जीती है.

दलित समुदाय के प्रभुत्व वाले जिले

दलित समुदाय की सबसे ज्यादा आबादी विदर्भ, पुणे और नागपुर और ठाणे जिले में है. पुणे की 21 में से 18, नागपुर की 12 में से 9 सीटें, ठाणे की 18 में से 16 सीटों पर महायुति की जीत हुई. दलित समाज के लिए 29 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. करीब 59 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां दलितों की आबादी 20 फीसदी के करीब है.

क्या शिंदे की वजह से मिली जीत?

ऐसा कहा जाता है कि मराठा समुदाय से आने वाले शिंदे की वजह से महायुति को महाराष्ट्र में बड़ी जीत मिली है. ऐसे में बीजेपी कोई भी फैसला लेने से पहले हर पहलुओं की अच्छे सी जांच कर ले रही है, ताकि भविष्य में इसका नुकसान न उठाना पड़े. लोकसभा चुनाव में जिन मराठा वोटरों ने बीजेपी के खिलाफ वोट दिया था, उन्होंने विधानसभा चुनाव में बीजेपी को दिल खोलकर समर्थन दिया. यही वजह है कि बीजेपी को 132 सीटों पर जीत मिली.

वृहन्मुंबई नगर पालिका का चुनाव जल्द ही होने वाला है. ऐसे में बीजेपी कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती. वह कोई भी निर्णय लेने से पहले उससे होने वाले फायदे और नुकसान के बारे में जान लेना चाहती है. शिंदे के सीएम पद की दावेदारी से हटने के बाद माना जा रहा है कि उन्हें या उनकी पार्टी के नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.

दूसरे ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे फडणवीस

देवेंद्र फडणवीस को भी कम नहीं आंका जा सकता. उन्हें गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव है. संगठन पर भी उनकी अच्छी पकड़ है. आरएसएस के साथ भी उनके मधुर संबंध रहे हैं. फडणवीस मनोहर जोशी के बाद महाराष्ट्र के दूसरे ब्राह्मण सीएम हैं. वे अगर सीएम बनते हैं तो यह तीसरी बार होगा, जब वे यह पद संभालेंगे.

नए चेहरों को मंत्रिमंडल में मिल सकती है जगह

महाराष्ट्र की नई सरकार के कैबिनेट में इस बार वरिष्ठ नेताओं की जगह युवाओं को मौका मिल सकता है. इस तरह कुछ वरिष्ठ नेताओं का इस बार मंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस बार 50 साल से कम उम्र के विधायकों को मंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाएगी. इसका मकसद युवाओं को सरकार के साथ जोड़ना और अगले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना है. बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी के नेताओं ने देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार से मिलना शुरू कर दिया है.

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